SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॐ परम गोपनीय—मौन ॐ काल्पनिक लोगों से। बातचीत जारी रहती है। जिनसे आप मौन में विचार का कंपन न हो, जैसे झील शांत हो गई हो, कोई लहर न भी बात करते हैं, अगर वे कल्पना के जीव भी आपसे प्रभावित न | उठती हो। हों, तो भी दुख हो जाता है। असली लोगों की तो हम बात छोड़ दें।। । लेकिन कृष्ण कहते हैं, गोपनीयों में मैं मौन हूं। आप कल्पना में किसी से बात कर रहे हों; और वह प्रभावित न हो, और यह सबसे गुप्त बात है, जिसे किसी को बताना ही मत। और कहे कि छोड़ो भी, क्या बकवास लगा रखी है। तो भी मन बताते ही यह नष्ट हो जाती है। इसलिए बहुत बार ऐसा होता है, दुखी और खिन्न हो जाता है। सपने में भी जीतने की इच्छा बनी रहती | | आपका मन बताने का एकदम होता है। और जब भी भीतर कुछ है दूसरे को। होता है, तो आप चाहते हैं, किसी को बता दें। मन बड़ी तीव्रता से एक दिन आधी रात मुल्ला नसरुद्दीन नींद से उठ आया। उसकी | | करता है कि जाओ और बोल दो और किसी को कह दो। आंखों में आंसू हैं। और उसने बड़ा हड़कंप मचा दिया। उसकी | | यह मन की सहज वृत्ति है। क्योंकि जो आपको हुआ है, जब पत्नी ने पूछा कि बात क्या है? उसने कहा कि तू चुप सो। बड़ा | तक आप दूसरे से न कह दें, तब तक वह वास्तविक है, इसका भी नुकसान हो गया। सपना मैंने देखा कि एक देवता मेरे हाथ में रुपये आपको भरोसा नहीं आता। जब दूसरा मान ले, तब आपको भरोसा दे रहा है। गिनती मैंने की। एक दो तीन चार पांच छः सात आठ नौ। आता है कि ठीक है। मैंने उससे कहा कि दस तो पूरा कर दे! बस, इसी में मेरी नींद टूट | । सुना है मैंने, एक दिन मुल्ला नसरुद्दीन जा रहा है रास्ते से और गई। और अब मैं बड़ी देर से आंख बंद कर-करके कह रहा हूं कि गांव के कुछ आवारा लड़के उसे कंकड़-पत्थर फेंककर मारने लगे। अच्छा, चलो जी, नौ में ही राजी हैं लेकिन उसका कोई पता ही नहीं | | अंधेरा रास्ता है और मुल्ला को कोई उपाय नहीं सूझता, तो उसने चलता। छोड़ा एक, छोड़ो भी, इतना क्या! नौ में ही राजी हैं। अभी उन लड़कों को पास बुलाया और कहा कि यहां क्या कर रहे हो? पीछे-पीछे तो मैं और भी नीचे उतर आया; कि चलो, आठ में भी तुम्हें पता है, आज गांव के राजा ने सारे गांव को निमंत्रण दिया है। राजी हैं, सात में भी राजी हैं। करवट बदल रहा हूं, लेकिन उसका | जो भी आए उसको भोजन मिलेगा। और भोजन भी क्या-क्या बना कोई पता नहीं चल रहा! | है! और वह भोजन की चर्चा करने लगा। सपने में भी जिन्हें हम देख लेते हैं, वे भी हमारे लिए वे लड़के उत्सुक हो गए। लड़कों को उत्सुक देखा, तो वह खुद वास्तविकताएं हैं। उनसे भी हम संबंध जोड़ना शुरू कर देते हैं। भी उत्सुक हो गया। और जब वह मिष्ठानों की बात करने लगा, तो अगर आप अपने मन की खोज करें, तो आपकी जिंदगी का अधिक लड़कों के मुंह से तो लार टपकने लगी। उसके मुंह में भी लार आ हिस्सा तो सपनों में और कल्पनाओं में ही बीतता है। बहुत कम गई! फिर तो जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती गई चर्चा की, लड़कों ने भागना हिस्सा बाहर बीतता है। बहत हिस्सा तो भीतर ही बीतता है। शुरू कर दिया। उन्होंने कहा, छोड़ो भी इसको, मुल्ला को, महल __ और कभी-कभी बाहर भी जो आप बोलते हैं, वह आप भूल से | चलें! जब लड़कों को उसने दूर भागते देखा अंधेरे में, तब उसे बोल जाते हैं। आपको पीछे पता चलता है कि आप यह भीतर बोल | खयाल आया कि कहीं सच ही तो नहीं है यह बात! मुल्ला भी रहे थे, उसी का हिस्सा जुड़ गया। किसी से भीतर बात चल रही भागा। हो भी सकता है, कौन जाने! कौन जाने यह सच ही हो! थी, वही बाहर निकल गई। कई बार जो आप नहीं कहना चाहते | । दूसरा जब प्रभावित होता है हमारी किसी बात से, तो हम भी बाहर, वह कह जाते हैं, क्योंकि भीतर चल रहा था। कई बार आप | | प्रभावित होते हैं। म्युचुअल, एक पारस्परिक लेन-देन हो जाता है। कहते हैं, भूल से ऐसा हो गया। लेकिन भूल से हो नहीं सकता। वे | और ये प्रभाव हमें कहां ले जाते हैं. इनका हिसाब लगाना बहत भीतर चल रही थीं पंक्तियां, तो ही आपकी जीभ से सरककर बाहर मुश्किल है। बहुत मुश्किल है। गिर सकती हैं। दो व्यक्ति एक-दूसरे के प्रेम में पड़ जाते हैं। तो कोई भी पुरुष भीतर एक सतत डायलाग चल रहा है, एक सतत चर्चा चल रही किसी स्त्री के प्रेम में पड़ता है, तो कहता है कि तुझसे ज्यादा सुंदर है अपनी ही कल्पनाओं से। मौन में जब आप बैठेंगे, तो यही इस पृथ्वी पर कोई स्त्री नहीं है। और सभी स्त्रियां इसको मान लेती आपके मौन का खंडन होगा। यही आपके मौन को तोड़ देगा। । | हैं। मानना चाहती हैं गहरे में। और इसको सुनते से ही स्त्री सुंदर हो मौन का अर्थ है, भीतर कोई विचार न रह जाए, भीतर कोई जाती है। भरोसा आ जाता है! और जब कोई इतना सुंदर मान रहा [223|
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy