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ॐ गीता दर्शन भाग-500
हो, तो वह भी सुंदर दिखाई पड़ने लगता है। और तब हम कहते हैं जाए। वह सिर्फ अपने पर राजी हो जाए। वह दूसरे में तलाश करने कि तुझसे सुंदर पुरुष, तुझसे श्रेष्ठ पुरुष, खोजना असंभव है। और न जाए। दूसरे से कहे भी न, क्या उसके भीतर हो रहा है। तब म्युचुअल कल्पना की दौड़ शुरू होती है। और तब वे दोनों । और न कहने का एक कारण और भी है, कि जैसे ही आप कहते एक-दूसरे को शिखर पर उठाए चले जाते हैं। और यह शिखर हैं, आपकी गति अवरुद्ध हो जाती है। क्योंकि कहने का अर्थ ही जितना ऊंचा होगा, उतनी ही खाई में कल गिरेंगे। क्योंकि यह | | यह हुआ कि आप बड़े तृप्त हो गए। जब मैं किसी से कहता हूं कि शिखर कल्पना का है।
बड़ी शांति हो गई भीतर, तो उसका अर्थ है कि मैं तृप्त हो गया। इसलिए ध्यान रखें, प्रेम-विवाह जिस खतरे में ले जाता है, कोई गति अवरुद्ध हो जाएगी। विवाह नहीं ले जा सकता। और प्रेम-विवाह जिस बुरी तरह ___ अगर बढ़ाए जाना है भीतर की गति को और रुक नहीं जाना है, असफल होता है, कोई विवाह असफल नहीं हो सकता। उसका तो मत कहें। मत कहें। इसे किसी से कहें ही मत। यह आपका ही कारण यह नहीं है कि प्रेम-विवाह बुरा है; उसका कुल कारण इतना | | रहस्य हो। यह आपकी निजी संपदा हो। इसका किसी को भी पता है कि प्रेम-विवाह एक म्युचुअल कल्पना पर निर्मित होता है। | न चले। यह ऐसी कुछ बात हो कि आप और आपके परमात्मा के
भारत में विवाह एक सफल संस्था है, क्योंकि हमने प्रेम को | बीच ही रह जाए। बिलकुल ही काट दिया है उसमें से। कल्पना का सवाल ही नहीं, | ___ इसलिए इतनी सीक्रेसी, इतनी गुप्तता धर्मों ने निर्मित की है। उस जमीन पर ही चलाते हैं आदमी को। यहां पति-पत्नी होते हैं, सीक्रेसी के पीछे और कोई कारण नहीं है। उस गुप्तता के पीछे, प्रेमी-प्रेयसी होते ही नहीं। कभी आकाश में चढ़ते ही नहीं, तो गड्डे गोपनीयता के पीछे और कोई कारण नहीं है। वह सहयोगी है में गिरने का सवाल ही नहीं आता। समतल भूमि पर चलते रहते हैं। अंतर्विकास में, इनर ग्रोथ में।
अमेरिका में बुरी तरह विवाह अस्तव्यस्त हुआ जा रहा है। और कृष्ण कहते हैं, गोपनीयों में अर्थात गुप्त रखने योग्य भावों में मैं उसका कारण है कि विवाह की बुनियाद दो आदमी एक-दूसरे को मौन हूं। अगर तुझे मुझे खोजना हो भावों में, तो तू मुझे मौन में नशे में डालकर रखते हैं। वह नशा कितनी देर चलेगा? कितनी देर खोजना। अर्जुन ने पूछा भी है कि किस भाव में मैं खोजूं? तो कृष्ण चल सकता है?-वह नशा जल्दी ही उतर जाता है। और इतने बड़े | कहते हैं, तू मुझे मौन में खोजना। अगर तू बिलकुल मौन हो जाए, सपनों के बाद जब जमीन पर लौटते हैं, तो लगता है कि बेकार हो | तो तू मुझे पा लेगा। गया, धोखा हो गया। गलती हो गई, भूल हो गई। वे सब कविताएं हमारे और सत्य के बीच दीवाल शब्दों की है। एक फूल के पास धुआं हो जाती हैं।
से आप गुजरते हैं। एक गुलाब का फूल खिला है। फूल दिखाई नहीं हम सब ऐसे ही जीते हैं लेकिन, इसलिए हमें खुशामद प्रीतिकर पड़ता है, उसके पहले गुलाब का फूल बीच में आ जाता है, शब्द लगती है। क्योंकि कोई हमें भरोसा दिलाता है। बिलकुल झूठ भी बीच में आ जाता है। फूल देख भी नहीं पाते और आप कहते हैं, कोई आपसे कह दे, कोई आपसे कह दे कि आप जैसा बुद्धिमान सुंदर है। यह सुंदर है, आपकी पुरानी आदत का हिस्सा है। आपको आदमी नहीं है। आपके भीतर कोई आपसे कहे भी कि झंझट में मत पता है, गुलाब का फूल सुंदर होता है, सुंदर कहा जाता है। सुना पड़ो, यह झूठ ही मालूम पड़ता है; क्योंकि आपको अपनी बुद्धि का है, पढ़ा है, वह आपके मन में रम गया है। फूल को आप देख भी अच्छी तरह पता है! फिर भी इनकार करने का मन नहीं होता, मानने नहीं पाते। यह फूल जो अभी मौजूद है, इसकी पंखुड़ियां आपके का मन होता है। और दस आदमी अगर इकट्ठे होकर कहने लगें, हृदय को छू भी नहीं पातीं। इसकी सुगंध आपके प्राणों में उतर भी तो फिर तो इनकार करने का सवाल ही नहीं। हजार दो हजार की नहीं पाती। और आप कहते हैं, गुलाब का फूल है, सुंदर है। बात भीड़ इकट्ठी हो जाए, फिर तो कोई सवाल ही नहीं। और आपको समाप्त हो गई। आपका संबंध टूट गया। आसमान में उठाया जा सकता है।
__ अगर इस गुलाब के फूल से संबंधित होना हो, तो एक छोटा-सा दूसरों की आंखों में जो देख रहा है, वह भूलों में पड़ सकता है, प्रयोग करें। इस गुलाब के फूल को देखें, लेकिन भीतर शब्द को न पड़ेगा ही। साधक के लिए अनिवार्य है कि यह जो पारस्परिक | आने दें। यह ध्यान का एक प्रयोग है। बैठे इसके पास, लेकिन शब्द लेन-देन है कल्पनाओं का, इससे हट जाए। इससे बिलकुल हट को न आने दें। मत कहने दें अपने मन को कि गुलाब का फूल है।
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