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________________ ॐ मैं शाश्वत समय हूं वस्त्र, सब जैसे पुरुष की वासना को उद्दीपित करने के लिए चुने आंखों से, उस सौंदर्य का जो दर्शन है, उसके व्यक्तित्व से, उसकी जाते हैं। चाहे स्त्री को इस बात की सचेतनता भी न हो, इसकी जो छाया और झलक है, जो उसकी वासना पर पानी डाल दे और कांशसनेस भी न हो कि वह जिन कपड़ों को पहनकर रास्ते पर आग बुझ जाए। उसका नाम कीर्ति है। निकली है, वेधक्के खाने का आमंत्रण भी हैं। शायद धक्का खाकर | लेकिन हम जो कीर्ति से मतलब लेते हैं, कहते हैं कि फलां स्त्री वह नाराज भी हो, शायद वह चीख-पुकार भी मचाए, शायद रोष | की इज्जत चली गई, उसमें सब लोग यही सोचते हैं कि इज्जत लेने भी जाहिर करे; लेकिन उसे खयाल न आए कि उस धक्के में उसका | वाला ही जिम्मेवार होगा। पचास परसेंट तो होगा ही। लेकिन सिर्फ भी उतना ही हाथ है, जितना मारने वाले का है। उसके वस्त्र, उसका पचास परसेंट ही होगा। उसमें इज्जत खोने की तैयारी भी है। और ढंग, उसके शरीर को सजाने और भंगार की व्यवस्था अपने लिए सच तो यह है कि जिस स्त्री की इज्जत को खोने के लिए कोई उत्सुक नहीं मालूम पड़ती, किसी और के लिए मालूम पड़ती है। नहीं है, वह बड़ी बेचैन हो जाती है। वह परेशान हो जाती है। उसको ___ इसलिए उसी स्त्री को घर में देखें, उसके पति के सामने, तब | | लगेगा कि वह है ही नहीं, उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है। उसे देखकर विराग पैदा हो। उसी स्त्री को बीच पर देखें, भीड़ में, | यह बड़े मजे की बात है। आदमी का माइंड इस तरह डबल बाइंड तब उसे देखकर राग पैदा हो। पति इसीलिए तो विरक्त हो जाते हैं। | है, दोहरा बंधा हुआ है। हम खींचते भी हैं, और हटाते भी हैं। हम स्त्रियां जिस रूप में उनको दिखाई पड़ती हैं, कम से कम उनकी | पुकारते भी हैं, और दुत्कारते भी हैं। एक तरफ हम चाहते हैं, लोग स्त्रियां, पड़ोसियों की स्त्रियों में आकर्षण बना रहता है। लेकिन | आकर्षित भी हों। और दूसरी तरफ हम चाहते हैं कि लोग हमें उनकी स्त्रियां जिस रूप में दिखाई पड़ती हैं...। क्योंकि स्त्री भी | वासना का बिंदु भी न मानें! धीरे-धीरे, टेकन फार ग्रांटेड दोनों हो जाते हैं कि ठीक है। लेकिन | | अभी अमेरिका में स्त्रियों के नए आंदोलन हैं, लिब मूवमेंट्स हैं, जब स्त्री भीड़ में निकलती है, तब उसकी सारी की सारी दृष्टि अपने | | जिनमें स्त्रियां कोशिश कर रही हैं कि हमें वासना की वस्तु न समझा को एक कामवासना का विषय मानकर चलती है। और दूसरे पुरुष | जाए। उनका यह आंदोलन भी चलेगा कि उन्हें वासना की वस्तु न भी उसको यही मानकर चलते हैं। समझा जाए, और उनका व्यक्तित्व और उनके रहने का ढंग और कीर्ति का अर्थ है, जिस स्त्री में ऐसी दृष्टि न हो। ऑनर जिसको जीवन, सब वासना की वस्तु ही बनने की चेष्टा होगी। अंग्रेजी में कहते हैं, इज्जत जिसे उर्दू में कहते हैं। कीर्ति का अर्थ है, कीर्ति स्त्री के भीतर उस गुणवत्ता का नाम है, जहां वासना पर ऐसी स्त्री, जो अपने को वासना का विषय मानकर नहीं जीती; | | पानी गिर जाता है। कीर्ति का अर्थ हुआ कि जिस स्त्री के पास जिसके व्यक्तित्व से वासना की झंकार नहीं निकलती। तब स्त्री को | बैठकर आपकी वासना तिरोहित हो जाए। इसलिए हमने मां को एक अनूठा सौंदर्य उपलब्ध होता है। और वह सौंदर्य उसकी कीर्ति | | इतना मूल्य दिया। कीर्ति के कारण मां को हमने इतना मूल्य दिया, है, उसका यश है। आज वैसी स्त्री को खोजना बहुत मुश्किल | मातृत्व को इतना मूल्य दिया। पड़ेगा। बहुत मुश्किल पड़ेगा। पुराने ऋषियों ने आशीर्वाद दिए हैं, बड़े अजीब आशीर्वाद! कीर्ति एक आंतरिक गुण है, एक भीतरी सौंदर्य है। उस सौंदर्य | | नववधू को आशीर्वाद दिया है, पुराने ऋषियों के उल्लेख हैं कि का नाम कीर्ति है, जिसे देखकर वासना शांत हो, उभरे नहीं। आशीर्वाद दिए हैं, कि दस तेरे पुत्र हों और अंत में तेरा पति तेरा यह थोड़ा कठिन मामला है। यह थोड़ा कठिन मामला है। ग्यारहवां पुत्र हो जाए। और जब तक पति भी तेरा पुत्र न हो जाए, लेकिन एक बात हम समझ सकते हैं कि अगर स्त्री वासना को | तब तक तू जानना कि तूने स्त्री की परम गरिमा उपलब्ध नहीं की। उभाड़ सकती है, तो शांत क्यों नहीं कर सकती? जो भी उभाड़ बन ___ पति पुत्र हो जाए! अदालतों में ऐसे मुकदमे हैं, जहां पुत्र पति हो सकता है, वह शांत करने वाला शामक भी बन सकता है। अगर गया है। हर वर्ष दुनिया की अदालतों में ऐसे सैकड़ों मुकदमे होते हैं। स्त्री अपने ढंगों से वासना को उत्तेजित करती है, प्रज्वलित करती | __यह जो पति भी पुत्र हो जाए जिस गुण से, जिस आंतरिक धर्म है, तो अपने ढंगों से उसे शांत भी कर दे सकती है। | से, उसका नाम कीर्ति है। वह जो शांत करने वाला सौंदर्य है, कि दूसरा व्यक्ति वासनातुर | - कृष्ण कहते हैं, स्त्रियों में मैं कीर्ति। होकर भी आ रहा हो, विक्षिप्त होकर भी आ रहा हो, तो स्त्री की निश्चित ही, बहुत दुर्लभ गुण है; खोजना बहुत मुश्किल है। 205
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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