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________________ गीता दर्शन भाग-5 लेकिन अगर ऐश्वर्य खोजना हो, तो बूढ़े में खोजना, वृद्ध में खोजना। क्योंकि ऐश्वर्य अनुभव का निखार है, वह बच्चे में कभी नहीं होता। उसमें शक्ति होती है अदम्य । लेकिन अगर ऐश्वर्य खोजना हो, तो वह वृद्ध में खोजना । रवींद्रनाथ ने कहा है कि जब सच में ही कोई आदमी वृद्ध होता है – सच में ! हम सब भी बूढ़े होते हैं, लेकिन हमारा बूढ़ा होना वृद्ध होना नहीं है; सिर्फ क्षीण होना है, दीन होना है, दरिद्र होना है। हमारा वार्धक्य एक उपलब्धि नहीं है, सिर्फ एक लंबी गंवाई है, कमाई नहीं है। लंबा हमने गंवाया है। खोया है, खोया है। क्षीण हो गए। जर्जर हो गए। सब चुक गया। रवींद्रनाथ ने कहा है, जब सच ही कोई बूढ़ा होता है, तो उसके शुभ्र बाल वैसे ही हिमाच्छादित हो जाते हैं, जैसे हिमालय के पर्वत । उसके शुभ्र बालों में वैसी ही शीतलता और वैसा ही ऐश्वर्य आ जाता है, जैसे कभी जब गौरीशंकर पर बर्फ जमी होती है। अगर कोई व्यक्ति ठीक से जीया है, तो वार्धक्य उसका ऐश्वर्य को उपलब्ध हो जाता है। एक कांति, एक दीप्ति जो बूढ़े में ही होती है, बच्चे में नहीं हो सकती। बच्चे में एक अदम्य वेग होता है, शक्ति होती है, जो कुछ बन सकती है, नष्ट भी हो सकती है। अगर बूढ़ा उसे कुछ बनाने में समर्थ हो जाए, और वह जो शक्ति बच्चे में दिखाई पड़ी थी, अगर ठीक-ठीक यात्रा करे, तो ऐश्वर्य बन जाती है अंत में अनुभव से यात्रा करके शक्ति ऐश्वर्य बनती है। इसलिए जो समाज बूढ़े होते हैं, उनमें ऐश्वर्य देखा जा सकता है। जैसे अगर शक्ति देखनी हो, तो पश्चिम में देखनी चाहिए। और अगर ऐश्वर्य देखना हो, वह आभा देखनी हो जो वार्धक्य को उपलब्ध होती है, तो पूरब में देखनी चाहिए। इसलिए जो समाज पुराने होते हैं, वे बूढ़े को आदर देते हैं, बच्चे को नहीं। उनका आदर ऐश्वर्य के लिए है, चरम के लिए है, आखिरी के लिए है; अंतिम जो शिखर होगा, उसके लिए है। शक्तिशाली समाज बच्चों और जवानों पर निर्भर करेगा । ऐश्वर्यशाली समाज वृद्ध पर, वार्धक्य पर निर्भर करेगा। इसलिए हमने तो अपने मुल्क में बूढ़े हो जाने को ही काफी आदर की बात समझा है। जरूरी नहीं है कि बूढ़ा आदर के योग्य हो । लेकिन फिर भी हमने ऐसे वृद्ध देखे हैं कि उनके कारण सभी बूढ़े आदृत हो गए। और वृद्ध ही पा सकते हैं उस अंतिम बात को, उस सौम्यता को। एक तो भभक है आग की, और एक सिर्फ आभा है। ऐसा समझें कि जब सांझ सूरज डूब जाता है और रात नहीं आई होती है, तब जो प्रकाश फैल जाता है; या सुबह जब सूरज नहीं निकला होता, रात जा चुकी होती है, तब जो प्रकाश, जो आलोक फैल जाता है, वह आभा है, वह ऐश्वर्य है । शक्ति जला देती है, ऐश्वर्य केवल आलोकित करता है। शक्ति आग है; ऐश्वर्य केवल प्रकाश है और | शीतल है। ऐश्वर्य में कोई दंभ और दर्प नहीं है, शक्ति में होगा । शक्ति से प्रारंभ होता है जीवन का, ऐश्वर्य पर उपलब्धि होती है। कांति से यात्रा है। अगर शक्ति कांति से गुजरे, तो ही ऐश्वर्य को उपलब्ध होती है। अगर कोई व्यक्ति अपनी जीवन-ऊर्जा का | उपयोग क्षुद्र को खरीदने में करता रहे, तो कांतिहीन हो जाता है। हम कई बार हीरे-जवाहरातों को देकर रोटी के टुकड़े खरीद लाते हैं। कई बार कहना ठीक नहीं, अधिक बार, ज्यादातर जीवन में जो श्रेष्ठतम है, उसे गंवाकर हम क्षुद्र को खरीद लेते हैं। पूरा जीवन हमारा इसी नासमझी में बीतता है। बस, काफी धंधा किया, काफी लेन-देन किया, इसका भर सुख होता है। कांति का अर्थ है, जो व्यक्ति अपनी जीवन-ऊर्जा को निरंतर श्रेष्ठ के लिए समर्पित कर रहा है । उस व्यक्ति को कांति उपलब्ध होती है, जो जितनी शक्ति देता है, उससे ज्यादा पाता है। जो हमेशा लाभ में है, एक आंतरिक लाभ में। अगर एक इंचभर अपनी शक्ति खोता है, तो इसीलिए कि कोई विराट का द्वार खुल रहा अन्यथा नहीं खोता । इसे हम ऐसा समझें, जैसा मैंने पीछे आपको कहा। काम ऊर्जा है, सेक्स एनर्जी है । आप उसे केवल शरीर के तथाकथित सुख में | गंवा सकते हैं जीवनभर, सारी कांति खो जाएगी। आपके चारों तरफ जो एक मंडल चाहिए व्यक्तित्व का, वह सिकुड़ जाएगा। कभी आपने खयाल किया है, काम-ऊर्जा के क्षीण होते ही आपको एक सिकुड़ाव का अनुभव होता है । कोई चीज सिकुड़ गई भीतर, आप दीन हुए। आपने कुछ खोया, पाया कुछ भी नहीं । ठीक इससे विपरीत स्थिति उस व्यक्ति को उपलब्ध होनी शुरू होती है, जिसकी काम-ऊर्जा ऊर्ध्वगामी होती है और प्रभु के चरणों में समर्पित होने लगती है; और जिसकी काम-ऊर्जा व्यक्तियों और | दूसरे व्यक्तियों की तरफ प्रवाहित नहीं होती, वरन अपनी अंतरात्मा की तरफ प्रवाहित होने लगती है। हर इंच पर उसे लगता है, जीवन विराट हुआ, और बड़ा हुआ। ब्रह्मचर्य शब्द हम सब सुनते हैं, बात करते हैं, लेकिन आपको खयाल न होगा कि इसका अर्थ क्या होता है ! इसका अर्थ होता है, ब्रह्म जैसी चर्या। और ब्रह्म का आपको अर्थ पता है ? ब्रह्म का अर्थ 240
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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