SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 297
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 3 दिव्य-चक्षु की पूर्व-भूमिका हम ईश्वर से भी विराट और बड़े हो जाते हैं। और अंधे के चारों तरफ मौजूद है, अंधे की चमड़ी को छू रहा है। मार्क्स ने मजाक में कहा है कि जब तक ईश्वर को टेस्ट-टयूब | | अंधे को जो गरमी मिल रही है, वह उसी प्रकाश से मिल रही है। में न जांचा जा सके, तब तक मैं मानने को राजी नहीं हूं। लेकिन और अंधे को जो उसका मित्र हाथ पकड़कर रास्ते पर चला रहा है, उसने फिर यह भी कहा है कि और अगर ईश्वर टेस्ट-टयूब में आ वह भी उसी प्रकाश के कारण चला रहा है। और अंधे के भीतर जो जाए और जांच लिया जाए, तब भी मानूंगा नहीं, क्योंकि तब मानने | हृदय में धड़कन हो रही है, वह भी उसी प्रकाश की किरणों के की कोई जरूरत नहीं रह गई। कारण हो रही है। और उसके खून में जो गति है, वह भी प्रकाश के जो टेस्ट-टयूब में आ गया हो आदमी के, उसको ईश्वर कहने | कारण है। का कोई कारण नहीं रह गया। वह भी एक तत्व हो जाएगा। जैसे | | अंधे का पूरा जीवन प्रकाश में लिप्त है, प्रकाश में डूबा है। अगर आक्सीजन है, हाइड्रोजन है, वैसा ईश्वर भी होगा। हम उससे भी प्रकाश न हो, तो अंधा नहीं हो सकता। लेकिन फिर भी अंधे को काम लेना शुरू कर देंगे! पंखे चलाएंगे, बिजली जलाएंगे; कुछ प्रकाश का कोई भी पता नहीं चलता है। क्योंकि जो आंख चाहिए और करेंगे। आदमी को मारेंगे, बच्चों को पैदा होने से रोकेंगे, या | | देखने की, वह नहीं है। अंधा जीता प्रकाश में है, होता प्रकाश में उम्र ज्यादा करेंगे। अगर ईश्वर को हम टेस्ट-टयूब में पकड़ लें, तो | । है, लेकिन अनुभव में नहीं आता। हम उसका भी उपयोग कर लेंगे। विज्ञान तभी मानेगा, जब उपयोग | हम भी परमात्मा में हैं। उसके बिना न खून चलेगा, न हृदय कर सके। धड़केगा, न श्वासें हिलेंगी, न वाणी बोलेगी, न मन विचारेगा। आदमी जो भी प्रमाण जुटा सकता है, वे प्रमाण सब बचकाने | | उसके बिना कुछ भी नहीं होगा। वह अस्तित्व है। लेकिन उसे देखने हैं। क्योंकि बद्धि बचकानी है। उस विराट को नापने के लिए बुद्धि की हमारे पास अभी कोई भी इंद्रिय नहीं है। उपाय नहीं है। क्या कोई उपाय और हो सकता है बुद्धि के हाथ हैं, उनसे हम छू सकते हैं। जिसे हम छू सकते हैं, वह स्थूल अतिरिक्त? बुद्धि के अतिरिक्त हमारे पास कुछ भी नहीं है। सोच है। सूक्ष्म को हम छू नहीं सकते। यहां भी सूक्ष्म-परमात्मा को सकते हैं। | अलग कर दें—पदार्थ में भी जो सूक्ष्म है, उसे भी हम हाथ से नहीं थोड़ा इसे हम समझ लें कि सोचने का क्या अर्थ होता है, तो इस | | छू सकते। हमारे पास कान हैं, हम सुन सकते हैं। लेकिन कितना सूत्र में प्रवेश आसान हो जाएगा। सुन सकते हैं? एक सीमा है। आपका कुत्ता आपसे हजार गुना हम सोच सकते हैं। आप क्या सोच सकते हैं? जो आप जानते | ज्यादा सुनता है। उसके पास आपसे ज्यादा बड़ा कान है। अगर हैं, उसी को सोच सकते हैं। सोचना जुगाली है। गाय-भैंस को कान से परमात्मा का पता लगता होता, तो आपसे पहले आपके आपने देखा! घास चर लेती है, फिर बैठकर जुगाली करती रहती कुत्ते को पता लग जाएगा। घोड़ा आपसे दस गुना ज्यादा सूंघ सकता है। वह जो चर लिया है, उसको वापस चरती रहती है। | है। कुत्ता दस हजार गुना सूंघ सकता है। अगर सूंघने से परमात्मा विचार जुगाली है। जो आपके भीतर डाल दिया गया, उसको | का पता होता, तो कुत्तों ने अब तक उपलब्धि पा ली होती। आप फिर जुगाली करते रहते हैं। आप एक भी नई बात नहीं सोच ___ हमसे ज्यादा मजबूत आंखों वाले जानवर हैं। हमसे ज्यादा सकते हैं। कोई विचार मौलिक नहीं होता। सब विचार बाहर से मजबूत हाथों वाले जानवर हैं। हमसे ज्यादा मजबूत स्वाद का डाले गए होते हैं, फिर हम सोचने लगते हैं उन पर। सब विचार | अनुभव करने वाले जानवर हैं। मधुमक्खी पांच मील दूर से फूल उधार होते हैं। तो जो हमने जाना नहीं है अब तक, उसको हम सोच | की गंध को पकड लेती है। अगर आपके घर में चोर घसा हो. तो भी नहीं सकते। हम सोच उसी को सकते हैं, जिसे हमने जाना है, | | उसके जाने के घंटेभर बाद भी कुत्ता उसकी सुगंध को पकड़ लेता जिसे हमने सुना है, जिसे हमने समझा है, जिसे हमने पढ़ा है; उसे | | है। उसके जाने के घंटेभर बाद भी। और फिर पीछा कर सकता है। हम सोच सकते हैं। | और दस-बीस मील कहीं भी चोर चला गया हो, अनुगमन कर ईश्वर को न तो पढ़ा जा सकता; न ईश्वर को सुना जा सकता। | सकता है। ईश्वर को सोचेंगे कैसे? ईश्वर है अज्ञात, अननोन। मौजूद है यहीं, ___ हमारे पास जो इंद्रियां हैं, उनसे स्थूल भी पूरा पकड़ में नहीं लेकिन इसी तरह अज्ञात है, जैसे अंधे के लिए प्रकाश अज्ञात है। आता। सूक्ष्म की तो बात ही अलग है। हम जो सुनते हैं, वह एक 267
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy