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गीता दर्शन भाग-5
हमारा कृत्य भी हमारी आत्मा से ऊपर मालूम पड़ता है। आप किसी को नमस्कार करते हैं और कहते हैं, मिलकर बड़ी खुशी हुई। और भीतर आपको कोई खुशी नहीं हो रही होती। बल्कि दुख रहा होता है कि इस दुष्ट की शक्ल सुबह से कहां से दिखाई पड़ गई ! आपका कृत्य आपकी आत्मा से बड़ा मालूम पड़ता है। आप जो कहते हैं, जो करते हैं, वही काफी ऊंचा है। आप जो हैं, और भी नीचा है।
राम ठीक इसके विपरीत हैं। वे जो कर रहे हैं वह बहुत नीचा है। जो हैं, वह बहुत ऊपर है। कृष्ण कहते हैं, मैं कर रहा हूं, उससे मुझे मत तौलना। मैं शस्त्रधारियों में राम जैसा हूं। मछलियों में मगरमच्छ, नदियों में गंगा हूं। और हे अर्जुन, सृष्टियों का आदि, अंत और मध्य भी मैं ही हूं।
गंगा के प्रतीक को भी समझने जैसा है। गंगा के साथ हिंदू मन बड़े गहरे में जुड़ा है। गंगा को हम भारत से हटा लें, तो भारत को भारत कहना मुश्किल हो जाए। सब बचा रहे, गंगा हट जाए, भारत को भारत कहना मुश्किल हो जाए। गंगा को हम हटा लें, तो भारत का सारा साहित्य अधूरा पड़ जाए। गंगा को हम हटा लें, तो भारत
मालूम कितने ऋषियों के नाम खो जाएं। गंगा को हम हटा लें, तो हमारा तीर्थ ही खो जाए, हमारे सारे तीर्थ की भावना खो जाए। गंगा के साथ भारत के प्राण बड़े पुराने दिनों से कमिटेड हैं, बड़े गहरे में जुड़े हैं। गंगा जैसे हमारी आत्मा का प्रतीक हो गई है। मुल्क की भी अगर कोई आत्मा होती हो और उसके प्रतीक होते हों, तो गंगा ही हमारा प्रतीक है। पर क्या कारण होगा गंगा के इस गहरे प्रतीक बन जाने का कि हजारों-हजारों वर्ष पहले कृष्ण भी कहते हैं कि नदियों में मैं गंगा हूं?
गंगा कोई नदियों में विशेष उस अर्थ में नहीं है। गंगा से बड़ी नदियां हैं, गंगा से लंबी नदियां हैं। गंगा से बड़ी विशाल नदियां पृथ्वी पर हैं। गंगा कोई लंबाई में, विशालता में, चौड़ाई में, किसी दृष्टि से कोई बहुत बड़ी गंगा नहीं है। कोई बहुत बड़ी नदी नहीं है। ब्रह्मपुत्र है, और अमेजान है, और ह्वांगहो है, और सैकड़ों नदियां हैं, जिनके सामने गंगा फीकी पड़ जाए।
पर गंगा के पास कुछ और है, जो पृथ्वी पर किसी भी नदी के पास नहीं है। और उस कुछ और के कारण भारतीय मन ने गंगा के साथ एक ताल-मेल बना लिया। एक तो बहुत मजे की बात है कि पूरी पृथ्वी पर गंगा सबसे ज्यादा जीवंत नदी है, अलाइव । सारी नदियों का पानी आप बोतल में भरकर रख दें, सभी नदियों का पानी
सड़ जाएगा, गंगा भर का नहीं सड़ेगा । केमिकली गंगा बहुत विशिष्ट है। उसका पानी डिटेरिओरेट नहीं होता, सड़ता नहीं, वर्षों रखा रहे। बंद बोतल में भी वह अपनी पवित्रता, अपनी स्वच्छता कायम रखता है।
ऐसा किसी नदी का पानी पूरी पृथ्वी पर नहीं है। सभी नदियों के पानी इस अर्थों में कमजोर हैं। गंगा का पानी इस अर्थों में विशेष मालूम पड़ता है, उसका विशेष केमिकल गुण मालूम पड़ता है।
गंगा में इतनी लाशें हम फेंकते हैं। गंगा में हमने हजारों-हजारों वर्षों से लाशें बहाई हैं। अकेले गंगा के पानी में, सब कुछ लीन हो | जाता है, हड्डी भी। दुनिया की किसी नदी में वैसी क्षमता नहीं है। | हड्डी भी पिघलकर लीन हो जाती है और बह जाती है और गंगा को अपवित्र नहीं कर पाती। गंगा सभी को आत्मसात कर लेती है, हड्डी | को भी। कोई भी दूसरे पानी में लाश को हम डालेंगे, पानी सड़ेगा। पानी कमजोर और लाश मजबूत पड़ती है। गंगा में लाश को हम डालते हैं, लाश ही बिखर जाती है, मिल जाती है अपने तत्वों में । गंगा अछूती बहती रहती है। उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता ।
गंगा के पानी की बड़ी केमिकल परीक्षाएं हुई हैं, वैज्ञानिक । और अब यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो गया है कि उसका पानी असाधारण है।
यह क्यों है असाधारण, यह भी थोड़ी हैरानी की बात है। क्योंकि गंगा जहां से निकलती है, वहां से बहुत नदियां निकलती हैं। गंगा | जिन पहाड़ों से गुजरती है, वहां से कई नदियां गुजरती हैं। तो गंगा में जो खनिज और जो तत्व मिलते हैं, वे और नदियों में भी मिलते हैं। फिर गंगा में कोई गंगा का ही पानी तो नहीं होता, गंगोत्री से तो | बहुत छोटी-सी धारा निकलती है। फिर और तो सब दूसरी नदियों का पानी ही गंगा में आता है। विराट धारा तो दूसरी नदियों के पानी की ही होती है।
लेकिन यह बड़े मजे की बात है कि जो नदी गंगा में नहीं मिली, उस वक्त उसके पानी का गुणधर्म और होता है और गंगा में मिल जाने के बाद उसी पानी का गुणधर्म और हो जाता है ! क्या होगा | कारण ? केमिकली तो कुछ पता नहीं चल पाता। वैज्ञानिक रूप से | इतना तो पता चलता है कि विशेषता है और उसके पानी में खनिज और केमिकल्स का भेद है। विज्ञान इतना ही कह भी सकता है। लेकिन एक और भेद है, वह भेद विज्ञान के खयाल में आज नहीं तो कल आना शुरू हो जाएगा। और वह भेद है, गंगा के पास लाखों-लाखों लोगों का जीवन की परम अवस्था को पाना ।
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