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गीता दर्शन भाग-58
तीसरा सिद्धांत मौजूद था, जो मैं लिख रहा हूं।
कृष्ण जानते होंगे; आप गीता कंठस्थ कर लें, इससे कुछ ज्ञान किताब बड़ी कीमती है, बड़ी अदभुत है। और कभी-कभी | नहीं होगा। बुद्ध जानते होंगे; आप धम्मपद याद कर लें, इससे हैरानी होती है कि बिना जाने भी आदमी का मस्तिष्क कितनी बड़ी कुछ होगा नहीं। यह उधार है। और ध्यान रहे, उधार ज्ञान ज्ञान चीजें लिख सकता है। उसे कोई आत्मज्ञान नहीं था। पर यह किताब | होता ही नहीं। उधार ज्ञान ज्ञान होता ही नहीं। अपना ज्ञान ही सिर्फ ऐसी है कि पढ़कर ऐसा लगे कि यह आदमी परम ज्ञानी है। ज्ञान है। दूसरा क्या जानता है, वह आपको सब दे दे, आपके पास
गुरजिएफ ने कहा कि मुझे पता है कि तू कौन है आस्पेंस्की। तेरी । | ज्ञान नहीं आता, सिर्फ शब्द आते हैं। शब्द आप इकट्ठे कर लेते टर्शियम आर्गानम मैंने देखी है। तेरे संबंध में मुझे खबर है। पहले तू हैं, स्मृति में शब्द बैठ जाते हैं। फिर स्मृति को ही आप समझते हैं लिख दे कि जो-जो तू जानता है, उसकी हम बात ही नहीं करेंगे। या कि मैं जानता हूं। अगर तू कहता है कि टर्शियम आर्गानम में जो-जो तूने लिखा है, वह स्मृति ज्ञान नहीं है। ज्ञान का अर्थ है, अनुभव। आपका ही तू जानता है, तब तो बात की कोई जरूरत नहीं है। नमस्कार! | | साक्षात्कार हो, आप ही आमने-सामने आ जाएं, आपका ही हृदय
आस्पेंस्की को ऐसा आदमी कभी मिला ही नहीं था। यह भी कोई | जाने, जीए, धड़के, उस अनुभव में, तो ही तत्व-ज्ञान है। बात हुई! गुरजिएफ ने कहा कि पास के कमरे में चला जा। मेरे कृष्ण कहते हैं, ज्ञानियों, ज्ञानवानों का तत्व-ज्ञान मैं ही हूं, सामने तुझे संकोच होगा। यह कागज ले जा और लिख ला। अनुभव मैं ही हूं।
आस्पेंस्की ने लिखा है कि मैं कागज-कलम लेकर बैठ गया। और यह बड़े मजे की बात है कि उस तत्व-जान में उस निजी जब मैं लिखने बैठता हूं, तो मेरा हाथ रुकता ही नहीं। उस दिन मेरा - अनुभव में जो जाना जाता है, वही परमात्मा है। निजी अनुभव में हाथ एकदम जाम हो गया। क्या लिखू, जो मैं जानता हूं! जो भी | | जो जाना जाता है, वही परमात्मा है। निजी अनुभव ही परमात्मा है। लिखने की कोशिश करता हूं, भीतर से खबर आती है, यह मैं | | परमात्मा के संबंध में जानना परमात्मा को जानना नहीं है। टु नो जानता कहां हूं? पढ़ा है, सुना है, समझा है। बुद्धि को पता है, मुझे | अबाउट गॉड इज़ नाट टु नो गॉड। अबाउट, संबंध में-झूठी बातें कहां पता है! मेरा अनुभव, ईश्वर? कोई मेरा अनुभव नहीं। | हैं। परमात्मा को ही जानना, संबंध में नहीं। उसके बाबत नहीं, आत्मा? कोई मेरा अनुभव नहीं। ध्यान? कोई मेरा अनुभव नहीं। | उसको ही जानना तत्व-ज्ञान है। यह कब घटित होता है? अज्ञान
वह कोरा कागज लाकर उसने गुरजिएफ को दे दिया। उसकी | | हमारी सहज स्थिति है। फिर अज्ञान को हम ज्ञान से ढांक लेते हैं, आंख में आंसू टपक रहे थे। उसने कहा, मुझे क्षमा करना। मुझे तो भ्रांति पैदा होती है। लगता है, जान लिया। कुछ भी पता नहीं है। यह कोरा कागज आप ले लें।
उपनिषदों ने कहा है बड़ा बहुमूल्य सूत्र, संभवतः इससे गुरजिएफ ने कहा कि तब तू आगे बढ़ सकता है। क्योंकि जिसने | | क्रांतिकारी वचन जगत में खोजना कठिन है। और उपनिषद को तथाकथित ज्ञान को ही ज्ञान समझ लिया, वह फिर आगे नहीं बढ़ | लोग पढ़ते रहते हैं और उसी उपनिषद को कंठस्थ कर लेते हैं। ऐसा सकता। तू तत्व-ज्ञानी भी हो सकता है। अभी तक तू ज्ञानी था, अब आदमी मजेदार है और विचित्र है। तू तत्व-ज्ञानी भी हो सकता है। जब ज्ञानी को पता चलता है, मैं | ___ उपनिषद ने कहा है कि अज्ञानी तो भटकते ही हैं अंधकार में, ज्ञानी नहीं है, तब तत्व-ज्ञान की यात्रा शुरू होती है।
| ज्ञानी महाअंधकार में भटक जाते हैं! और ध्यान रहे, अज्ञान इतना नहीं भटकाता, जितना तथाकथित | यह किन ज्ञानियों के लिए कहा होगा जो महाअंधकार में भटक उधार ज्ञान भटकाता है। अज्ञानी तो विनम्र होता है। उसे पता होता | जाते हैं! और मजा यह है कि इसी उपनिषद को लोग कंठस्थ कर है, मुझे पता नहीं। लेकिन तथाकथित जो ज्ञानी होते हैं, जिनके लेते हैं। और इस सूत्र को भी कंठस्थ कर लेते हैं। और इस सूत्र को मस्तिष्क में सिवाय शास्त्र के और कुछ भी नहीं होता। शास्त्र की | | रोज कहते रहते हैं कि अज्ञानी तो भटकते ही हैं अंधकार में, ज्ञानी प्रतिध्वनियां होती हैं। उनको यह भी खयाल नहीं आता कि हम नहीं | | महाअंधकार में भटक जाते हैं। इसको भी कंठस्थ कर लेते हैं। जानते। उनको तो पक्का मजबूत खयाल होता है कि मैं जानता हूं। | सोचते हैं, इसे कंठस्थ करके वे ज्ञानी हो गए। इन्हीं ज्ञानियों के यह मैं जानता हूं, यही उनकी बाधा बन जाती है।
| भटकने के लिए यह सूत्र है। तत्व-ज्ञान का अर्थ है, जब निजी अनुभव हो।
आदमी विचित्र है। और आदमी अपने को धोखा देने में अति
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