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विराट से साक्षात की तैयारी
आपने स्मरण दिलाया, मैं उसे देखना चाहता हूं। संसार खो गया। अब तुम भी न हो जाओ। अब तुम्हारा दरवाजा भी हट जाए और यह जिज्ञासा, यह जिज्ञासा धर्म की जिज्ञासा है।
मैं खुले आकाश को सीधा देख लूं। भारत का अनूठा ग्रंथ ब्रह्म-सूत्र जिस वचन से शुरू होता है, अथातो ब्रह्म जिज्ञासा। ऐसे ही क्षण में ब्रह्म की जिज्ञासा शुरू वह बड़ा अदभुत है। वह वचन है, अथातो ब्रह्म जिज्ञासा, यहां से | होती है। यहां संसार खो गया। ब्रह्म की जिज्ञासा। और यहां से शुरू होता है, इसके पहले कुछ है इसीलिए शंकर ने बहुत-बहुत आग्रह करके कहा है कि संसार नहीं। तो जो किताबों को पकड़ते हैं, वे सोचते हैं कि शायद इसका माया है, स्वप्न है। इसलिए नहीं कि संसार स्वप्न है। बहुत पहला हिस्सा खो गया है। अथातो ब्रह्म जिज्ञासा ! इसका मतलब वास्तविक है। अगर स्वप्न होता, तो शंकर समझाते किसको? हुआ, यहां से ब्रह्म की जिज्ञासा। तो इसका मतलब है, यह किताब | लिखते-बोलते किसके लिए? स्वप्न के पात्रों के लिए? सिर
अधूरी है। आगे का हिस्सा कहां है? इस वाक्य से ऐसा ही लगता खोलते उनके साथ? सिर खपाते, वाद-विवाद करते पूरे मुल्क में है कि यहां से ब्रह्म की जिज्ञासा, तो अभी आगे की बात, इसमें | भटकते, स्वप्न के पात्रों के साथ? गांव-गांव खोजते? तब तो खुद पहले कोई और भी बात रही होगी, इसका कोई पहला खंड खो गया ही पागल साबित होते। है। नहीं तो अथातो ब्रह्म जिज्ञासा की क्या जरूरत है कहने की! ___ संसार अगर सच में ही स्वप्न है, तो शंकर को फिर
इस किताब का कोई हिस्सा नहीं खो गया है। यह किताब पूरी हिलना-डुलना ही नहीं था अपनी जगह से। फिर बोलने का कोई है। यह वचन अधरा लगता है, उसका कारण दसरा है। जिससे यह कारण नहीं था। किससे बोलना है? जब आप जाग जाते हैं सबह कहा गया है और जिसने यह कहा है, आयाम की बदलाहट है। और जानते हैं कि रात जो देखा, वह स्वप्न था, तब आप स्वप्न के अब तक हो रही थी संसार की बकवास। अब गुरु ने कहा, अथातो | पात्रों से कोई चर्चा करते हैं? उनको समझाते हैं कि सब झूठा था ब्रह्म जिज्ञासा। अब छोड़ यह बकवास। अब हम यहां से ब्रह्म की जो देखा। वे होते ही नहीं, समझाइएगा किसको? चर्चा शुरू करें। या शिष्य ने यहां कोई सवाल उठाया होगा, जिससे ___नहीं। शंकर जब कहते हैं, जगत स्वप्न है, तब इसका एक
आयाम बदल गया। जगत खो गया, स्वप्न हो गया, और ब्रह्म । डिवाइस, एक उपाय की तरह उपयोग कर रहे हैं। वे यह कह रहे हैं वास्तविक लगने लगा। इसलिए यहां से ब्रह्म की जिज्ञासा। कि अगर तुम जगत को एक स्वप्न देख पाओ, थोड़ी देर के लिए भी,
अर्जुन को यहां युद्ध खो गया, संसार मिट गया। और उसने पूछा | | तो तुम्हारी आंख उस तरफ हट सकती है, जो जगत के पार है। जब कि अब मैं देखना चाहता हूं, क्या है अस्तित्व! सीधा, प्रत्यक्ष, | तक तुम्हें जगत सत्य मालूम पड़ता है, तब तक तुम किसी और सत्य आमने-सामने, सीधे देख लेना चाहता हूं। अब मैं आपको भी बीच की खोज में निकलोगे ही कैसे! जब तक तुम्हारे चारों तरफ जिसने में लेने को तैयार नहीं हूं।
| तुम्हें घेरा है, वह तुम्हें इतना वास्तविक मालूम पड़ता है कि जीवन __ जिस दिन शिष्य कहता है गुरु से कि अब आप भी हट जाएं, | इसी में लगा दें; इसी दुकान में, इसी दो-दो पैसे को इकट्ठा करने में,
अब मैं सीधा ही देखना चाहता हूं, उस दिन गुरु के आनंद का कोई | | इसी मकान को खड़ा करने में, इन्हीं बच्चों को पालने-पोसने में, तुम्हें पारावार नहीं है। जब तक शिष्य कहता रहता है, मैं तो आपके चरण इतनी वास्तविकता लगती है कि अपने जीवन को इसमें तिरोहित कर ही पकड़े रहूंगा; चाहे आप नरक जाएं, तो मैं नरक चलूंगा; जहां | दें, समाप्त कर दें, शहीद हो जाएं, तब तक तुम उठोगे कैसे? उस जाएं, आपको छोड़ नहीं सकता; तब तक गुरु पीड़ित होता है। | तरफ आंख कैसे उठाओगे जो सत्य है? क्योंकि फिर यह एक नया मोह, एक नई आसक्ति, एक नया ___ इसलिए अगर यह बात खयाल में आ जाए कि यह स्वप्न है, उपद्रव, एक नया संसार...।
घडीभर को भी; यह बोध में गहरा उतर जाए कि चारों तरफ जो है, यहां अर्जुन क्या कह रहा है? बहुत डिप्लोमेटिकली, बहुत | | एक स्वप्न है, तो खोज शुरू हो जाती है कि सत्य क्या है! सत्य की राजनैतिक ढंग से क्षत्रिय था, होशियार था, कुशल था-बड़े खोज हो सके, इसलिए शंकर ने बड़े अनुग्रह से समझाया है लोगों शिष्ट ढंग से वह कष्ण से क्या कह रहा है. आप समझें। वह यह को कि जगत स्वप्न कह रहा है कि हटो तुम अब, अब मुझे सीधा ही देख लेने दो। अब लेकिन लोग बड़े मजेदार हैं। वे इस पर बैठकर विवाद करते हैं तुम्हारा रूप भी हटा लो। अब तुम्हारी आकृति भी विदा कर लो। | | कि स्वप्न है या नहीं! स्वप्न है, तो किस प्रकार का स्वप्न है! और
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