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________________ गीता दर्शन भाग-500 यात्रा में जा सकता है। | महाभारत, यह सारी कथा अर्जुन के आस-पास घूमती है। जुए को और मौत को जो समझ ले, वह अंतर्यात्रा पर निकल | ___ धनंजय, अगर तुझे पांडवों में भी परमात्मा को देखना हो, तो तू सकता है। खुद अपने में देख। प्रभावशाली पुरुषों का प्रभाव, जीतने वालों की विजय, निश्चय ये सारे प्रतीक कृष्ण ने कहे, ये दूर थे, पराए थे। कृष्ण धीरे-धीरे करने वालों का निश्चय, सात्विक पुरुषों का सात्विक भाव हूं। और उस प्रतीक के पास अर्जुन को ले आए हैं, जहां वह खुद अपने में वृष्णिवंशियों में वासुदेव अर्थात स्वयं मैं, पांडवों में धनंजय अर्थात | भी देख सके। ये इतने स्मरण दिलाए कि ऋतुओं में मैं वसंत हूं, कि त. एवं मनियों में वेदव्यास. कवियों में शक्राचार्य मैं ही हैं। देवताओं में कामदेव हूं। इतनी-इतनी यात्रा, अगर ठीक से समझें, कृष्ण कहते हैं अपने को भी एक प्रतीक बना लेते हैं और | | तो इस गहरे प्रतीक के लिए थी कि वह जगह आ जाए कि कृष्ण अर्जुन को भी–वे कहते हैं, वृष्णिवंशियों में अगर तुझे देखना हो | अर्जुन से कह सकें कि धनंजय, पांडवों में मैं तुझमें है। मुझे, अगर तुझे देखना हो प्रभु को, तो मैं तेरे सामने खड़ा हूं। आपको अपनी श्रेष्ठता के स्मरण के लिए भी दूसरों की श्रेष्ठता निश्चित ही, उस वंश में कृष्ण से ऊंचाई पाने वाला कोई व्यक्ति | तक जाना होता है। और कभी-कभी अपने द्वार पर आने के पहले हुआ नहीं। असल में उस वंश को ही हम कृष्ण की वजह से जानते | | | बहुत दूसरों के द्वार भी खटखटाने होते हैं। असल में हमारा हैं। कृष्ण न हों, तो उनके पूरे वंश में किसी को भी जानने का कोई | | आत्म-अज्ञान इतना गहन है कि हम अपने तक भी आएं, तो हमें कारण नहीं रह जाता। वह जो कृष्ण का फूल खिला है उस वंश के दूसरे के द्वारा आना पड़ता है। अगर हमें अपना भी पता पूछना हो, वृक्ष पर, उस फूल की वजह से ही उस वृक्ष का भी हमें स्मरण है। | तो हमें दूसरे से ही पूछना पड़ता है। बेहोशी अपनी ऐसी है, ऐसी वह उस वंश की श्रेष्ठतम उपलब्धि, जो नवनीत है, वह कृष्ण है। गहरी है बेहोशी हमारी, कि हमें अपना तो कोई पता ही नहीं है, बस कृष्ण अर्जुन को समझा रहे हैं कि जहां भी श्रेष्ठता का फूल दूसरों का ही पता है! खिलता है, वहां तू मुझे देख पाएगा। तो अगर मेरे वंश में तुझे गुरु भी क्या करेगा शिष्य के लिए! जब कोई शिष्य गुरु के चरणों देखना है, तो मैं तेरे सामने मौजूद हूं। में सिर रखकर पूछता है, तो क्या पूछता है? और गुरु क्या बताएगा और अक्सर ऐसा होता है कि जब अंतिम फूल खिल जाता है, अंततः? गुरु इतना ही बता सकता है कि जिसे तू खोज रहा है, वह तो वंश नष्ट हो जाता है। क्योंकि फिर वंश के होने का कोई प्रयोजन तू ही है। जिसकी तलाश है, वह तुझ तलाश करने वाले में ही छिपा नहीं रह जाता। उसका प्रयोजन पूरा हो गया। इसलिए कृष्ण के साथ है। और जिसकी तरफ तू दौड़ रहा है, वह कहीं बाहर नहीं, दौड़ने कृष्ण का वंश तिरोहित हो जाता है। और इतनी श्रेष्ठता को फिर पार वाले के भीतर है। और जो सुवास, जो कस्तूरी तुझे खींच रही है और करना भी संभव नहीं है। इसलिए श्रेष्ठतम जो है, वह एक वंश का आकर्षित कर रही है, वह तेरी ही नाभि में छिपी है और दबी है। अंत भी होता है। आखिरी फूल खिल जाने का अर्थ है, वृक्ष की लेकिन यह बात कृष्ण सीधी भी कह सकते थे, तब व्यर्थ होती। मौत भी आ गई। पूर्णता समाप्ति भी है। कृष्ण यह सीधा भी कह सकते थे कि अर्जुन मैं तुझमें हूं, तब यह कृष्ण के साथ कृष्ण का वंश समाप्त हो जाता है। उस वंश का बात बहुत सार्थक न होती। यह इतनी यात्रा करनी जरूरी थी। अर्जुन जो निहित प्रयोजन था, पूरा हो गया। जो नियति थी, जहां तक | बहुत-बहुत जगह थोड़ी-सी झलक पा ले, तो शायद अपने भीतर पहंचना था, जो आखिरी छलांग थी. लहर जहां तक आकाश में | | भी झलक पा सकता है। उठ सकती थी, उठ गई। धर्मों ने जितनी विधियां खोजी हैं, वे सभी विधियां आवश्यक हैं, तो वे कहते हैं, अगर मेरे वंश में तुझे देखना हो, तो मैं मौजूद अनिवार्य नहीं। उनसे पहुंचा जाता है, लेकिन उनके बिना भी पहुंचा हूं, जहां तुझे परमात्मा दिखाई पड़ सकता है। जा सकता है। उनसे पहुंचा जाता है, लेकिन उनके द्वारा ही पहुंचा साथ ही एक और भी मजे की बात कहते हैं, और पांडवों में जा सकता है, ऐसा नहीं है। सारी विधियां एक ही प्रयोजन से निर्मित धनंजय अर्थात तू! | हुई हैं कि किसी दिन आपको पता चल जाए कि जिसे आप खोज वह जो पांडवों का वंश है, उसमें अर्जुन भी नवनीत है, उसमें | अर्जुन सार है। यह सारा महाभारत अर्जुन के इर्द-गिर्द है। यह सारा । बड़ी अजीब खोज है! क्योंकि जब कोई खुद को खोजने लगे, तो भाप ही हैं। 218
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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