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________________ 8 मैं शाश्वत समय हूं आप समय को छू भी नहीं सकते, काटना तो बहुत दूर है। समय | | जाएगा। जो इस बहने को रोकने की कोशिश करेगा, वह और भी का आपको कोई अनुभव भी नहीं होता, काटना तो बहुत दूर है। | जल्दी नष्ट हो जाएगा। उसकी कोशिश ऐसी ही होगी, जैसे कोई आप सिर्फ अपने को काट सकते हैं। समय तो अक्षय है, कटेगा | नदी की तीव्र धार के विपरीत बहने की कोशिश करता हो। वह और भी नहीं। आपके काटे नहीं कटेगा। अब तक किसी के काटे नहीं जल्दी थक जाएगा और धार उसे जल्दी बहा ले जाएगी। कटा है। और सब काटने वाले विलीन हो जाते हैं। सब काटने वाले समय के साथ एकता साध लेनी, परमात्मा के साथ एकता साध आते हैं और खो जाते हैं। और समय शाश्वत अपनी जगह बना लेनी है। लेकिन समय के साथ एकता साधने का अर्थ है, परिवर्तन रहता है। को स्वीकार करने की क्षमता। जो भी हो जाए, उससे राजी हो जाने समय की यह शाश्वतता, यह इटरनिटी, कृष्ण कहते हैं, मैं ही हूं। का गण। जो भी घटित हो. उसके साथ परा आत्मैक्य। कहीं कोई इस जगत में अगर किसी चीज को अक्षय का प्रतीक मानें हम, | विरोध न हो; समय जो भी ले आए, उसके साथ पूरा तालमेल। तो वह समय है। बाकी सब चीजें क्षय हो जाती हैं। समय में जितनी | बीमारी आ जाए, तो बीमारी। बुढ़ापा आ जाए, तो बुढ़ापा। मृत्यु चीजें हैं, वे सभी क्षय हो जाती हैं, सिर्फ समय को छोड़कर। समय आने लगे, तो मृत्यु। कहीं कोई विरोध नहीं। भीतर कहीं कोई विरोध पर मृत्यु का कोई प्रभाव नहीं है। नहीं। जो भी हो, उसके साथ पूरा आत्मैक्य। तो आप समय को इसलिए हमने, विशेषकर भारत ने, समय को और मृत्यु को भी जान पाएंगे कि समय क्या है। एक मान लिया है। इसलिए मृत्यु को भी हम काल कहते हैं और लेकिन हम सब लड़ रहे हैं। हम सब समय से हटने की कोशिश समय को भी काल कहते हैं। कर रहे हैं। हट नहीं सकते, वह आकांक्षा संभव नहीं होगी, लेकिन सिर्फ समय की कोई मृत्यु नहीं है। इसका अर्थ यह हुआ कि | हमारी चेष्टा वही है। अगर समय मृत्यु से अलग होता, तो समय की भी मृत्यु घटित सुना है मैंने, मुल्ला नसरुद्दीन को उसके घर के बाहर लोगों ने होती। समय मृत्यु के साथ एक है। इसलिए मृत्यु की तो क्या मृत्यु | पकड़ा और कहा कि तुम यहां क्या कर रहे हो! वह वृक्ष के नीचे होगी! मृत्यु तो कैसे मरेगी? इसलिए हमने मृत्यु को भी काल का | बैठकर कुछ सोच-विचार में लीन था। कहा कि तुम्हारी पत्नी नदी नाम दिया। की बहती धार में गिर गई है। और धार तेज है और वर्षा के दिन महावीर ने आत्मा को काल का नाम दिया, हमने समय को भी | हैं, और ज्यादा देर नहीं लगेगी कि समुद्र में तुम्हारी पत्नी पहुंच काल कहा, हमने मृत्यु को भी काल कहा। इनके पीछे कारण हैं। जाएगी। भागो! मृत्यु भी एक शाश्वतता है। और अगर हम गौर से देखें, तो मृत्यु मुल्ला भागा। कपड़े फेंककर नदी में कूदा और नदी की उलटी सिर्फ एक शब्द है। समय के द्वारा हम काट दिए जाते हैं। जब हम धार में जोर से हाथ मारने लगा। लोगों ने चिल्लाकर कहा कि यह पूरे काट दिए जाते हैं, तो उस घटना को हम मृत्यु कहते हैं। और तुम क्या कर रहे हो? अगर पत्नी बहेगी, तो बहने का एक ही ढंग तो मृत्यु कुछ भी नहीं है। मृत्यु और कुछ भी नहीं है। | है कि वह नीचे की तरफ जाएगी, जहां धार जा रही है। और तुम जैसे नदी की धार बहती हो और जमीन कट जाती है, और उलटे जा रहे हो? धीरे-धीरे जमीन बह जाती है, सॉइल इरोजन हो जाता है। ऐसा ही मुल्ला ने कहा, मैं अपनी पत्नी को तुमसे ज्यादा अच्छी तरह हमारा अस्तित्व समय की धार में कटता जाता है, कटता जाता है, जानता है। उलटा जाना उसकी आदत है। उसके साथ तीस साल इरोजन हो जाता है। एक दिन हम पाते हैं कि हम बह गए, | रह चुका हूं। सारी दुनिया गिरकर नदी में अगर सागर की तरफ जाती कण-कण होकर बह गए। जिस दिन हम पूरे बह जाते हैं, उन दिन होगी, तो मेरी पत्नी नहीं जा सकती, वह उलटी जा रही होगी! हम कहते हैं, मृत्यु हो गई। लेकिन समय हमें प्रतिपल बहाए ले जा | हम सारे लोग ही लेकिन वैसे हैं। अगर हम जीवन की धार को रहा है। हम प्रतिपल बह रहे हैं। | देखें, तो हम सब उलटे तैरने की कोशिश करते हैं। उलटे तैरने में हम रुक भी नहीं सकते। रुकने का कोई उपाय नहीं है। यह होने | | एक मजा जरूर है, उसी कारण हम तैरते हैं। उलटे तैरने में अहंकार का ढंग है, यह नियति है। इसमें रुकने का कोई उपाय नहीं है। निर्मित होता है। अगर मैं दो हाथ उलटे मार लेता हूं, तो लगता है, बहना ही होगा। जो इस बहने से लड़ने लगेगा, वह और जल्दी टूट | मैं कुछ हूं। धार के विपरीत, प्रवाह के विपरीत, मैं कुछ हूं। और 11991
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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