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________________ गीता दर्शन भाग-5 का मतलब नहीं है। यह विकृति है स्त्री के गुण की, जो दिखाई पड़ती है। स्त्रियां चुप बैठी दिखाई पड़ें, यह मिरेकल है, चमत्कार है। मैंने सुना है कि लंदन में एक बार एक प्रतियोगिता हुई कि कोई सबसे बड़ी झूठ बोले । उस आदमी को प्रथम पुरस्कार मिला, जिसने कहा, एक बगीचे की बेंच पर दो स्त्रियों को घंटेभर तक चुप बैठे देखा ! कहते हैं, उसे पहला पुरस्कार मिल गया झूठ बोलने का। यह हो ही नहीं सकता। इसके होने का कोई उपाय ही नहीं है। स्त्रियां बातचीत में लगी हैं ! लेकिन वाक् बातचीत नहीं है । वाक् तो तब प्रकट होता है, जब स्त्री अपने अस्तित्व में परम मौन को उपलब्ध होती है। जब वह बिलकुल मौन हो जाती है, तब उसकी जो वाणी है, वह बहुमूल्य हो जाती है। तब उसकी वाणी ऋचाएं बन जाती हैं। लेकिन जो स्त्री मौन नहीं हो सकती, वह कभी वाक् को उपलब्ध नहीं होगी। इसलिए स्त्री का गुण उसका चुप होना, उसका मौन होना है। उसका इतना मौन होना है कि पता चले कि जैसे उसके पास वाणी ही नहीं है। स्त्री में सब अच्छा लगता है, लेकिन उसकी बातचीत बिलकुल बकवास और उबाने वाली होती है। सुंदर से सुंदर स्त्री थोड़ी देर में बहुत घबड़ाने वाली हो जाती है, अगर वह बातचीत करती चली जाए। मौन की एक गरिमा है। असल में शब्द भी आक्रमण है। शब्द भी दूसरे पर हमला है। मौन अनाक्रमण है। सुना है मैंने, वाचस्पति विवाह करके आए। पर वे तो धुनी आदमी थे और बारह वर्षों तक वे तो भूल ही गए कि पत्नी घर में है। कथा बड़ी मीठी है। वाचस्पति लिख रहे थे ब्रह्मसूत्र पर अपनी टीका। वे सुबह से सांझ और रात, आधी रात तक टीका लिखने में लगे रहते। पत्नी को घर ले आए। पिता ने कहा, शादी करनी है। पिता बूढ़े थे। सुखी होते थे। शादी करके घर आ गए। पत्नी घर में चली गई। वाचस्पति अपनी टीका लिखने में लग गए। बारह वर्ष ! उन्हें खयाल ही न रहा, वह जो शादी हो गई, और पत्नी घर में गई। वह सब बात समाप्त हो गई। आ + लेकिन उन्होंने एक निर्णय किया था कि जिस दिन यह ब्रह्मसूत्र की टीका पूरी हो जाएगी, उस दिन मैं संन्यास ले लूंगा । बारह वर्ष बाद आधी रात टीका पूरी हो गई। अचानक वाचस्पति की आंखें पहली दफा टीका को छोड़कर इधर-उधर गईं। देखा कि एक सुंदर - सा हाथ पीछे से आकर दीए की ज्योति को ऊंचा कर रहा है। सोने की चूड़ियां हैं हाथ पर। लौटकर उन्होंने देखा, और कहा, कोई स्त्री इस आधी रात में मेरे पीछे! पूछा, तू कौन है? स्त्री ने कहा कि धन्य भाग्य कि आपने पूछा। बारह वर्ष पहले मुझे आप विवाह करके ले आए थे, तब से मैं प्रतीक्षा कर रही हूं कि कभी आप जरूर पूछेंगे कि तू कौन है ! पर इतनी देर तू कहां थी? उसने कहा कि मैं रोज आती थी। जब दीए की लौ कम होती, तब बढ़ा जाती थी। दीया सांझ जला जाती थी, सुबह हटा लेती थी। आपके काम में बाधा न पड़े, इसलिए आपके | सामने कभी नहीं आई। आपके काम में रंचमात्र बाधा न पड़े, | इसलिए कभी मैंने कोशिश नहीं की कि बताऊं मैं भी हूं। मैं थी, और आप अपने काम में थे । वाचस्पति की आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने कहा, अब तो बहुत देर हो गई। क्योंकि मैंने तो निर्णय किया है कि जिस दिन जिस क्षण टीका पूरी हो जाएगी, उसी क्षण घर छोड़कर संन्यासी हो जाऊंगा। अब मैं तेरे लिए क्या कर सकता हूं! तूने बारह वर्ष प्रतीक्षा की और आज की रात मेरे जाने का वक्त है! अब मैं उठकर बस घर के बाहर होने को हूं। अब मैं तेरे लिए क्या कर सकता हूं? वाचस्पति की आंख में आंसू... । उनकी स्त्री का नाम भामती था। इसलिए उन्होंने अपनी ब्रह्मसूत्र की टीका का नाम भामती रखा है। भामती से कोई संबंध नहीं है। | उनकी ब्रह्मसूत्र की टीका का नाम भामती से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन अपनी टीका का नाम उन्होंने भामती रखा है। बड़ी अदभुत टीका है। वाचस्पति अदभुत आदमी थे। कहा कि बस, तेरी स्मृति में भामती इसका नाम रख देता हूं और घर से चला जाता हूं। लेकिन तू दुखी होगी। उनकी पत्नी ने कहा, दुखी नहीं, मुझसे ज्यादा धन्यभागी और कोई भी नहीं। इतना क्या कम है कि आपकी आंखों | में मेरे लिए आंसू आ गए! मेरा जीवन कृतार्थ हो गया। इतनी ही बात वाचस्पति की अपनी स्त्री से हुई है। लेकिन यह बारह साल के मौन के बाद ये जो थोड़े से शब्द हैं, इनको हम वाणी कह सकते हैं, वाक् कह सकते हैं। स्त्री के परम मौन से जब कुछ निकलता है! लेकिन उसका परम मौन होना बड़ा मुश्किल है। कृष्ण कहते हैं, मैं वाक् हूं, स्मृति हूं, मेधा हूं, धृति हूं, क्षमा हूं। स्मृति । पुरुष के पास एक तरह की स्मृति होती है, स्त्री के पास दूसरे तरह की । शायद मनोवैज्ञानिक राजी भी न हों। क्योंकि वे कहें, एक ही तरह की स्मृति होती है। नहीं होती है। स्त्री-पुरुष के पास एक तरह का कुछ भी नहीं 208
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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