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________________ 8 गीता दर्शन भाग- 50 . अगर एक आदमी कहता है कि मैं मौन से रहता हूं, यह कहने | | परम मौन में प्रतिष्ठित हो गए हैं, मुझे भी उसी तरफ ले चलें! का जो रस है, दूसरे को बताने का जो रस है, यह जो दूसरे में रस | बायजीद के गुरु ने कहा कि उसको पता न चल जाए कि मैं मौन में है, इसकी वजह से मौन तो हो ही नहीं पाएगा। | प्रतिष्ठित हो गया हूं, इसीलिए तो अनाप-शनाप बककर उसे मैंने एक आदमी कहता है कि मुझे तो ध्यान उपलब्ध होने लगा। विदा कर दिया। लेकिन जब दूसरे से यह कहता है...। दूसरे से कहते ही हम बायजीद ने पूछा, अपने मौन को आप छिपाना क्यों चाहते हैं? इसलिए हैं कि दूसरा प्रभावित हो। इसलिए वही कहते हैं, जिससे | उसके गुरु ने कहा, इस जगत में अगर कुछ भी छिपाने योग्य है, तो दूसरा प्रभावित हो। उस सबको तो हम छिपाते हैं, जिससे दूसरा | | मौन है। क्योंकि वह अंतरतम संपदा है। और वह इतनी नाजुक गलत प्रभावित न हो जाए। वही सब बताते हैं, जिससे दूसरा | संपदा है कि जरा बाहर प्रभावित करने की इच्छा से टूट जाती है प्रभावित हो। हमारा अच्छा चेहरा हम दूसरों को दिखाते हैं, ताकि और खो जाती है। दूसरे प्रभावित हों। एक और सूफी फकीर हुआ है, इब्राहीम। वह बल्ख का राजा लेकिन दूसरे को प्रभावित करने में जो उत्सुक है, वह ध्यान में | था। और जब संन्यासी हुआ और अपने गुरु के पास गया, तो जा ही न सकेगा। क्योंकि दूसरे को प्रभावित करने में जो रस है, | उसके गुरु ने कहा कि तू पहले एक काम कर। नग्न हो जा। तो उसका अर्थ है, अभी अपने से ज्यादा मूल्यवान दुसरा है। अगर मैं | | इब्राहीम अपने कपडे छोडकर नग्न हो गया। इब्राहीम के साथी उसे सोचता हूं कि फलां आदमी अगर मुझसे प्रभावित हो जाए, तो | छोड़ने आए थे, वे बड़े हैरान हुए। एक ने इब्राहीम के कान में भी जिसको भी मैं प्रभावित करना चाहता हूं, उसे मैं अपने से ज्यादा कहा कि जरा पूछ भी लो कि किस लिए? इब्राहीम ने कहा कि जब मूल्यवान मानता हूं, इसीलिए प्रभावित करना चाहता हूं। वह समर्पण करने आ गया, तो अब प्रश्न की गुंजाइश नहीं है। फिर प्रभावित हो जाए, तो मैं भी अपनी नजरों में ऊंचा उठ जाऊं। वह इब्राहीम के गुरु ने कहा कि यह चप्पल जो पड़ी है मेरी, एक उठा ज्यादा कीमती है मुझसे। अगर मुझे मान ले, तो मैं अपनी नजरों में | लो अपने हाथ में। उसने चप्पल उठा ली। और इब्राहीम से कहा कि भी ऊंचा उठ जाऊं। मेरी अपनी नजरों में उठने के लिए भी मुझे जाओ बाजार में उसी की राजधानी थी वह कल तक जाओ दूसरों को प्रभावित करना जरूरी है। बाजार में नग्न और अपने सिर पर चप्पल मारते जाना और एक ध्यान की भी जब कोई बात करता है, या कोई कहता है, मैंने चक्कर पूरे बाजार का लगा आना। ईश्वर को जान लिया, जब इसकी भी कोई चर्चा करता है किसी दूसरे | इब्राहीम निकल पड़ा! वह अपने को चप्पल मारता जाता। भीड़ से और उसे प्रभावित करना चाहता है, तो उसका अर्थ हुआ कि उसने इकट्ठी हो गई। लोग हंसी-मजाक करने लगे। लोग समझे कि अभी ईश्वर को पाया नहीं। अभी ईश्वर को पाने के रास्ते पर भी वह पागल हो गया इब्राहीम। वह पूरा चक्कर लगाकर वापस लौट नहीं है। क्योंकि उस रास्ते पर तो वे ही जाते हैं, जो दूसरे की बिलकुल आया। इब्राहीम के गुरु ने कहा कि तेरी परीक्षा पूरी हो गई। चिंता ही छोड़ देते हैं, जिन्हें दूसरों का पता ही नहीं रह जाता। उसके साथियों ने इब्राहीम के गुरु से पूछा कि क्या हम पूछ सूफी फकीर हुआ बायजीद। जब वह अपने गुरु के पास गया, | सकते हैं क्योंकि इब्राहीम तो कहता है कि पूछने का सवाल ही तो बहुत हैरान हुआ। जब वह अपने गुरु के पास था, तो उसने एक न रहा—क्या हम पूछ सकते हैं कि इसका प्रयोजन क्या है? तो दिन देखा कि गांव का सम्राट आया और उसने आकर बायजीद के इब्राहीम के गुरु ने कहा, इसका प्रयोजन है यह देखना कि अभी भी गुरु को कहा कि मुझे भी दीक्षा दे दें इस परम मौन में, जिसमें आप दूसरे क्या कहते हैं, इसकी चिंता तो भीतर नहीं रह गई! क्योंकि जो, विराजमान हो गए हैं। तो बायजीद का गुरु अनाप-शनाप बातें दूसरे क्या कहते हैं, इसकी चिंता करता है, विचार करता है, योजना बकने लगा। वह सदा चुप रहता था। वह मुश्किल से, कभी कोई | | करता है, वह मौन में प्रवेश नहीं कर सकता। पूछता, तो बहुत मुश्किल से महीनों में जवाब देता था। मौन में सबसे बड़ी कठिनाई है दूसरे की मौजूदगी, जो आपके अनाप-शनाप बातें बोलने लगा! | मन में सदा बनी रहती है। जब आप मौन बैठते हैं, तब भी आप वह सम्राट वापस चला गया। बायजीद ने अपने गुरु से पूछा कि मौन कहां बैठते हैं, किन्हीं दूसरों से कल्पना में बात करते रहते हैं। ऐसा हमने कभी नहीं देखा। उसने आपको आकर कहा था, आप आदमी दो तरह की बातें करता है, वास्तविक लोगों से और 2221
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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