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________________ 8 मैं शाश्वत समय हूं होता। पुरुष की स्मृति बौद्धिक होती है, स्त्री की स्मृति अस्तित्वगत | पड़ता। पिता का अस्तित्वगत संबंध नहीं है। मेरा बेटा है, यह एक होती है, टोटल होती है। बौद्धिक स्मृति है। और कल अगर एक चिट्ठी मिल जाए, जिससे अगर पुरुष किसी स्त्री को प्रेम करता है, तो उसके स्मरण में पता चले कि नहीं, किसी और का बेटा है, तो पिता का सारा संबंध इतना ही रह जाता है कि मैंने प्रेम किया था। यह एक स्मृति होती टूट जाएगा, विलीन हो जाएगा। वह संबंध गणित का है, हिसाब है. मेंटल. मन में। लेकिन स्त्री ने अगर किसी को प्रेम किया है. तो | | का है। बहुत गहरा और आंतरिक नहीं है। उसके रोएं-रोएं और कण-कण में यह स्मृति समा जाती है। उसके ___ इसलिए कोई पुरुष अगर पिता न भी बने, तो कोई भेद नहीं पूरे व्यक्तित्व में रम जाती है, भर जाती है। और जब स्त्री याद करती | पड़ता। कोई भेद नहीं पड़ता; व्यक्तित्व में कोई कमी नहीं आती। है कि किसी ने मुझे प्रेम किया, किसी को उसने प्रेम किया, तो यह इसलिए पुरुष की उत्सुकता पिता बनने की कम और पति बनने की बौद्धिक बात नहीं होती, इसमें पूरा अस्तित्व समाहित होता है! वह | ज्यादा होती है। स्त्री की उत्सुकता भी अगर पत्नी बनने की हो, तो पूरी की पूरी इसमें मौजूद होती है। | उसे स्त्री होने का रहस्य पता नहीं है। इसलिए पुरुष चाहें, तो बहुत स्त्रियों को भी प्रेम कर सकते हैं; | स्त्री की उत्सुकता मौलिक रूप से मां बनने की है। अगर वह स्त्रियों के लिए बहुत पुरुषों को प्रेम करना स्वभावतः कठिन और | पति को भी स्वीकार करती है, तो मां बनने के मार्ग पर। और अगर असंभव है। कोई पुरुष पिता बनना भी स्वीकार करता है, तो पति की मजबूरी । 'पुरुष के लिए सभी घटनाएं बुद्धि में हैं। बुद्धि एक हिस्सा है।। | में। कोई उत्सुकता पुरुष को पिता बनने की वैसी नहीं है। और अगर स्त्री के लिए सारी घटनाएं उसके पूरे व्यक्तित्व में हैं। उसका कभी रही भी है, तो उसके कारण अवांतर रहे हैं। जैसे धन है, रोआं-रोआं इकट्ठा है। संपत्ति है, जायदाद किसकी होगी! क्या नहीं होगा! बेटा चाहिए, मनसविद इतना तो मानते हैं कि पुरुष की कामवासना उसके | तो यह सब सम्हालेगा। या क्रियाकांड और धर्म के कारण, कि -केंद्र में निहित होती है. लेकिन स्त्री की कामवासना उसके परे। अगर पिता मर जाएगा और बेटा नहीं होगा. तो अंतिम क्रिया कौन शरीर में फैली होती है। स्त्री का पूरा शरीर इरोटिक है, पूरा शरीर। | करेगा? और फिर पानी कौन चढ़ाएगा? लेकिन ये सब गणित के और उसकी सारी स्मृति पूरी है। उसकी स्मृति में बौद्धिक स्मरण, संबंध हैं। इन सबमें हिसाब है। ये परपजिव हैं। ऐसा नहीं है। मां का संबंध उसके बेटे से नान-परपजिव है, निष्प्रयोजन है। और जो स्मृति पूरी हो इतनी, उसका गुण ही दूसरा हो जाता है। वह उसके ही अस्तित्व का फैलाव है। अगर बेटा मरता हो, तो मां उसका आयाम, उसका अर्थ, अभिप्राय दूसरा हो जाता है। का हृदय पीड़ित हो जाता है, दुखी हो जाता है, चिंतित हो जाता है। कृष्ण कहते हैं, मैं स्त्रियों में स्मृति हूं। समग्रता की, इंटिग्रेटेड, और मनुष्यों में ही नहीं, अभी पशुओं पर भी प्रयोग किए हैं रूस पूरी, पूर्ण। स्त्री याद करती है, बुद्धि से नहीं, विचार से नहीं, अपने | | में उन्होंने। खरगोश को काटते हैं और उसकी मां मीलों दूर है और पूरे होने से, टोटल बीइंग। | उसके हृदय में असर पड़ते हैं। उसकी हृदय-गति बढ़ जाती है। वह इसलिए एक पिता है और एक मां है। पिता एक बिलकुल | कंपने लगती है। उसकी आंख में आंसू आ जाते हैं। यंत्रों से अब औपचारिक संस्था मालूम होती है। न भी हो, चल सकता है। तो इसकी परीक्षा हो चुकी है कि पशुओं की मां भी किसी अज्ञात पशुओं में नहीं भी होती है, तो भी चलता है। लेकिन मां एक मार्ग से प्रभावित होती है। कोई इतनी गहरी स्मृति है, जिसको हम औपचारिक संस्था नहीं है। मां और बेटे का संबंध एक स्मृति मात्र | | बायोलाजिकल कहें, साइकोलाजिकल नहीं; जिसको हम मानसिक नहीं है बुद्धि की; एक सारे अस्तित्व का लेन-देन है। मां के लिए | न कहें. बल्कि कहें कि जैविक: उसके रोएं-रोएं में भरी हुई है। उसका बेटा, उसका ही टुकड़ा है, उसका ही फैला हुआ हाथ है। | कृष्ण कहते हैं, स्त्रियों में मैं स्मृति हूं। अगर एक बेटे की हत्या कर दी जाए और मां को पता भी न हो, कारण से कहते हैं। अगर कोई व्यक्ति ऐसी ही स्मृति से परमात्मा तो भी मां के प्राण आंदोलित हो जाते हैं। अब तो इस पर बड़े | की तरफ भर जाए, तो ही उसे उपलब्ध होता है; ऐसी अस्तित्वगत वैज्ञानिक परीक्षण हुए हैं। एक सैनिक मरता है युद्ध में और उसकी | | स्मृति से। ऐसा खोपड़ी में राम-राम कहने से कुछ भी नहीं होता। मां बेचैन हो जाती है हजारों मील दूर। पिता पर कोई असर नहीं | | जब रोआ-रोआं कहने लगे, धड़कन-धड़कन कहने लगे। कहना 209]
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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