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________________ गीता दर्शन भाग-5 इसे थोड़ा ठीक से समझ लें, कि जब भी हम बोलते हैं, बोलने वाला ही महत्वपूर्ण नहीं होता, सुनने वाला भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है। हम किसके लिए बोलते हैं! जिसके लिए हम बोलते हैं, वह भी निर्धारक होता है, बात बोली जाती है। जब दो व्यक्ति बोलते हैं, तो सुनने वाला, बोलने वाला, दोनों ही निर्णायक होते हैं, जो बोला जाता है। संजय शून्य में नहीं बोल रहा है। संजय धृतराष्ट्र से बोल रहा है । धृतराष्ट्र जो समझ सकेंगे, उस व्यवस्था में बोल रहा है। और इसलिए मैंने कल आपसे कहा कि गीता हमारे लिए उपयोगी है, क्योंकि हम अंधे हैं। और अच्छा हुआ कि संजय धृतराष्ट्र से बोला । अगर वह किसी आंख वाले से बोलता, किसी जानने वाले से बोलता, तो पहली तो कठिनाई यह थी कि बोलने की कोई जरूरत न थी। क्योंकि जो जान सकता था, आंख वाला था, वह खुद ही देख लेता। और जो जानता था, जो देख सकता था, उसके लिए प्रतीक खोजने न पड़ते। इसलिए बहुत बार यह सवाल उठता है, युद्ध के मैदान पर, जहां कि एक-एक पल मुश्किल रहा होगा, इतनी बड़ी गीता कृष्ण ने कैसे कही है? जहां एक-एक पल मुश्किल रहा होगा, इतनी बड़ी गीता, पूरे अठारह अध्याय अर्जुन से कहे होंगे, कितना समय नहीं व्यतीत हुआ होगा ! और युद्ध सब ठप्प पड़ा रहा! लोग वहां लड़ने को, मरने को उत्सुक होकर आए थे। वहां कोई धर्म-संवाद, कोई धर्म-उपदेश सुनने नहीं आए थे। यह इतनी लंबी बात कृष्ण ने कही होगी ? तो अनेक लोगों को कठिनाई होती है। और उनको लगता है कि संक्षिप्त में कही होगी, बाद में लोगों ने विस्तीर्ण कर ली होगी। बहुत सार में इशारा किया होगा, बाद में चीजें जुड़ती चली गई होंगी । नहीं, ऐसा नहीं है। दो-तीन बातें खयाल में ले लेनी चाहिए। एक तो, समय बहुत प्रकार के हैं। टाइम एक ही प्रकार का नहीं है। समय बहुत प्रकार के हैं। आपको रात एक झपकी आ जाती है। ट्रेन में आप चल रहे हैं, आंख लग गई है, झपकी आ गई है। आप एक लंबा स्वप्न देखते हैं। स्वप्न इतना लंबा हो सकता है कि आप छोटे बच्चे थे, और बड़े हुए, और स्कूल में पढ़े, और कालेज में गए, और किसी के प्रेम में पड़े, और शादी की, और आपके बच्चे हो गए, और आप बच्चों की शादी कर रहे हैं, और बैंड-बाजे बज रहे हैं, उससे आपकी नींद खुल गई। और आप घड़ी में देखते हैं, तो अभी मुश्किल से दो-चार सेकेंड ही आपकी झपकी लगी थी। तो दो-चार सेकेंड में इतनी लंबी कथा तो कही भी नहीं जा सकती, जो आपने देख ली। अगर आप अपना सपना किसी को | सुनाएं, तो उसमें भी आधा घंटा लगेगा। और आपने सुना नहीं है, आप जीए। बच्चे थे, बड़े हुए, पढ़े-लिखे, प्रेम में गिरे, विवाह किया, बच्चा हुआ, बड़ा हुआ, शादी कर रहे थे। यह सब आप जीए भीतर सपने में। और घड़ी में दो-चार सेकेंड या मिनट, आधा मिनट निकला। क्या हुआ ? स्वप्न में समय की व्यवस्था और है। जागने में समय की व्यवस्था और है । जागने में भी समय की व्यवस्था बदलती रहती है। घड़ी में नहीं बदलती, इसलिए हमें भ्रम पैदा होता है। घड़ी में | क्यों बदलेगी, घड़ी तो यंत्र है। वह अपने हिसाब से घूमती रहती है। साठ मिनट में घंटा पूरा हो जाता है, चौबीस घंटे में दिन पूरा हो जाता है। घड़ी घूमती रहती । लेकिन अगर आप घड़ी और अपने बीच थोड़ा-सा विचार करें, तो आपको समझ में आ जाएगा। आपके भीतर समय एक-सा नहीं रहता। जब आप दुख में होते हैं, समय धीमा जाता हुआ मालूम पड़ता है। जब आप सुख में होते हैं, समय तेजी से जाता हुआ मालूम पड़ता है। जब आप सफल होते हैं, तब समय ऐसे बीत जाता है, साल ऐसे बीत जाते हैं, जैसे पल। | और जब आप असफल होते हैं, तो पल ऐसे बीतते हैं, जैसे वर्ष । कोई मर रहा हो प्रियजन, उसके पास आप बैठे हैं। तब एक घड़ी ऐसी लगती है कि जैसे युग। कितनी लंबी ! कभी किसी मरणासन्न व्यक्ति के पास अगर रात बिताई हो, तो आपको पता चलेगा कि घड़ी और आपके समय में फर्क है। मरणासन्न व्यक्ति के पास बैठे रात कटती ही नहीं है। और अगर आपको आपकी प्रेयसी, आपका | प्रिय, आपका मित्र मिल गया हो अचानक, तो रात कब बीत जाती है, पता नहीं चलता । और ऐसा लगता है कि सांझ एकदम सुबह हो गई, रात बीच में हुई ही नहीं। आपका अगर चित्त दुख से भरा हो, तो समय लंबा हो जाता है। आपका चित्त अगर सुख से भरा हो, तो समय छोटा हो जाता है। | जो लोग आनंद को अनुभव किए हैं...। आपको सुख-दुख का अनुभव है, आनंद का आपको कोई अनुभव नहीं है। सुख में समय छोटा हो जाता है, दुख में बड़ा हो जाता है। जितना ज्यादा दुख होता है, समय उतना लंबा हो जाता है। जितना ज्यादा सुख होता है, | उतना छोटा हो जाता है। आनंद है परम सुख । समय शून्य हो जाता है, समय होता ही नहीं । इसलिए जिन्होंने आनंद का अनुभव किया है, वे कहते हैं, समय 282
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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