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________________ ॐ गीता दर्शन भाग-500 न तु मां शक्यसे द्रष्टुमनेनैव स्वचक्षुषा । की इन बातों में तर्कयुक्त रूप से कुछ भी गलत न होगा। दिव्यं ददामि ते चक्षुः पश्य मे योगमैश्वरम् ।। ८।। अंधे को प्रकाश दिखाई नहीं पड़ता। और प्रकाश को देखने के संजय उवाच अतिरिक्त और कोई जानने का उपाय नहीं है। प्रकाश सुना नहीं जा एवमुक्त्वा ततो राजन्महायोगेश्वरो हरिः। | सकता, अन्यथा अंधा भी प्रकाश को सन लेता। प्रकाश छुआ नहीं दर्शयामास पार्थाय परमं रूपमैश्वरम् ।। ९ ।। जा सकता, अन्यथा अंधा भी उसे स्पर्श कर लेता। प्रकाश का कोई अनेकवक्त्रनयनमनेकाद्भुतदर्शनम् । स्वाद नहीं, कोई गंध नहीं। अनेकदिव्याभरणं दिव्यानेकोद्यतायुधम् ।। १० ।। तो जिसके पास आंख नहीं हैं, उसका प्रकाश से संबंधित होने दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम् । का कोई उपाय नहीं है। तो अंधा आदमी भी कह सकता है कि जो सर्वाश्चर्यमयं देवमनन्तं विश्वतोमुखम् ।।११।। मानते हैं, वे भ्रांति में होंगे; और अगर प्रकाश है, तो मुझे दिखा दो। परंतु मेरे को इन अपने प्राकृत नेत्रों द्वारा देखने को तू और उसकी बात में कुछ अर्थ है। अगर प्रकाश है, तो मेरे अनुभव निःसंदेह समर्थ नहीं है, इसी से मैं तेरे लिए दिव्य अर्थात में आए, तो ही मैं मानूंगा। अलौकिक चक्षु देता हूं, उससे तू मेरे प्रभाव को और मनुष्य भी परमात्मा को खोजना चाहता है। बिना यह पूछे कि मेरे योगशक्ति को देख। पास वह आंख, वह उपकरण है, जो परमात्मा को देख ले? संजय बोले, हे राजन्, महायोगेश्वर और सब पापों के नाश इसलिए जो कहते हैं कि परमात्मा है, हमें लगता है कि किसी भ्रम करने वाले भगवान ने इस प्रकार कहकर उसके उपरांत में हैं, किसी मानसिक स्वप्न में, किसी सम्मोहन में खो गए हैं। और अर्जुन के लिए परम ऐश्वर्ययुक्त दिव्य स्वरूप दिखाया। | या फिर अंधविश्वास कर लिया है किसी भय के कारण, प्रलोभन और उस अनेक मुख और नेत्रों से युक्त तथा अनेक अदभुत के कारण। या केवल परंपरागत संस्कार है बचपन से डाला गया दर्शनों वाले एवं बहुत-से दिव्य भूषणों से युक्त और | मन में, इसलिए कोई कहता है कि परमात्मा है। बहुत-से दिव्य शस्त्रों को हाथों में उठाए हुए परमात्मा है या नहीं, यह बड़ा सवाल नहीं है। यह सवाल भी तथा दिव्य माला और वस्त्रों को धारण किए हुए उठाया नहीं जा सकता, जब तक कि हमारे पास वह आंख न हो, और दिव्य गंध का अनुलेपन किए हुए, एवं सब प्रकार के जो परमात्मा को देखने में सक्षम है। प्रकाश है या नहीं, यह सवाल आश्चयों से युक्त, सीमारहित, विराटस्वरूप परमदेव ही व्यर्थ है, जब तक देखने वाली आंख न हो। परमेश्वर को अर्जुन ने देखा। अंधे को प्रकाश तो बहुत दूर, अंधेरा भी दिखाई नहीं पड़ता है। आमतौर से हम सोचते होंगे कि अंधे को कम से कम अंधेरा तो दिखाई पड़ता ही होगा। हमारी धारणा भी हो सकती हो कि अंधा 11 नुष्य ने सदा ही जीवन के परम रहस्य को जानना चाहा अंधेरे से घिरा होगा। 1 है। क्या है प्रयोजन जीवन का? क्या है लक्ष्य ? क्यों गलत है खयाल। अंधेरे को देखने के लिए भी आंख चाहिए। उत्पन्न होती है सृष्टि और क्यों विलीन? कौन छिपा है अंधेरे का अनुभव भी आंख का ही अनुभव है। अंधे को अंधेरे का इस सबके पीछे ? किसके हाथ हैं? उस मूल को, उस स्रोत को, भी कोई अनुभव नहीं होता। आप आंख बंद करते हैं, तो आपको उस परम को मनुष्य ने सदा ही जानना चाहा है। अंधेरे का अनुभव होता है, क्योंकि आप अंधे नहीं हैं। आपको , लेकिन मनुष्य जैसा है, वैसा ही उस परम को जान नहीं सकता। | प्रकाश का अनुभव होता है, इसलिए उसके विपरीत अंधेरे का इससे ही दुनिया में नास्तिक दर्शनों का जन्म हो सका। जैसे अंधा अनुभव होता है। जिसे प्रकाश का अनुभव नहीं होता, उसे अंधेरे आदमी प्रकाश को जानना चाहे, न जान सके; तो अंधा आदमी भी | का भी कोई अनुभव नहीं हो सकता। कह सकता है कि प्रकाश एक भ्रांति है। और जिन्हें प्रकाश दिखाई | अंधेरा और प्रकाश दोनों ही आंख के अनुभव हैं। प्रकाश देता है, वे किसी विभ्रम में पड़े हैं, किसी इलूजन में पड़े हैं। जो | | मौजूदगी का अनुभव है, अंधेरा गैर-मौजूदगी का अनुभव है। प्रकाश की बात करते हैं, वे अंधविश्वास में हैं। और अंधे आदमीलेकिन जिसे प्रकाश ही नहीं दिखाई पड़ा, उसे प्रकाश की 264
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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