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3 मंजिल है स्वयं में
जिसके हैं, वही है ईश्वर।
| वक्तव्य देता हूं, तो भूल हो जाती है। अगर मैं कहूं, ईश्वर नहीं है, इसे हम ऐसा समझें कि आप सागर के किनारे खड़े हो जाएं। तो भी गलत है। और अगर मैं कहूं, ईश्वर है, तो भी गलत है। आपने सागर कभी देखा न होगा। आप कहेंगे, बिलकुल कैसी | इसलिए उचित है कि मैं चुप ही रहूं, कुछ भी न कहूं। पागलपन की आप बात कर रहे हैं! हम सब सागर के किनारे ही अगर कोई आपसे सागर के किनारे पूछने लगे कि सागर किस रहने वाले लोग, सागर हम रोज देखते हैं। लेकिन मैं आपसे कहता लहर जैसा है? तो आप भी सोचेंगे कि उचित है, चुप ही रहूं, जवाब हूं, सागर आपने कभी नहीं देखा। सिर्फ आपने सागर के ऊपर की न दूं। अगर आप यह कहें कि इस लहर जैसा है, तो भी गलती हो उठती हुई लहरें देखी हैं। लहरें सागर नहीं हैं। लहरों में सागर है; जाती है। अगर आप कहें कि सब लहरों जैसा है, तो भी गलती हो लहरें सागर नहीं हैं। क्योंकि सागर बिना लहरों के भी हो सकता है, जाती है। क्योंकि सब लहरों से बड़ा है। और अगर आप कहें, लहरें बिना सागर के नहीं हो सकतीं।
किसी लहर जैसा नहीं, तो भी गलती हो जाती है, क्योंकि सभी लेकिन आप लहरों को देखकर लौट आते हैं और सोचते हैं, लहरों में वही है। यह है तकलीफ। सागर को देखकर लौट आए। हर लहर में सागर है, सब लहरों में कृष्ण कहते हैं, मेरे विस्तार का कोई अंत नहीं है। तो संक्षेप में सागर है। लेकिन सागर लहरों के पार भी है, लहरों से गहरा भी है। तुझे कुछ लहरों के प्रतीक मैंने दिए हैं। उन लहरों के प्रतीक से भी लहरें सागर के ऊपर ही डोलती रहती हैं। सागर बहुत बड़ा है। हमने अगर तू नीचे झांकेगा, तो तू सागर में पहुंच जाएगा। लहरें ही देखी हैं। इसलिए कोई यह भी पूछ सकता है कि किस लहर लेकिन खतरा एक है। अगर आप लहर में डुबकी लगाएं, तो को आप सागर कहते हैं?
आप सागर में पहुंच जाएं। लेकिन अगर किनारे पर बैठकर लहर हमने आदमी देखे हैं। पौधे देखे हैं। पशु देखे हैं। पक्षी देखे हैं। का चिंतन करें, तो आप कभी सागर में नहीं पहुंच सकते। और हम हम पूछते हैं कि किसको आप भगवान कहते हैं? कौन है ईश्वर? | सब लहर का चिंतन करते हैं। और सोचते हैं कि चिंतन करते-करते
ये सब लहरें हैं उसी एक सागर की। इन सबके भीतर जो है, इन कभी तो सागर में पहुंच जाएंगे। डुबकी लगानी पड़ेगी। लहर में सबके नीचे जो है, जिस पर ये लहरें उठती हैं और जिसमें ये लहरें डुबकी लगानी पड़ेगी। विलीन हो जाती हैं, वह सागर परमात्मा है। वह हमने नहीं देखा; — कृष्ण ने जो प्रतीक दिए हैं, अगर किसी में भी डुबकी लग जाए, हम लहरें ही देख पाते हैं।
तो परमात्मा से संबंध जुड़ जाए। लेकिन अगर आप बैठकर चिंतन मैं आपको देखता हूं, लेकिन उसको नहीं देखता, जो आपके करने लगें, तो आप किनारे पर बैठ गए। विचार किनारा है जगत पहले भी था; आपके भीतर भी है अभी; और कल आप गिर का। अनुभूति, कहें ध्यान, कहें समाधि, छलांग है सागर में। जाएंगे, तब भी होगा। आप तो सिर्फ एक लहर हैं, जो उठी जन्म ___ इसलिए हे अर्जुन, जो-जो भी विभूतियुक्त, ऐश्वर्ययुक्त, के दिन और गिरी मृत्यु के दिन; और कभी जवान थी और आकाश | कांतियुक्त, शक्तियुक्त है, उस-उस को तू मेरे तेज के अंश से को छूने का सपना देखा। आप सिर्फ एक लहर हैं। लेकिन जब उत्पन्न जान। आप नहीं थे, आपकी आकृति नहीं थी, तब भी आप सागर में थे। जहां-जहां तुझे कोई अभिव्यक्ति अपनी चरम स्थिति को छूती
और कल आपकी आकृति गिरकर लीन हो जाएगी, तब भी आप हुई मालूम पड़े, कोई शिखर जहां गौरीशंकर बन जाता हो, कोई सागर में होंगे। सागर सदा होगा।
फूल जहां पूरा खिल जाता हो; जहां भी तुझे लगे ऐश्वर्य, जहां भी जो सदा है, वही परमात्मा है। जो कभी है, वही लहर है; और तुझे लगे कांति, जहां भी तुझे लगे विभूति, जहां भी तुझे लगे कि कभी नहीं हो जाता है। इसलिए परमात्मा को तो यह भी कहना ठीक कुछ असाधारण घटित हुआ है, जहां भी तुझे लगे कि कोई चीज नहीं है कि वह है। क्योंकि जितनी चीजों को हम कहते हैं है, वे सभी अपनी चरमता को पहुंच गई, अपनी ऊंचाई को छू ली...। नहीं हो जाती हैं। सभी नहीं हो जाती हैं। जिसको भी हमने कहा है। अमेरिका के बहुत बड़े मनोवैज्ञानिक इरिक फ्रोम ने एक शब्द कल वह नहीं हो जाएगी। और परमात्मा कभी भी नहीं नहीं होता। | ईजाद किया है, और प्रचलित हो गया है और कीमती शब्द है। तो हमारा है शब्द भी बहुत छोटा पड़ जाता है।
| इरिक फ्रोम ने कहा है कि जहां भी पीक एक्सपीरिएंस, कोई शिखर इसलिए बुद्ध ने तो कहा कि मैं वक्तव्य ही न दूंगा। क्योंकि अनुभव हो, वहीं व्यक्तित्व उस रहस्यमय के करीब पहुंचता है।
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