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गीता दर्शन भाग-508
पड़ेगा। और अगर महात्मा चले गए बिना झांके, तो फिर किसी | भी होते हैं। तो कभी कोई दो दाने भी गिर सकते हैं। लेकिन समय बहाने उनको लौटना पड़ेगा। और अगर हिम्मत न पड़ी कि कहीं की घड़ी में से कभी भी दो दाने नहीं गिरते। एक ही क्षण आपके भक्तगण देख न लें कि वहां झांककर देखते हो, जहां झांकना मना | हाथ में होता है, नपा-तुला। और पूरी जिंदगी! है, तो रात सपने में वे जरूर वहां आएंगे। उस पट्टी को झांकना ही तो कृष्ण कहते हैं कि मैं समय हूं गिनती करने वालों में। पड़ेगा। वह मजबूरी, वह आब्सेशन हो जाता है।
इससे ज्यादा सूक्ष्म गिनती किसी की भी नहीं है। और हिंदू दृष्टि बुराई को आब्सेशन मत बना देना। भलाई को इतना मत थोपना | से एक-एक व्यक्ति के क्षण गिने हुए हैं। कोई भी व्यक्ति अपने कि उसके विपरीत भाव पैदा हो जाए।
गिने हुए क्षण से ज्यादा नहीं जी सकता। हिंदू हिसाब से जिंदगी की ___ इसलिए बच्चे को बड़ा करना एक बहुत डेलिकेट बात है, बहुत | सीमा पिछली जिंदगी के कर्मों से नियत होती है। मैंने जो पिछले नाजुक बात है। और अब तक आदमी सफल नहीं हो पाया है। जन्म में किया है, वह मेरी इस जिंदगी के समय को तय करता है। बच्चे को ठीक से बड़ा करने में आदमी अभी भी असफल है। अभी मैं समय तो तय कर चुका हूं। भी शिक्षा की सारी व्यवस्थाएं गलत हैं। क्योंकि बहुत नाजुक इसलिए ऐसा भी होता है, जैसे बुद्ध को ज्ञान हुआ, तब वे उस मामला है। और उस नाजुकपन को समझने में बड़ी कठिनाई है। | स्थिति को पहुंच गए कि उसके बाद जीने का कोई भी कारण न बड़ी से बड़ी कठिनाई तो यह है कि हमें इस बात का खयाल ही नहीं | था। कोई भी कारण नहीं था। बुद्ध को जीने का क्या कारण! कोई है कि आदमी के भीतर गति कैसे पैदा होती है?
वासना न रही, तो जीने का कोई कारण न रहा। लेकिन चालीस यह प्रह्लाद के भीतर जो गति पैदा हुई, यह प्रह्लाद के पिता की साल जीना पड़ा। वजह से पैदा हुई। और चूंकि वह दैत्यों के घर में पैदा हुआ था, | | बुद्ध से किसी ने पूछा कि आप अब क्यों जी रहे हैं? क्योंकि न इसलिए जब विपरीत चला, तो ठीक दैत्यों से उलटा सारे भक्तों को कुछ आपको करना है, न कुछ पाना है। जो पाना था पा लिया, जो पार कर गया।
करना था कर लिया। अब कुछ भी बचा नहीं शेष। आप पूर्ण हो कृष्ण कहते हैं, मैं प्रह्लाद हूं दैत्यों में।
गए, तो अब आप क्या कर रहे हैं? और गिनती करने वालों में समय हूं, टाइम।
तो बुद्ध ने कहा कि वह पिछले जन्म में जो उम्र पा ली है, उसे यह आखिरी बात हम खयाल में ले लें।
पूरा करना पड़ेगा। वह चालीस साल मुझे जीना पड़ेगा। क्योंकि समय के कुछ लक्षण हैं। एक, कि आपको एक क्षण से ज्यादा समय न तो एक क्षण कम करता है, और न एक क्षण ज्यादा, वह कभी नहीं मिलता; कभी नहीं। आपके हाथ में एक क्षण ही होता | | मुझे पूरा करना पड़ेगा। तो चालीस साल अब मैं जीऊंगा। है, बस। जब एक क्षण निकल जाता है, तब दूसरा मिलता है। जब । यह जीना वैसे ही है जैसे कि आपने साइकिल पर पैडिल मारा, दूसरा निकल जाता है, तब तीसरा मिलता है। आपके हाथ में दो | फिर आप पैडिल रोक दिए, लेकिन साइकिल थोड़ी दूर आगे चली क्षण एक साथ कभी नहीं होते।
जाएगी। मोमेंटम! इतनी देर जो आपने साइकिल को पैडिल मारा, समय भी बड़ा कैलकुलेटर है। समय से ज्यादा ठीक गिनती | साइकिल ने थोड़ी शक्ति अर्जित कर ली। अब आप पैडिल न भी करने वाला कोई भी नहीं दिखाई पड़ता। एक-एक व्यक्ति को मारें. तो साइकिल एकदम से नहीं रुकेगी, थोड़ी दर चली जाएगी। एक-एक क्षण से ज्यादा कभी नहीं मिलता; कोई इसमें धोखा नहीं | बद्ध कहते हैं कि अब मैं जो अर्जित कर लिया हं जन्मों-जन्मों दे सकता। कोई कितना ही बड़ा महायोगी हो, और कोई कितना ही | में, वह चालीस साल की गति अभी काम करेगी, यह शरीर का यंत्र बड़ा धनी हो, और कोई कितना ही बड़ा ज्ञानी हो, कितना ही बड़ा चलता रहेगा। उसमें क्षणभर कम-ज्यादा नहीं किया जा सकता। वैज्ञानिक हो, वह समय को डिसीव नहीं कर सकता कि उससे दो ___ इसलिए कृष्ण कहते हैं, गिनती करने वालों में मैं समय हूं। न क्षण एक साथ ले ले। बस, एक ही क्षण हाथ में आता है। क्षण ज्यादा हो सकता है, न कम हो सकता है। न एक क्षण से ज्यादा ___ कभी आपने रेत की घड़ी देखी है? रेत की घड़ी में से रेत का | किसी को मिल सकता है, न एक खोए हुए क्षण को वापस पाया एक-एक दाना नीचे गिरता रहता है। उसमें तो कभी भूल हो सकती | जा सकता है। समय का गणित बिलकुल पक्का है। है, क्योंकि आदमी की बनाई हुई घड़ी है और रेत के दाने छोटे-बड़े यह कुछ कारण से कृष्ण कह रहे हैं अर्जुन से। ये प्रतीक ऐसे ही
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