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________________ 8 गीता दर्शन भाग-58 अभिनेताओं और अभिनेत्रियों के जगत में कीर्ति को खोजना | पाजिटिव है, एग्रेसिव है, आक्रामक है, लेकिन स्वेच्छा पर निर्भर है। बिलकुल मुश्किल है। और मंच पर जो अभिनय कर रहे हैं, वे तो | उसका ऊर्वीकरण हो सकता है। लेकिन स्त्री की काम-ऊर्जा का कम अभिनेता हैं; उनकी नकल करने वाला जो बड़ा समाज है ऊर्वीकरण नहीं होता, क्योंकि उसकी स्वेच्छा पर निर्भर नहीं है। इमीटेशन का, वे सड़क पर, चौराहों पर भी अभिनय कर रहे हैं। इसीलिए महावीर ने तो कहा कि स्त्रियां मोक्ष न जा सकेंगी, इस सदी में अगर सर्वाधिक किसी के गुणों को चोट पहुंची हो, क्योंकि महावीर का जोर पूरा ब्रह्मचर्य की साधना पर था। इसलिए तो वह स्त्री है। क्योंकि उसके किन गुणों का मूल्य है, उनकी धारणा महावीर ने स्त्रियों को मोक्ष जाने के लिए नहीं कहा। उन्होंने कहा ही खो गई है। उन गुणों की धारणा ही खो गई है। कीर्ति का हम कि स्त्री को एक बार पुरुष का जन्म लेना पड़ेगा, पुरुष, की पर्याय कभी सोचते भी नहीं होंगे। आप बाप होंगे, आपके घर में लड़की में आना पड़ेगा, फिर वह मुक्त हो सकती है। सीधी स्त्री के शरीर होगी। आपने कभी सोचा भी नहीं होगा कि इस लड़की के जीवन से स्त्री मुक्त नहीं हो सकती है। उसका कुल कारण इतना था कि में कभी कीर्ति का जन्म हो। आपने लड़की को जन्म दे दिया और | महावीर की जो पूरी प्रक्रिया थी, वह पुरुष के ब्रह्मचर्य की थी। आप अगर उसमें कीर्ति का जन्म नहीं दे पाए, तो आप बाप नहीं हैं, | लेकिन कीर्ति की साधना अलग है, वह ठीक ब्रह्मचर्य के जैसी सिर्फ एक मशीन हैं उत्पादन की। है। अगर कोई स्त्री कीर्ति को उपलब्ध हो जाए, तो पुरुष के शरीर लेकिन कीर्ति बड़ी कठिन बात है। और गहरी साधना से ही | की कोई भी जरूरत नहीं है। स्त्री के शरीर से ही मोक्ष उपलब्ध हो उपलब्ध हो सकती है। जब किसी पुरुष में वासना तिरोहित होती है, | जाएगा। लेकिन कीर्ति की प्रक्रिया बिलकुल और होगी। . तो ब्रह्मचर्य फलित होता है। और जब किसी स्त्री में वासना तिरोहित | कीर्ति की प्रक्रिया का अर्थ है कि स्त्री के मन में जितनी तीव्रता से होती है, तो कीर्ति फलित होती है। कीर्ति काउंटर पार्ट है। स्त्री में मातृत्व का भाव गहन हो जाए। उसकी साधना मां की साधना होगी। कीर्ति का फल लगता है, फूल लगता है, जैसे पुरुष में ब्रह्मचर्य का | वह पूरे जगत की मां हो जाए। उसके मन में एक ही भाव तरंगित फूल लगता है। होता रहे, मां होने का। स्त्री होने का भाव छूट जाए, पत्नी होने का स्त्री में ठीक पुरुष जैसा ब्रह्मचर्य फलित नहीं हो सकता। कारण | | भाव छूट जाए, सिर्फ मां होने का भाव गहन होता चला जाए। जिस हैं उसके। अगर पुरुष ब्रह्मचर्य को उपलब्ध हो, तो उसकी सारी | दिन स्त्री के भीतर मां होने की धारणा इतनी गहन हो जाए कि अगर वीर्य-ऊर्जा आत्मसात होने लगती है। लेकिन स्त्री की जो | कोई कामातुर पुरुष भी उसके पास आकर उसके हृदय से लग जाए, काम-ऊर्जा है, वह अनिवार्य रूप से उसके मासिक धर्म में स्खलित | तो भी उसे अपने बेटे का ही स्मरण हो। वह उसके सिर पर वैसा ही होती रहेगी। वह यंत्रवत है। इसलिए स्त्री की काम-ऊर्जा उस तरह हाथ रख सके, जैसे बेटा उसके पास आ गया हो। उसके भीतर न से अंतस में तिरोहित नहीं हो सकती, जैसे पुरुष की काम-ऊर्जा | कोई भय पैदा हो, न कोई चिंता पैदा हो, न कोई घबड़ाहट पैदा हो; तिरोहित हो सकती है। | वह उसको बेटे की तरह छाती से लगा ले। ' पुरुष की काम-ऊर्जा जब अंतस में तिरोहित हो जाती है, तो तेज | | और यह अदभुत बात है कि अगर कोई भी स्त्री किसी पुरुष को पैदा होता है। वही तेज ब्रह्मचर्य है। स्त्री की व्यवस्था अन्यथा है बेटे की तरह छाती से लगा ले, पुरुष की वासना तत्क्षण वहीं क्षीण शरीर की। बायोलाजिकली उसकी शरीर की व्यवस्था अलग है। | हो जाएगी। वहीं, उसी वक्त क्षीण हो जाएगी। क्योंकि स्त्री का जो मासिक धर्म उसकी स्वेच्छा का हिस्सा नहीं है। आमंत्रक रूप है, वह अगर खो जाए, तो पुरुष तत्काल पाएगा कि इसे थोड़ा समझ लें। | वह शांत हो गया है। पुरुष की वीर्यशक्ति उसकी स्वेच्छा पर निर्भर है। स्त्री की इस गुण का नाम कीर्ति है। और जब यह गुण विकसित होता है, कामशक्ति उसकी स्वेच्छा पर निर्भर नहीं है। वह स्वेच्छा से उसमें तो स्त्री पर भी एक तेज आता है। उस पर भी एक अनूठा सौंदर्य कुछ भी नहीं कर सकती। वह उसके शरीर का हिस्सा है। इसलिए | आता है। उस सौंदर्य का कोई संबंध शरीर के सौंदर्य से नहीं है। स्त्री को जब ब्रह्मचर्य में उतरना हो, तो उसकी ब्रह्मचर्य की साधना | कुरूप से कुरूप स्त्री में भी अगर कीर्ति फलित हो जाए, तो पुरुष की ब्रह्मचर्य की साधना से भिन्न होगी। पुरुष के ब्रह्मचर्य की | | उसकी सारी शारीरिक कुरूपता के भीतर से सौंदर्य की आभा फूटने साधना में वीर्य का ऊर्वीकरण होगा। पुरुष की जो ऊर्जा है, वह लगती है। उसकी कुरूपता को लोग देख ही न पाएंगे, उसके भीतर 206
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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