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________________ 7 दिव्य-चक्षु की पूर्व-भूमिका अनुपस्थिति कैसे दिखाई पड़ेगी! वह असंभव है। अंधे को अंधेरा | | को आकाश में देखकर कंपते थे और सोचते थे कि इंद्र नाराज है। भी नहीं है। | उसने बिजली को बांध लिया है। अगर पुरानी भाषा में कहें, तो इंद्र और जिसे अंधेरा भी दिखाई न पड़ता हो, वह प्रकाश के संबंध | को उसने बांध लिया है। घर में इंद्र रोशनी कर रहा है, और पंखे में क्या प्रश्न उठाए! और प्रश्न उठाए भी तो उसे क्या उत्तर दिया जा चला रहा है! सकता है! और जो भी उत्तर हम देंगे, वे अंधे के मन को जंचेंगे नहीं।। | आदमी ने इधर तीन सौ वर्षों में जो भी पाया है, उस पाने से उसे क्योंकि मन हमारी इंद्रियों के अनुभव का जोड़ है। अंधे के पास | बाहर कुछ चीजें मिली हैं और भीतर अहंकार मिला है। उसे लगता आंख का अनुभव कुछ भी नहीं है मन में। तो जंचने का, मेल खाने | है, मैं कुछ कर सकता हूं। और जितना अहंकार मजबूत होता है, का, तालमेल बैठने का कोई उपाय नहीं है। अंधे का पूरा मन कहेगा | उतनी ही नास्तिकता सघन हो जाती है। क्योंकि उतना ही यह मानना कि प्रकाश नहीं है। अंधा जिद्द करेगा कि प्रकाश नहीं है। सिद्ध भी | मुश्किल हो जाता है कि मुझमें कोई कमी है, कोई उपकरण, कोई करना चाहेगा कि प्रकाश नहीं है। इंद्रिय मुझमें खो रही है, अभाव है; मेरे पास कोई उपाय कम है, क्यों? क्योंकि स्वयं को अंधा मानने की बजाय, यह मान लेना | | जिससे मैं और देख सकूँ। ज्यादा आसान है कि प्रकाश नहीं है। अंधे के अहंकार की इसमें फिर एक और बात पैदा हो गई। हमने अपनी भौतिक इंद्रियों को तृप्ति है कि प्रकाश नहीं है। अंधे के अहंकार को चोट लगती है यह विस्तीर्ण करने की बड़ी कुशलता पा ली है। आदमी आंख से मानने से कि मैं अंधा हूं, इसलिए मुझे प्रकाश दिखाई नहीं पड़ता। | | कितनी दूर तक देख सकता है? लेकिन अब हमारे पास दूरदर्शक इसलिए मनुष्य में जो अति अहंकारी हैं, वे कहेंगे, परमात्मा नहीं| यंत्र हैं, जो अरबों-खरबों प्रकाश वर्ष दूर तारों को देख सकते हैं। है; बजाय यह मानने के कि मेरे पास वह देखने की आंख नहीं है, आदमी अपने अकेले कान से कितना सुन सकता है? लेकिन अब जिससे परमात्मा हो तो दिखाई पड़ सके। और ध्यान रहे, जिसको हमारे पास टेलिफोन है, रेडियो है, बेतार के यंत्र हैं; कोई सीमा नहीं परमात्मा नहीं दिखाई पड़ता, उसको परमात्मा का न होना भी दिखाई है। हम कितने ही दूर की बात सुन सकते हैं, और कितने ही दूर तक नहीं पड़ सकता है। क्योंकि न होने का अनुभव भी उसी का अनुभव बात कर सकते हैं। होगा, जिसके पास देखने की क्षमता है। ___ एक आदमी अपने हाथ से कितनी दूर तक पत्थर फेंक सकता नास्तिक कहता है, ईश्वर नहीं है। उसके वक्तव्य का वही अर्थ है? लेकिन अब हमारे पास सुविधाएं हैं कि हम पूरे के पूरे यानों को है, जो अंधा कहता है कि प्रकाश नहीं है। नास्तिक की तकलीफ | पृथ्वी के घेरे के बाहर फेंककर चांद की यात्रा पर पहुंचा सकते हैं। ईश्वर के होने न होने में नहीं है। नास्तिक की तकलीफ अपने को | | एक आदमी कितना मार सकता है? कितनी हत्या कर सकता है? अधूरा मानने में, अपंग मानने में, अंधा मानने में है। इसलिए | अब हमारे पास हाइड्रोजन बम हैं, कि चाहें तो दस मिनट में हम जितना अहंकारी युग होता है, उतना नास्तिक हो जाता है। पूरी पृथ्वी को राख बना दे सकते हैं। सिर्फ दस मिनट में; खबर अगर आज सारी दनिया में नास्तिकता प्रभावी है, तो उसका पहंचेगी. इसके पहले मौत पहंच जाएगी। कारण यह नहीं है कि विज्ञान ने लोगों को नास्तिक बना दिया है। __ तो स्वभावतः, आदमी ने अपनी बाहर की इंद्रियों को बढ़ा और उसका कारण यह भी नहीं है कि कम्युनिज्म ने लोगों को | | लिया। यह सब इंद्रियों का विस्तार है। इंद्रियों को हमने यंत्रों से नास्तिक बना दिया। उसका कुल मात्र कारण इतना है कि मनुष्य ने | जोड़ दिया। इंद्रियां भी यंत्र हैं। हमने और नए यंत्र बनाकर उन इधर पिछले तीन सौ वर्षों में जो उपलब्धियां की हैं, उन उपलब्धियों | इंद्रियों की शक्ति को बढ़ा लिया। इसलिए आदमी इंद्रियों को ने उसके अहंकार को भारी बल दे दिया है। बढ़ाने में लग गया और उसे यह खयाल भी नहीं कि कुछ इंद्रियां इन तीन सौ वर्षों में आदमी ने उतनी उपलब्धियां की हैं, जितनी ऐसी भी हैं, जो बंद ही पड़ी हैं। पिछले तीन लाख वर्षों में आदमी ने नहीं की थीं। आदमी की ये अगर हम पीछे लौटें, तो आदमी की बाहर की इंद्रिय की शक्ति उपलब्धियां उसके अहंकार को बल देती हैं। वह बीमारी से लड़ बहुत सीमित थी। और आदमी का बल बहुत सीमित था। आदमी सकता है। वह उम्र को भी शायद थोड़ा लंबा सकता है। उसने | | की उपलब्धियां बहुत सीमित थीं। आदमी के अहंकार को सघन बिजली को बांधकर घर में रोशनी कर ली है। उसके पूर्वज बिजली | | होने का उपाय कम था। सहज ही जीवन विनम्रता पैदा करता था। 2651
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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