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________________ 3 मंजिल है स्वयं में अंधे हो जाएंगे। सूरज को सीधा नहीं देखा जा सकता। | यह दूसरी बात है। कब छिप गई होगी, यह दूसरी बात है। लेकिन लेकिन कोई आदमी सूरज के सामने खड़ा हो, सूरज को तो देख | वह सूरज की किरण है। सूरज प्रतिपल अपनी रोशनी दे रहा है। वह नहीं सकता सीधा, आंखें बंद हो जाएंगी। करीब-करीब अर्जुन वैसे हजारों-हजारों जगह इकट्ठी हो रही है, संगृहीत हो रही है। वही ही कृष्ण के सामने खड़ा है। वह भी नहीं देख पा रहा है। वह भी रोशनी आप पुनः पा लेते हैं। नहीं देख पा रहा है कि कौन सामने है, किससे वह पूछ रहा है, लेकिन सूरज को सीधे देखना मुश्किल है। दीए को आप मजे से किससे वह समझ रहा है। वह भी नहीं देख पा रहा है, वह भी नहीं सीधा देख सकते हैं। दीया बहुत अंश में सूरज है, लेकिन तेज समझ पा रहा है। ठीक है, मित्र है, बुद्धिमान है, आदर योग्य है, उसका ही है। और कभी-कभी किसी क्षण में रहस्यपूर्ण है। कुछ जानता है। सीखा तो कृष्ण कहते हैं, जहां-जहां ऐश्वर्य, जहां-जहां विभूति, जा सकता है उससे। लेकिन अभी वह सूर्य नहीं दिखाई पड़ रहा है जहां-जहां कांति, जहां-जहां शक्ति दिखाई पड़े, वहां-वहां मेरे ही जो कृष्ण हैं। वे आंखें बंद हैं। तेज के अंश से उत्पन्न है, ऐसा तू जानना। __वह पूछता है कि मैं कहां-कहां आपको देखू? जो सामने खड़ा ___ जो शब्द चुने हैं, एक तो है ऐश्वर्य, विभूति, कांति, शक्ति, वे है, वहां न देखकर वह पूछता है, कहां-कहां आपको देखू ? जैसे सब संयुक्त हैं। शक्ति का अर्थ है, ऊर्जा, एनर्जी। एक छोटे-से कोई सूरज से पूछे, तो सूरज कहे, जहां-जहां कोई दीया तुझे दिखाई | । बच्चे में शक्ति दिखाई पड़ती है। एक बूढ़े में शक्ति क्षीण हो गई पड़े, जो अंधेरे को तोड़ता हो, तो जानना कि वहां-वहां मैं हूं। तो | होती है, उस अर्थों में जैसी बच्चे में दिखाई पड़ती है। जहां-जहां भी कोई दीया चमके और भभककर प्रकाश कर दे, | इसलिए जो शक्ति की खोज कर रहे हों, बेहतर है कि बच्चे में वहां-वहां समझना, मेरी ही ज्योति है, मेरा ही तेज है। खोजें, बूढ़े में खोजने न जाएं। वहां शक्ति तो क्षीण होने लगी है। यह जो कृष्ण कहते हैं, जहां-जहां ऐश्वर्य तुझे दिखाई पड़े...। जो शक्ति की खोज कर रहे हों, बेहतर है कि सुबह के सूरज में अगर ईश्वर नहीं दिखाई पड़ता, तो बेहतर है कि तू ऐश्वर्य को देख। खोजें, सांझ के सूरज में खोजने न जाएं, क्योंकि वहां तो ढलने लगा अगर सूरज नहीं दिखाई पड़ता, तो बेहतर है कि तू प्रकाश को देख। | सब। शक्ति तो जितनी नई हो, उतनी तीव्र और गहन होती है। जो जहां-जहां तुझे चमकदार प्रकाश दिखाई पड़े, समझना कि मेरा ही शक्ति को खोजने चलेंगे, उनके लिए बच्चे ईश्वरीय हो जाएंगे अंश, मेरा ही तेज प्रकट हो रहा है। वहां शक्ति अभी नई है, अभी फव्वारे की तरह फूटती हुई है। अभी सूरज का तेज तो हम देख सकते हैं दीयों में, वह बड़ी कठिन उबलता हुआ है वेग, अभी सागर की तरफ दौड़ेगी यह गंगा। अभी बात नहीं है। छोटे-से आपके घर में भी दीए की जो ज्योति जलती यह गंगोत्री है, छोटी है, लेकिन विराट ऊर्जा से भरी है। है, वह सूरज का ही हिस्सा है। वह सूरज का ही हिस्सा है। यह बड़े मजे की बात है। गंगोत्री में जितनी शक्ति है, उतनी जब . एकदम से समझना कठिन होगा। अगर आप मिट्टी का तेल | गंगा सागर में गिरती है, तब नहीं होती है। बड़ी तो हो जाती है गंगा जला रहे हैं, तो आपको पता नहीं होगा कि मिट्टी का तेल निर्मित बहुत, लेकिन बूढ़ी भी हो जाती है। विशाल तो हो जाती है, लेकिन इसीलिए हुआ है कि लाखों-लाखों साल में पृथ्वी के द्रव्यों ने सूरज | शक्ति का विशालता से कोई संबंध नहीं है। शक्ति तो, सच है कि की किरणों को पीया है। और वे ही किरणें आपको वापस आपके जितना छोटा अणु हो, उतनी गहन होती है। मिट्टी के तेल से आपके दीए में वापस उपलब्ध हो जाती हैं। जब इसलिए आज विज्ञान अणु में सर्वाधिक शक्ति को उपलब्ध कर आप एक लकड़ी को रगड़कर जलाते हैं—जैसा कि पुराने जमाने पाया है। परमाणु में, क्षुद्र परमाणु में, अति क्षुद्र परमाणु में, उसमें में रिवाज था—दो लकड़ियों को रगड़कर या दो चकमक पत्थरों जाकर शक्ति का स्रोत मिला है। को रगड़कर आप जब किरण पैदा करते हैं, तो आपको खयाल न छोटे-से बच्चे में भी, पहले दिन के बच्चे में जो शक्ति है, फिर होगा, अरबों-अरबों वर्षों में पत्थर सूरज को पी गए हैं। वही पुनः । वह रोज कम होती चली जाएगी। शक्ति को देखना हो, तो नए में प्रज्वलित हो जाता है। खोजना। इसलिए जो भी समाज नए होते हैं, वे बच्चों का आदर लकड़ी के भीतर भी सूरज छिपा है और आपके भीतर भी। जहां | | करते हैं। जो समाज शक्तिशाली होते हैं, वे बच्चों का आदर करते भी ज्योति है, वहां सूरज की किरण है। वह कब पी ली गई होगी, | हैं, सम्मान करते हैं। 239]
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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