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________________ मंजिल है स्वयं में एक आदमी रास्ते से गुजर रहा है। और किनारे पर पत्थर लगा है, मील का पत्थर लगा है और उस पर तीर लगा है। वह मील का पत्थर बैठकर पूजा करने के लिए नहीं है, वह बैठने के लिए नहीं है । वह तीर यह कह रहा है कि यहां से आगे बढ़ो। अगर मंजिल तक पहुंचना है, तो पत्थरों पर मत रुकना । यह तीर कह रहा है, आगे चलो। ये जितने प्रतीक कृष्ण ने लिए हैं, यह उस महायात्रा के किनारे पर लगे हुए पत्थर हैं। इन पर रुकना नहीं है। बोकोजू एक मंदिर में ठहरा हुआ था। बौद्ध मंदिर था जापान का, लकड़ी की मूर्तियां थीं बुद्ध की। रात बहुत उसे सर्दी लगी । उसने एक मूर्ति उठाकर जला ली और आंच ताप ली। मंदिर का पुजारी घबड़ा गया; नींद खुली। आग देखकर मंदिर में, घबड़ाया हुआ आया और उसने कहा, यह क्या कर रहे हो? पागल हो तुम! तुम्हें मैंने ठहराकर कौन-सा पाप किया! तुम आदमी सीधे-सादे मालूम पड़ते थे। यह तुम भगवान बुद्ध को जला रहे हो ? बोकोजू ने कहा, भगवान बुद्ध ! बड़ी भूल हो गई। पास पड़ी एक छोटी-सी लकड़ी को उठाकर वह राख को कुरेदने लगा। उस पुरोहित ने पूछा, अब क्या कर रहे हो ? उसने कहा, मैं भगवान की अस्थियां खोज रहा हूं। उस पुरोहित ने कहा, तू बिलकुल पागल आदमी है। लकड़ी की मूर्ति जलाकर और अस्थियां खोज रहा है ! तो बोकोजू खिलखिलाकर हंसा और उसने कहा कि तुम भी जानते तो हो कि लकड़ी की मूर्ति है। तो फिर रात अभी बहुत बाकी है और सर्द बहुत ज्यादा है। और भीतर जो बुद्ध हैं, उनको बहुत सर्दी लग है। तुम दो मूर्तियां और उठा लाओ, तो रात बड़े आनंद से गुजर जाए! उस पागल को रात ही निकालना पड़ा। सर्द बहुत थी रात और उसने कहा भी था कि भीतर बुद्ध हैं, फिर भी भीतर के बुद्ध की कौन फिक्र करता? मूर्ति जलाने का गहन अपराध तो हो ही गया था। उसे रात ही बाहर कर दिया उस मंदिर के । उसने बहुत कहा कि तुम क्या कर रहे हो? बुद्ध बाहर किए दे रहे हो? लेकिन कौन उसकी सुनने को राजी था! दरवाजे बंद कर उसे बाहर फेंक दिया गया और रातभर सर्दी में बाहर ठिठुरता पड़ा रहा। सुबह जब मंदिर के द्वार खुले, तो उन्होंने देखा कि वह बाहर जाकर सड़क के किनारे एक पत्थर पर दो फूल रखकर पूजा कर रहा है। तब तो उस पुजारी को फिर परेशानी हुई। उसने जाकर कहा कि तुम आदमी किस भांति के हो ? रात भगवान की मूर्ति जला दी, और | अब सड़क के किनारे पड़े हुए पत्थर की बैठकर पूजा कर रहे हो ? बोकोजू ने कहा, पूजा करनी हो, तो कोई भी प्रतीक काम दे जाता है। कोई भी प्रतीक काम दे जाता है ! और पागल बनना हो, तो लोग प्रतीकों को प्रतिमाएं बना लेते हैं और भटक जाते हैं। सुबह के लिए | मान लिया कि बुद्ध यहां हैं । बुद्ध की पूजा करनी है, इस पत्थर पर भी की जा सकती है। यह सिर्फ प्रतीक है, यह केवल एक डिवाइस । लेकिन तेरी मूर्तियां बहुत वजनी हो गई हैं। तूने जिंदा बुद्ध को | बाहर फेंक दिया और लकड़ी की मूर्तियों को तूने भारी समझा। और जब मैं अस्थियां खोजने लगा, तब तुझे भी पता चल गया कि | अस्थियां वहां मिलेंगी नहीं, क्योंकि लकड़ी है। तेरी पूजा झूठी है। तू प्रतीक को प्रतिमा बना रहा है। यह आखिरी बात इस अध्याय में याद रखें, क्योंकि यह पूरे प्रतीक का अध्याय है। प्रतीक प्रतिमा नहीं है, इशारा है। सब प्रतीक उपयोगी हैं — मंदिर के, मस्जिद के, चर्च के, गुरुद्वारे के। सब प्रतीक उपयोगी हैं। कोई प्रतीक अंतिम नहीं है। प्रतीक से गुजर जाना, प्रतीक पर रुक मत जाना । प्रतीक पर ठहरना, उसका उपयोग करना और पार हो जाना। तो एक दिन विस्तार खो जाएगा, और केंद्र उपलब्ध हो जाता है। इतना ही। पांच मिनट रुकें। अंतिम दिन है, कोई उठे न ! कीर्तन में सम्मिलित हों और फिर जाएं। 245
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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