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________________ ॐ मंजिल है स्वयं में 8 कृष्ण पूछते हैं, हे अर्जुन, इस बहुत जानने से फिर क्या प्रयोजन अगर आपने कभी सम्मोहन का कोई प्रयोग देखा है, हिप्नोटिज्म है! सिर्फ जानना ही है या तुझे उतरना भी है? तू कूदना भी चाहता का कोई प्रयोग देखा है, तो आपको खयाल में होगा। एक आदमी है या सिर्फ सोचता ही रहेगा? तू कुछ करने को आतुर है या सिर्फ को बेहोश कर दिया जाए और फिर उससे कहा जाए कि तू अब एक बौद्धिक कुतूहल है? पुरुष नहीं है, स्त्री हो गया। इस कोने से उस कोने तक स्टेज पर इस संपूर्ण जगत को अपनी योग-माया के एक अंश मात्र से चल। तो उसकी चाल स्त्री जैसी हो जाएगी। वह स्त्री जैसा चलेगा। धारण करके मैं स्थित हूं। उसे क्या हो गया है ? एक खयाल! उसको सम्मोहित करने वाला सारा जगत मेरा ही एक अंश मात्र है। यह बहुत कीमती वचन | | एक खयाल उसके मन में डालता है कि तू स्त्री है। यह खयाल है। क्योंकि मैंने कहा, सारा जगत ईश्वर है। सारा जगत ईश्वर है, | सक्रिय हो जाता है। वह स्त्री जैसा चलने लगता है। लेकिन सारा ईश्वर जगत नहीं है। सारा जगत ईश्वर है, लेकिन सारा लेकिन यह बहुत कठिन बात नहीं है। जो सम्मोहित व्यक्ति है, ईश्वर जगत नहीं है। क्योंकि ईश्वर की अनंत संभावनाएं हैं, अनंत | | गहरे सम्मोहन में गया है, उसके हाथ में आप एक फूल रख दें और जगतों में प्रकट होने की। ईश्वर तो इस पूरे अस्तित्व की मूल | | कहें कि यह आग का अंगारा है, तो चीख मारकर वह फूल को फेंक संभावना है। उसमें से कभी कोई एक बीज अंकुरित होता है, तो | | देगा। लेकिन यह भी बड़ी बात नहीं है, क्योंकि यह भाव है। बड़ी एक जगत निर्मित हो जाता है। उसमें से कभी कोई दूसरा बीज | | बात तो यह है कि उसके हाथ पर फफोला भी आ जाएगा-फूल निर्मित होता है, तो दूसरा जगत निर्मित हो जाता है। अनंत जगत हो | रखने से! सकेंगे, और हर जगत उसका एक अंश ही होगा। क्या हुआ? हमने अंगारा तो रखा नहीं, सिर्फ कहा था, अंगारा पूरा ईश्वर अगर जगत हो, तब ईश्वर भी सीमित हो गया। तब | | है! उसने मान लिया। बेहोशी में उसके हृदय में संदेह नहीं उठता। फिर दूसरा जगत नहीं हो सकता। अगर यही जगत सब कुछ हो | | श्रद्धा पूरी होती है। तर्क सोया होता है। विचार यह नहीं कहता कि ईश्वर का, तो फिर आगे कोई गति और कोई विकास नहीं है। फूल दिखाई पड़ रहा है, अंगारा कैसे! यही मतलब है सम्मोहित ईश्वर के अनंत होने का अर्थ है, यह जगत उसकी एक होने का कि उसकी जो बुद्धि है, सोचने का ढंग है, तर्क है, संदेह अभिव्यक्ति हैं। उसकी अनेक अभिव्यक्तियां हो सकती हैं। होती है. वह सो गया है। उसका अचेतन मन काम कर रहा है. चेतन मन रही हैं। होती रहेंगी। इसलिए कहा, एक अंश में ही मेरी योग-माया बंद हो गया है। उसका अनकांशस हिस्सा काम कर रहा है। उससे का उपयोग है। जो भी कहें, वह मान लेता है। वह पूर्ण श्रद्धा में है इस वक्त। आपने योग-माया शब्द का ठीक वही अर्थ होता है, जो अंग्रेजी में | कहा अंगारा, तो अंगारा हो जाता है हाथ पर। और जब प्राण समझ मैजिक का होता है, जादू का होता है। लेकिन जादू तो जादूगर करता | लेते हैं, अंगारा है, तो हाथ में फफोला आ जाता है। है! पर आपने खयाल किया, जादूगर करता क्या है? वह कहता है। सूफी फकीर इसी तरह जलती हुई आग पर नाचते हैं। उस नाचने कि यह रहा, यह आम का झाड़ होने लगा। और हाथ का इशारा में कुछ और नहीं है। सूफी फकीर प्रार्थनायुक्त होकर प्रभु से कह करता है और एक आम का झाड़ उगना शुरू हो जाता है। छोटे-से देता है कि अंगारे भी, हम तेरा नाम लेकर जाते हैं, तो फूल रहेंगे। झाड़ में आम के फल लगने शरू हो जाते हैं। वह आम का एक यह इतने गहरे में कही गई बात होती है कि अंगारे फिर जला नहीं फल तोड़कर आपको दे देता है। बड़ा चमत्कार है! पाते, क्योंकि शरीर मानता ही नहीं कि वे अंगारे हैं। जादूगर कर क्या रहा है? जो नहीं है, वह आपको दिखाई पड़ने | __यह सब हिप्नोटिज्म भी व्यक्तिगत प्रयोग है योग-माया का। लगे, इस कला का नाम जादू है। मैजिक का अर्थ है, जो नहीं है, | | परमात्मा के लिए सारा का सारा विराट जो विस्तार है, यह वह आपको दिखाई पड़े। वास्तविक सृजन नहीं है, यह केवल उसके विचार का फैलाव है। ईश्वर की भारतीय जो धारणा है, वह यह है कि जगत भी है नहीं, | बहत बड़े वैज्ञानिक एडिंगटन ने लिखा है कि जब मैं नया-नया केवल ईश्वर चाहता है, इसलिए दिखाई पड़ता है। यह है नहीं, | | विज्ञान के जगत में प्रविष्ट हआ था. तो मैं सोचता था कि जगत एक केवल ईश्वर चाहता है, इसलिए दिखाई पड़ता है। इसका होना | वस्तु की भांति है, जस्ट लाइक ए थिंग। अंतिम जीवन के दिनों में केवल उसकी धारणा है, उसका विचार है। एडिंगटन ने कहा है, जब वह नोबल प्राइज पा चुका था और जगत | 243|
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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