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________________ ॐ गीता दर्शन भाग-500 अगर प्रवाह में बहता हूं, तो फिर मैं कुछ भी नहीं हूँ! टाइम क्या है! अगर कोई आदमी उलटी धार में तैरकर गंगोत्री पहुंच जाए, तो अभी आप जिस समय को जानते हैं, वह घड़ी का समय है; सारे दनिया के अखबार उसकी फोटो छापेंगे। और कोई आदमी उसका अक्षय काल से कोई संबंध नहीं है। घडी का समय, आपका गंगोत्री से बहकर सागर में पहुंच जाए, कोई अखबार छापने वाला निर्मित समय है। घड़ी का समय, आपका बनाया हुआ समय है। नहीं मिलेगा। उलटा अगर हम दो हाथ जीत पाते हैं, तो विजय वह समय नहीं है। हमने दिन को चौबीस घंटों में बांट लिया है। मालूम पड़ती है। हमने घंटे को साठ मिनटों में बांट लिया है। हमने मिनट को साठ लेकिन ध्यान रहे, समय की धार में कोई भी उलटा नहीं तैर सेकेंडों में बांट लिया है। यह हमारी व्यवस्था है। इससे मूल समय सकता। नदी की धार में दो हाथ कोई मार भी ले। समय की धार में | | का कोई संबंध नहीं है। इससे हम कामचलाऊ समय को निर्मित उलटा नहीं तैर सकता। क्योंकि समय पीछे बचता ही नहीं कि आप कर लिए हैं। इसी को अगर आप समय समझते हैं, तो आप भूल उसमें तैर सकें। नदी तो पीछे भी होती है। समय तो विलीन हो जाता में हैं, आप गलती में हैं। है। एक ही क्षण आपको मिलता है, पिछला क्षण तो विलीन हो | | समय तो उसी दिन आपको पता चलेगा, जिस दिन आप तथाता जाता है। अतीत तो बचता नहीं कि आप पीछे जा सकें। सिर्फ | | को, टोटल एक्सेप्टेंस को उपलब्ध हो जाएंगे। उस दिन, यह कृष्ण जो भविष्य ही बचता है। आगे ही जा सकते हैं, पीछे जाने का कोई | काल का अक्षय स्वरूप कह रहे हैं, यह आपके अनुभव में आएगा। उपाय नहीं। कभी चौबीस घंटे ही ऐसा करें कि बहकर देखें, तेरें मत। धार्मिक लेकिन मन पीछे जाने की कोशिश करता रहता है। उस विपरीत आदमी तैरता नहीं है; अधार्मिक आदमी तैरता है। धर्मिक आदमी दौड़ में अहंकार निर्मित जरूर होता है. लेकिन हम समय के साथ बहता है। बहता है. कहना भी शायद ठीक नहीं। क्योंकि बहता है. एक होने का जो गहन अनुभव है, उससे वंचित हो जाते हैं। | इसमें भी ऐसा लगता है कि कुछ करता है। नहीं, धार्मिक आदमी धार धार के साथ बह जाएं, कोई बाधा न डालें। नदी की धार के साथ | के साथ एक हो जाता है। धार जहां ले जाती है, वहीं चला जाता है। एक हो जाएं। और जीवन जो भी ले आए, उसे परम आनंद से | • लाओत्से ने कहा है कि मैंने एक सूखे पत्ते को देखा। वर्षों तक स्वीकार कर लें। उसमें रंचमात्र भी नकार न हो। उसमें रंचमात्र भी मैंने ध्यान किया। वर्षों तक मैंने पूजा की, प्रार्थना की। वर्षों तक मैंने अस्वीकार न हो। उसमें शिकायत न हो। ऐसे ही आदमी का नाम उसको खोजा। लेकिन उसका मुझे कोई पता नहीं मिला। फिर एक धार्मिक आदमी है, जिसके मन में जीवन के प्रति शिकायत नहीं है। दिन मैं बैठा था। पतझड़ के दिन थे, सूखे पत्ते वृक्षों से गिरकर उड़ मंदिर जाने वाला आदमी धार्मिक नहीं है। क्योंकि हो सकता है, रहे थे। और तब मैंने उस मौन शांत दोपहरी में देखा सूखे पत्तों को। मंदिर वह सिर्फ शिकायत के लिए जा रहे हों। अधिक लोग तो मंदिर और उसी दिन मुझे राज मिल गया। शिकायत के लिए जाते हैं। अधिक लोगों की प्रार्थनाएं यह बताती | | हवा सूखे पत्ते को बाएं ले जाए, तो सूखा पत्ता बायां चला जाता हैं कि भगवान, तुझसे ज्यादा तो हम समझते हैं! तू जो कर रहा है, | | था। दाएं ले जाए, तो दाएं चला जाता था। ऊपर ले जाए, तो वह गलत है। हम जो चाहते हैं, वह कर! हमारी प्रार्थनाएं, हमारे | | आकाश में उठ जाता था। जमीन पर पटक दे, तो नीचे विश्राम करने मंदिर, हमारी पूजाएं, हमारी मस्जिदें, हमारी शिकायतों के घर हैं। लगता था। सूखे पत्ते की अपनी कोई मर्जी ही न थी। सूखे पत्ते की लेकिन जो आदमी शिकायत लेकर मंदिर गया है, वह मंदिर जा | अपनी कोई आकांक्षा न थी। सूखे पत्ते के हृदय में कोई भाव ही न ही नहीं सकता। मंदिर में प्रवेश का तो एक ही मार्ग है कि कोई | था कि मैं कहां जाऊं। हवाएं जहां ले जाएं, वहीं जाने को राजी था। शिकायत न हो। जीवन ने जो दिया है, जीवन ने जो किया है, जीवन | सूखे पत्ते ने अपना अस्तित्व ही खो दिया था। जैसा है, उसमें परम हर्ष हो, उसके स्वीकार में परम उत्सव हो, तब | ___ हमारी वासनाएं ही हमारा अस्तित्व हैं। हमारी आकांक्षाओं का आप बहेंगे। और आपके और समय के बीच जो दुविधा मालूम | जोड़ ही हमारा तथाकथित होना है। सूखा पत्ता हवाओं के साथ एक पड़ती है, वह विलीन हो जाएगी। आप समय के साथ एक हो | | हो गया था। हवाएं आकाश में उठातीं, तो सिंहासन पर विराजमान जाएंगे। इस समय के साथ जो एक होने की घटना है, उस घटना | | होकर आनंदित होता। हवाएं नीचे गिरा देतीं, तो धूल में विश्राम में ही आपको काल के अक्षय स्वरूप का बोध होगा। यह इटरनल करता, आनंदित होता। |200
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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