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________________ गीता दर्शन भाग-500 पीक एक्सपीरिएंस! कोई भी अनुभव जहां शिखर पर हो, जहां से | तो हम सुन लें। आपको लगे कि इसके पार जाना कहां संभव है, जहां आपको लगे __संभवतः कभी दुनिया के इतिहास में कोई सम्राट किसी फकीर कि इसके पार नहीं जाया जा सकता, वहीं आप समझना...। को ऐसा चोरी से सुनने नहीं गया। अकबर गया। रात दो बजे से वे एक घटना आपसे कहूं, तो खयाल में आए। झोपड़ी के बाहर छिपकर अंधेरे में बैठे रहे। एक-एक क्षण मुश्किल अकबर को निरंतर लगता था कि तानसेन से पार जाना, संगीत | | था। कोई चार बजे हरिदास ने अपनी वीणा बजानी शुरू की। में, असंभव है। था भी। ऐश्वर्य था वहां, जैसे तानसेन की अकबर के आंसू ठहरते ही नहीं हैं। वीणा बंद हो गई और अकबर अंगुलियों से ईश्वर बरसता हो। तानसेन से और आगे भी कोई जा को फिर भी सुनाई पड़ती रही! सकता है, इसकी कल्पना भी तो मुश्किल है। यह इनकंसीवेबल फिर तानसेन ने हिलाया कि बहुत समय हो गया, वीणा तो बंद हो है। इसकी धारणा नहीं बनती। चुकी। अब हम चलें भी। और अब जल्दी ही सूरज निकलने के अकबर ने एक दिन तानसेन को आधी रात विदा करते वक्त करीब है। लेकिन अकबर उठकर ऐसा ही चलने लगा, जैसे अभी सीढ़ियों पर कहा कि तानसेन, बहुत बार मन में ऐसा होता है, तुझसे | | भी खोया हो किसी और ही लोक में। रास्तेभर वह तानसेन से नहीं पार जाना असंभव है, कल्पना भी नहीं कर पाता हूं। कभी सपने में | | बोला। सीढ़ियां चढ़ते अपने महल के उसने तानसेन से कहा कि यह भी मैं सुनता हूं संगीत, तो भी तुझसे फीका होता है। सपने में भी | तो बड़ी मुश्किल हो गई। मैं तो सोचता था, तेरा कोई मुकाबला नहीं तुझसे ऊपर नहीं जा पाता। आज अचानक तुझे सुनते-सुनते एक है। लेकिन अब मैं सोचता हूं, तेरे गुरु से तेरा क्या मुकाबला! तूं कुछ अजीब-सा खयाल मेरे मन में आया कि तेरा भी तो कोई गुरु होगा। भी नहीं है। क्यों इतना अंतर है लेकिन? इतना फर्क क्यों है? तूने शायद किसी से सीखा हो। अगर तूने सीखा है, तो एक बार तो तानसेन ने कहा, फर्क बहुत साफ है। सीधा उसका गणित तेरे गुरु के दर्शन की इच्छा मन में पैदा हो गई है। कौन जाने, तेरा | | है। मैं कुछ पाने के लिए बजाता हूं। और उन्होंने कुछ पा लिया है, गुरु तुझसे आगे जाता हो! इसलिए बजाते हैं। मैं कुछ पाने के लिए बजाता हूं। मेरा बजाना एक तानसेन ने कहा, बड़ी मुश्किल बात है। गुरु मेरे हैं। पर बड़ी | व्यवसाय है। मेरी नजर तो उस पुरस्कार पर होती है, जो बजाने के मुश्किल बात है। अकबर ने कहा, क्या मुश्किल है? कुछ भी खर्च | । बाद मुझे मिलेगा। मेरा धंधा है। उनके लिए संगीत आत्मा है। कुछ करना पड़े, हम अपने खजाने लुटाने को तैयार हैं, लेकिन तेरे गुरु | पाने को नहीं बजाते। कुछ पाने को उन्हें है भी नहीं। लेकिन जो पा को सुनना होगा। तानसेन ने कहा, यही मुश्किल है, कि मेरे गुरु को लिया है भीतर, कभी-कभी वही ओवरफ्लो, कभी वही ऊपर से दरबार में नहीं लाया जा सकता। कोई कीमत नहीं है जिससे दरबार बहने लगता है और संगीत बन जाता है। कभी-कभी वही जो भीतर में लाया जा सके। ऐसा नहीं है कि वे कोई जिद्दी हैं या अहंकारी हैं। अतिरेक से हो जाता है, वही उनका संगीत बन जाता है। झोपड़े में भी चले जाते हैं, यहां भी आ जाएंगे। तो अकबर ने कहा, | ___ अकबर ने तानसेन से कहा कि पहली दफा मैने संगीत में ऐश्वर्य फिर क्या कठिनाई है? तानसेन ने कहा, कठिनाई यह है कि चेष्टा देखा है, दि पीक, शिखर देखा है। से, प्रयत्न से, वे कभी वाद्य नहीं छूते हैं। जब उनके प्राण ही | कृष्ण कहते हैं, जहां-जहां ऐश्वर्य है, जहां-जहां अभिव्यक्ति आंदोलित होते हैं, तभी छूते हैं। कभी! कुछ कहा नहीं जा सकता। | अपनी आखिरी चोटी को छू लेती है, वहीं-वहीं मैं हूं, वहीं-वहीं सहज स्फुरणा जब उन्हें होती है तभी। कोई फरमाइश नहीं हो सकती| मेरा ही अंश प्रकट होता है। है। कहा नहीं जा सकता कि आप बजाइए, कि आप गाइए। । इसे ठीक से समझ लेना। इसका अर्थ यह हुआ, जैसे सूरज अकबर ने क | किसी से कहे...। क्योंकि सरज को सीधा देखना बहत मुश्किल लगाऊंगा। क्योंकि कभी-कभी वे सुबह ब्रह्ममुहूर्त में प्रभु की स्तुति है। दस करोड़ मील दूर है सूरज, फिर भी हम आंख गड़ाकर देख करते हैं; कभी। तो हम झोपड़े के पीछे छिप जाएं उनके। क्योंकि वे नहीं सकते, आंखें मुश्किल में पड़ जाती हैं। अगर सूरज के सामने तो एक फकीर हैं। उनका नाम था हरिदास, वे एक फकीर थे। जमुना ही खड़े हों, तो आंखें अंधी हो जाएंगी। यह बड़े मजे की बात है। के किनारे रहते हैं झोपड़े में। हम पीछे छिप जाएं आधी रात सूरज के बिना सारी पृथ्वी पर अंधेरा हो जाता है। सूरज के बिना चलकर। पता नहीं, चार बजे, तीन बजे, पांच बजे, कब वे बजाएं, हम सब अंधे हो जाते हैं। और सूरज को सामने से देखें, तो भी हम Nणा 238
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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