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________________ 8 गीता दर्शन भाग-500 विख्यात हो गया था, तो उसने कहा है कि अब जितना ही मैंने | की तलाश में हम निकले थे, उसकी स्मृति ही उठ जाती है। अनुभव किया है, दि यूनिवर्स लुक्स मोर लाइक ए थाट, दैन लाइक इसलिए अंतिम वचन में कृष्ण ने याद दिलाया कि यह मैंने तुझसे ए थिंग-एक विचार की भांति मालूम पड़ता है यह जगत, एक थोड़े से विस्तार की बातें कही हैं, लेकिन इस विस्तार में खो जाने वस्तु की भांति नहीं। की जरूरत नहीं है। यह मैंने कहा ही इसलिए, ताकि सब तीर मेरी लेकिन किसका विचार? एडिंगटन वैज्ञानिक आदमी है, वह यह तरफ इशारा कर सकें। और तू मुझको ही सारी खोज का अंत जान, नहीं कह सकता, ईश्वर का विचार। क्योंकि ईश्वर का उसे कोई पता सारी खोज का केंद्र जान। नहीं है। जो व्यक्ति भी ईश्वर की तरफ अपनी सारी खोज के तीरों को झुका कृष्ण कहते हैं, यह सारा जगत मेरी योग-माया के एक अंश का देता है, जो अपनी सारी कामनाओं को, सारी इच्छाओं को, सारी विस्तार है, मेरे विचार का, मेरे खयाल का। . प्रार्थनाओं को, सारी अभीप्साओं को, सारी आकांक्षाओं को एक ही यह सारा अस्तित्व एक स्वप्न है गहन, उस मूल ऊर्जा का एक ईश्वर की तरफ झुका देता है, उसे बहुत देर नहीं है कि वह पा ले। स्वप्न। उस मूल ऊर्जा का एक भाव, और जगत निर्मित हो जाता हम अगर खोते हैं उसे, भूलते हैं उसे, विस्मरण करते हैं उसे, है। उस मूल ऊर्जा का भाव क्षीण होता है, और जगत खो जाता है। नहीं जान पाते उसे, तो उसका कारण केवल इतना ही है कि कभी इसका यह मतलब नहीं है कि आप पत्थर पैर पर मारेंगे, तो खून हमने समग्रता से उसे चाहा ही नहीं, पुकारा ही नहीं। कभी समग्रता नहीं निकलेगा। इसका यह मतलब नहीं है कि आप नहीं हैं। आप से हमने जाना ही नहीं कि वही एक पाने योग्य है। अगर हमने कभी हैं। लेकिन आपके होने का जो घटक है, जो बुनियादी तत्व है, उसे पाना भी चाहा है, तो वह हमारे हजारों पाने वाली चीजों में एक जिससे आप निर्मित हैं, वह वस्तु नहीं है, विचार है। आप विचार | आइटम वह भी है। और वह भी आखिरी, वह भी आखिरी फेहरिस्त का एक जोड़ हैं, अनंत विचारों का एक जोड़ हैं। यह सारा जगत | पर। जैसे कोई बाजार में सामान खरीदने निकला हो, तो निन्यानबे अनंत विचारों का एक जोड़ है। चीजें उसने सब लिख हों-नोन, तेल, लकड़ी और आखिर में अगर हम भौतिकवादी और गैर-भौतिकवादी विचारों में मेद | | सौवां ईश्वर भी लिखा हो। ऐसे हम हैं। जब सब, तब आखिरी! . करना चाहें, तो वह यही होगा कि भौतिकवादी, मैटीरियलिस्ट ईश्वर को जो अपनी जिंदगी की खोज में आखिरी रख रहा है; कहता है कि जगत की जो बुनियादी इकाई है, वह पदार्थ है; और | वह उसे पाने में आखिरी सिद्ध होगा। जो उसे प्रथम रखता है, वही अध्यात्मवादी कहता है, जगत की जो मौलिक इकाई है. वह विचार उसे पाता है। जगत जिन ईंटों से बना है, वे ईंटें विचार की हैं। और अगर | लेकिन हम क्षुद्र को ऊपर रखे रहते हैं। अगर अभी कोई आपको पदार्थ भी हमें दिखाई पड़ता है, तो वह विचार की सघनता है, मिले और कहे कि एक कार दिए देते हैं या ईश्वर का दर्शन। क्या डेंसिटी आफ थाट। और जिसे हम अपने भीतर विचार कहते हैं, इरादा है ? तो आप कहेंगे, ईश्वर का दर्शन तो कभी भी हो जाएगा, उसमें और बाहर पड़े हुए पत्थर में जो फर्क है, वह गुण का नहीं है, | शाश्वत चीज है। कार पहले ले लें; इसका क्या भरोसा! क्षणिक मात्रा का है, डिग्रीज का है। अगर विचार ही गहन सघन हो जाए, | का भरोसा भी नहीं है, इसको आज ले लें। ईश्वर को तो कल भी तो पत्थर भी मौजूद हो सकता है, मैटीरिअलाइज हो सकता है। । | ले सकते हैं, अगले जन्म में भी ले सकते हैं। यह कोई जल्दी की कृष्ण कहते हैं, यह मेरी योग-माया का एक अंश है और इस | | बात नहीं है। आप पहले क्षुद्र को चुनेंगे। अंश पर ही मैं सारे जगत को धारण करके ठहरा हुआ हूं, इसलिए । ___ कृष्ण कहते हैं, विस्तार में तू मत जा। मैं तेरे सामने खड़ा हूं। तू मेरे को ही तत्व से जान। तू और विस्तार में मत पड़। तू सीधा | | मुझको ही तत्व से जान, उसकी ही आकांक्षा कर। मुझको ही तत्व से जान। मैं ही आधारभूत हूं, या जो आधारभूत है, | अंतिम बात। कृष्ण ने बहुत-से प्रतीक कहे। वे सब प्रतीक इशारे वही मैं हूं। विस्तार में तू खो सकता है। | हैं। कोई भी प्रतीक प्रतिमा नहीं है। कोई भी प्रतीक पूजा के लिए बहुत लोग डिटेल्स में खो जाते हैं। बहुत लोग इतने विस्तार में | नहीं है। सभी प्रतीक केवल समझ के लिए सहारे हैं। जो प्रतीकों की खो जाते हैं कि उन्हें पता ही नहीं रहता है कि वे किसकी खोज के पूजा में लग जाता है, वह भटक जाता है। प्रतीक पूजा के लिए नहीं लिए निकले थे। कई बार जंगल में खो जाने की वजह से जिस वृक्ष होता; प्रतीक इशारे के लिए होता है। 244
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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