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दिव्य-चक्षु की पूर्व-भूमिका
है, छाया की भी छाया है। वह तो बहुत दूर है। कृष्ण की जो आकृति | | में ही चक्षु का जन्म हो जाता है। हमने मंदिर में बना रखी है, वह तो बहुत दूर है कृष्ण से। क्योंकि खुद | लेकिन शायद कृष्ण की मौजूदगी वहां न हो, तो अड़चनें हो कृष्ण भी जब मौजूद थे शरीर में, तब भी वे कह रहे हैं कि मैं यह नहीं | सकती हैं, क्योंकि कृष्ण कैटेलिटिक एजेंट का काम कर रहे हैं। जो हूं, जो तुझे अभी दिखाई पड़ रहा हूं। और इन आंखों से ही अगर | लोग विज्ञान की भाषा से परिचित हैं, वे कैटेलिटिक एजेंट का अर्थ देखना हो तो यही दिखाई पड़ेगा, जो मैं दिखाई पड़ रहा हूं। समझते हैं। कैटेलिटिक एजेंट का अर्थ होता है, जो खुद करे न
नई आंख चाहिए। प्राकृत नहीं, दिव्य-चक्षु चाहिए। इन आंखों | | कुछ, लेकिन जिसकी मौजूदगी में कुछ हो जाए। को प्राकृत कहा है, क्योंकि इनसे प्रकृति दिखाई पड़ती है। इनसे | | वैज्ञानिक कहते हैं कि हाइड्रोजन और आक्सीजन मिलकर पानी दिव्यता दिखाई नहीं पड़ती। इनसे जो भी दिखाई पड़ता है, वह मैटर | बनता है। अगर आप हाइड्रोजन और आक्सीजन को मिला दें, तो है, पदार्थ है। और जो भी दिव्य है, इनसे चूक जाता है। दिव्य को | पानी नहीं बनेगा। लेकिन अगर आप पानी को तोड़ें, तो हाइड्रोजन देखने का इनके पास कोई उपाय नहीं है।
और आक्सीजन बन जाएगी। अगर आप पानी की एक बूंद को तोड़ें, तो कृष्ण कहते हैं कि मैं तुझे अब वह आंख देता हूं, जिससे तुझे | तो हाइड्रोजन और आक्सीजन आपको मिलेगी और कुछ भी नहीं मैं दिखाई पड़ सकू, जैसा मैं हूं-अपने मूल रूप में, अपनी | | मिलेगा। स्वभावतः, इसका नतीजा यह होना चाहिए कि अगर हम मौलिकता में। प्रकृति में मेरी छाया नहीं, तू मुझे देख। लेकिन तब | | हाइड्रोजन और आक्सीजन को जोड़ दें, तो पानी बन जाना चाहिए। मैं तुझे एक नई आंख देता हूं।
लेकिन बड़ी मुश्किल है। तोड़ें, तो सिर्फ हाइड्रोजन और यहां बहुत-से सवाल उठने स्वाभाविक हैं कि क्या कोई और | आक्सीजन मिलती है। जोड़ें, तो पानी नहीं बनता। जोड़ने के लिए आदमी किसी को दिव्य आंख दे सकता है ? कि कृष्ण कहते हैं, मैं | | बिजली की मौजूदगी जरूरी है। और बिजली उस जोड़ में प्रवेश नहीं तुझे दिव्य-चक्षु देता हूं। क्या यह संभव है कि कोई आपको करती, सिर्फ मौजूद होती है, जस्ट प्रेजेंट। सिर्फ मौजूदगी चाहिए दिव्य-चक्षु दे सके? और अगर कोई आपको दिव्य-चक्षु दे सकता | | बिजली की। बिजली मौजूद हो, तो हाइड्रोजन और आक्सीजन है, तब तो फिर अत्यंत कठिनाई हो जाएगी। कहां खोजिएगा कृष्ण | | मिलकर पानी बन जाता है। बिजली मौजूद न हो, तो हाइड्रोजन और को जो आपको दिव्य-चक्षु दे?
आक्सीजन मिलकर पानी नहीं बनते। __ और अगर कोई आपको दिव्य-चक्षु दे सकता है, तो फिर कोई | वह जो बरसात में आपको बिजली चमकती दिखाई पड़ती है,
आपके दिव्य-चक्षु ले भी सकता है। और अगर कोई दूसरा आपको | वह कैटेलिटिक एजेंट है, उसके बिना वर्षा नहीं हो सकती। उसकी दिव्य-चक्षु दे सकता है, तो फिर आपके करने के लिए क्या बचता | वजह से वर्षा हो रही है। लेकिन वह पानी में प्रवेश नहीं करती है। है? कोई देगा। प्रभु की अनुकंपा होगी कभी, तो हो जाएगा। फिर | | वह सिर्फ मौजूद होती है। आपके लिए प्रतीक्षा के सिवाय कुछ भी नहीं है। फिर आपके लिए | | यह कैटेलिटिक एजेंट की धारणा बड़ी कीमती है और अध्यात्म संसार के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है।
| में तो बहुत कीमती है। गुरु कैटेलिटिक एजेंट है। वह कुछ देता इस पर बहुत-सी बातें सोच लेनी जरूरी हैं।
नहीं। क्योंकि अध्यात्म कोई ऐसी चीज नहीं कि दी जा सके। वह पहली बात तो यह है कि कृष्ण ने जब यह कहा कि मैं तुझे | | कुछ करता भी नहीं। क्योंकि कुछ करना भी दूसरे के साथ हिंसा दिव्य-चक्षु देता हूं, तो इसके पहले अर्जुन अपने को पूरा समर्पित | करना है, जबरदस्ती करनी है। वह सिर्फ होता है मौजूद। लेकिन कर चुका है, रत्ती-मात्र भी अपने को पीछे नहीं बचाया है। अगर | उसकी मौजूदगी काम कर जाती है; उसकी मौजूदगी जादू बन जाती कृष्ण अब मौत भी दें, तो अर्जुन उसके लिए भी राजी है। अब है। सिर्फ उसकी मौजूदगी, और आपके भीतर कुछ हो जाता है, जो अर्जुन का अपना कोई आग्रह नहीं है।
| उसके बिना शायद न हो पाता। आदमी जो सबसे बड़ी साधना कर सकता है, वह समर्पण है, पहली तो बात यह है कि कृष्ण मौजूद न हों, तो समर्पण बहुत वह सरेंडर है। और जैसे ही कोई व्यक्ति समर्पित कर देता है पूरा, मुश्किल है। इसलिए मैं मानता हूं कि अर्जुन को समर्पण जितना तब कृष्ण को चक्षु देने नहीं पड़ते, यह सिर्फ भाषा की बात है कि आसान हुआ होगा, मीरा को उतना आसान नहीं हुआ होगा। मैं तुझे चक्षु देता हूं। जो समर्पित कर देता है, उस समर्पण की घड़ी इसलिए मीरा की कीमत अर्जुन से ज्यादा है। क्योंकि कृष्ण सामने
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