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ॐ काम का राम में रूपांतरण
परिस्थिति के पार नहीं उठ सकता, वह किसी भी परिस्थिति में इसी | करो! अगर उसकी मां को कहना पड़ता हो कि बाहर खेलने मत रोने को लेकर बैठा रहेगा।
जाओ, तो कहना पड़ता था कि आज बाहर ही खेलो; भीतर मत कृष्ण कहते हैं, मैं प्रह्लाद हूं दैत्यों में।
आओ! जो भी करवाना हो, उससे उलटी आज्ञा देनी पड़ती थी। जहां ईश्वर का नाम लेने की भी मनाही थी, वहां प्रह्लाद केवल | नसरुद्दीन बड़ा हो गया। यह आज्ञा उलटी जारी रही। फिर वह नाम के ही सहारे ईश्वर को पा लिया। इसे थोड़ा समझें, क्योंकि हमें | अठारह साल का जिस दिन हुआ, उस दिन उसका बाप और तो कोई मनाही नहीं है। जितनी मौज हो लें, रोज अपनी कुर्सी पर | नसरुद्दीन दोनों अपने गधों को लेकर नदी पार हो रहे थे छोटे-से पुल बैठ जाएं और ईश्वर का नाम लेते रहें।
से। नसरुद्दीन का जो गधा था, उस पर शक्कर लदी थी और शक्कर बड़े मजे की बात है! प्रह्लाद ईश्वर के नाम से पा लिया। और | | का झोला बाईं तरफ बुरी तरह झूल रहा था। और ऐसा लगता था कि आप काफी लेते रहते हैं। लोग अपने बच्चों का नाम ईश्वर पर | | अब बोरा गिरा, नदी में अब गिरा–बाईं तरफ। बाप को बोरा इसीलिए रख लेते हैं किसी का नाम राम, किसी का हटवाना था दाईं तरफ। तो बाप ने कहा, बेटे नसरुद्दीन, बोरा दाईं नारायण–कि दिनभर बुलाते रहें। लेकिन बुलाने का परिणाम यह | | तरफ गिर रहा है, बाईं तरफ जरा सरका दे। उलटी खोपड़ी था! होता है कि नारायण को चांटा भी लगाना पड़ता है, गाली भी देनी | | लेकिन उस दिन नसरुद्दीन ने बाईं तरफ ही सरका दिया। बोरा तो पड़ती है। ये सब परिणाम होते हैं, और कुछ नहीं होता। गिरा, बोरे के साथ गधा भी नदी में गिर गया। बाप ने कहा कि
नाम तो लोग रखते थे भगवान पर बच्चों का इसलिए कि दिन नसरुद्दीन, यह कैसा उलटा चरित्र! आज तूने यह क्या किया! में अकारण ही, अनायास ही, बिना वजह के भगवान का नाम आ नसरुद्दीन ने कहा, आपको पता नहीं, मैं अठारह साल का हो गया. जाए। लेकिन जो फल होता है, वह कुल इतना ही होता है कि | | अडल्ट! अब मैंने बचपन की आदतें बदल दी हैं। अब मैं समझ नारायण नाहक पिटते हैं, नाहक गाली खाते हैं! और धीरे-धीरे जब जाऊंगा कि तुम जो कह रहे हो, उससे उलटा नहीं करूंगा; तुम्हारा नारायण को गाली देने की भी क्षमता आ जाती है, तो फिर असली जो मतलब है भीतर. उसका उलटा करूंगा। अब मैं अडल्ट हो गया नारायण भी मिल जाएं, तो गाली ही निकलेगी। आदतें हैं। | हूं। तुम जो कह रहे हो, उसका उलटा, तुमने बचपन में मुझे काफी
लेकिन प्रह्लाद को तो कोई अवसर भी न था, भगवान के नाम | | धोखा दे लिया। अब मैं समझ गया हूं। अब तुम्हारा जो मतलब है के लेने की मनाही थी। उस बीच वह आदमी भगवान के नाम के | भीतर, उसका उलटा करूंगा। अब तुम जरा सोच-समझकर ही सहारे जीवन को इतनी उत्कृष्टता पर ले जा सका, इसका कारण | आज्ञाएं देना। क्या होगा?
आदमी का डायनेमिक्स, आदमी के जीवन की गति जो है, वह इसका कारण यह है कि जीवन की जो डायनेमिक्स, जीवन का पोलेरिटीज में होती है, ध्रुवीयता में होती है, वैपरीत्य में होती है। जो गत्यात्मक रूप है, वह हम नहीं समझते हैं। अगर आपको भी हम सब विपरीत की तरफ झुकते चले जाते हैं। बंद कर दिया जाए एक कोठरी में और सख्त मनाही कर दी जाए| | यह प्रह्लाद की घटना विचारणीय है। इसलिए अपने बच्चों पर कि राम का नाम मत लेना, तब आपके हृदय की बहुत गहराई से अच्छाई जबरदस्ती मत थोपना। नहीं तो बच्चे बुराई की तरफ हट राम का नाम आएगा। क्योंकि यह आपकी स्वतंत्रता की घोषणा जाएंगे। इसलिए बहुत डेलिकेट है मामला। इतना ही डेलिकेट, होगी। और आपको बिठाया जाए और कहा जाए कि लो राम का | जैसी नसरुद्दीन के बाप को मुसीबत हुई। इसका यह मतलब नहीं है नाम! जैसा कि मां-बाप बिठाल रहे हैं बच्चों को ले जा ले जाकर | कि आप बुराई थोपना बच्चे पर। बहुत डेलिकेट है, नाजुक है। कि लो राम का नाम! बच्चे जबरदस्ती ले रहे हैं, कहीं कोई गहराई | | अच्छाई थोपना मत। और अच्छाई को खिलने में सहयोग देना, पैदा नहीं होती। कहीं कोई गहराई नहीं पैदा होती। जीवन की थोपना मत। बराई की इतने जोर से निंदा मत करना कि बराई में रस गत्यात्मकता बड़ी उलटी है।
पैदा हो जाए। निंदा से रस पैदा होता है। बुराई का इतना निषेध मत सुना है मैंने कि मुल्ला नसरुद्दीन को बचपन से ही उसके घर के | | करना कि निमंत्रण बन जाए। परिवार के लोग उलटी खोपड़ी मानते थे। अगर उसकी मां को किसी दरवाजे पर लिख दो कि यहां झांकना मना है, फिर कोई कहना हो कि भोजन कर लो, तो कहना पड़ता था कि आज उपवास महात्मा भी वहां से बिना झांके नहीं निकल सकता। झांकना ही
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