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ॐ गीता दर्शन भाग-500
इतना आग्रह था कि उनके बड़े लड़के हरिदास के मन में यह आग्रह | | अकड़कर खड़े नहीं हो सकते उसके विरोध में, तो तुम कभी भी गुलामी जैसा मालूम होने लगा। यह मत खाओ, वह मत पीयो। | खड़े नहीं हो सकोगे। इतने वक्त सोओ, इतने वक्त उठो। सारी जिंदगी जकड़ दी। इसका यह मतलब हुआ कि जिसके पास समझ हो, वह विपरीत
वह जकड़न इतनी भारी हो गई कि उस पूरे के पूरे को तोड़कर | | परिस्थिति को भी अनुकूल बना लेता है। और जिसके पास हरिदास भाग खड़ा हुआ। जैसे प्रह्लाद भाग खड़ा हुआ अपने बाप | | नासमझी हो, वह अनुकूल परिस्थिति को भी खो देता है। से, वैसे हरिदास भाग खड़ा हुआ अपने बाप से। हरिदास अब्दुल्ला कृष्ण कहते हैं, मैं प्रह्लाद हूं दैत्यों में। गांधी हो गया, मुसलमान हो गया। मांस खाने लगा, शराब पीने | प्रह्लाद से ज्यादा खिला हुआ, शांत और मौन और निर्दोष फूल लगा। कसम खा ली कि ब्रह्ममुहूर्त में उठना ही नहीं, चाहे कुछ भी कहां है? लेकिन दैत्यों के बीच में! पर ऐसे यह उचित ही है। कमल हो जाए। नींद भी खुल जाए, तो भी नहीं उठना। रात देर से ही सोना | भी खिलता है, तो कीचड़ में और कमल यह नहीं चिल्लाता फिरता है, इसका नियम बना लिया। वह जो-जो गांधी ने थोपा था, | कि कीचड़ में मैं कैसे खिलूं, बहुत गंदी कीचड़ नीचे भरी पड़ी है! उस-उस के विपरीत चला गया।
कमल खिल जाता है। उसी कीचड़ से रस खींच लेता है, उसी ध्यान रखना आप, आपका बहुत अच्छा होना कहीं आपके | कीचड़ से सुगंध खींच लेता है। उसी कीचड़ से रंग खींच लेता है। बच्चों के लिए विपरीत चुनौती न हो जाए। इसलिए अच्छे घरों में और उस कीचड़ के पार हो जाता है। न केवल उस कीचड़ के पार अच्छे बच्चे पैदा नहीं हो पाते। बुरे घरों में अक्सर अच्छे बच्चे पैदा हो जाता है, बल्कि उस पानी के भी पार हो जाता है जिससे प्राण हो पाते हैं। अच्छे घरों में अच्छे बच्चे पैदा नहीं हो पाते। अच्छे बाप पाता है। खिलता है खुले आकाश में। . अच्छे बच्चे पैदा करने में बड़े असमर्थ सिद्ध होते हैं।
हम सोच भी नहीं सकते कि कमल और कीचड़ में कोई उसका कुल रहस्य इतना है कि वे इतने जोर से अच्छाई थोपते | बाप-बेटे का संबंध है, कमल और कीचड़ में कोई उत्पत्ति और हैं कि अगर बच्चा बुद्ध हो तो ही मान सकता है, और बुद्ध हो तो | | जन्म का संबंध है। कमल और कीचड़ को एक साथ रखिए, समझ बहुत आगे नहीं जाता। थोड़ा बुद्धिमान हो, रिबेलियस हो जाता है, | | में भी नहीं आएगा कि इन दोनों के बीच कोई सेतु, कोई श्रृंखला है। बगावती हो जाता है। उसका भी अपना अहंकार है, अपनी अस्मिता | लेकिन कीचड़ ही कमल है। और हर कीचड़ से कमल हो सकता है। अगर बहुत ज्यादा दबाव डाला, तो एक सीमा के बाद या तो है। कीचड़ के लिए बैठकर जो रोता रहता है, वह नाहक ही अपने आदमी टूट ही जाता है, तो मिट जाता है; और या फिर भाग खड़ा | आलस्य के लिए कारण खोज रहा है। कीचड़ से कमल हो जाते हैं। होता है, विपरीत यात्रा पर निकल जाता है।
और जिंदगी में जहां भी कीचड़ हो, समझ लेना कि यहां भी कोई न शायद प्रह्लाद के लिए भी सहयोगी हुआ पिता का होना। इससे | कोई कमल खिल सकता है। कोई भी कीचड़ हो, समझ लेना, जो मैं मतलब निकालना चाहता हूं, वह यह कि आप कभी यह मत | कमल खिल सकता है। यह कमल के खिलने का अवसर है। कहना कि परिस्थिति बुरी है, इसलिए मैं अच्छा नहीं हो पा रहा हूं। लेकिन हम सब ऐसे लोग हैं, हम खिलना ही नहीं चाहते। सच तो यह है कि परिस्थिति बरी हो. तो अच्छे होने की संभावना खिलने में शायद श्रम मालम पड़ता है, मेहनत मालम पड़ती है। हम ज्यादा होनी चाहिए, क्योंकि चुनौती है।
जो हैं, वही रहना चाहते हैं। इसलिए हम इस तरह के तर्क खोज हां, अगर कोई आदमी मुझसे कहे कि परिस्थिति इतनी अच्छी है | लेते हैं, जिन तर्कों के आधार से हम जो हैं, वही बने रहने में सुविधा कि मैं अच्छा नहीं हो पा रहा, तो मुझे तर्कयुक्त मालूम पड़ता है। मिलती है। ठीक कह रहा है। बेचारा क्या कर सकता है? परिस्थिति इतनी | हम कहते हैं, क्या कर सकते हैं, परिस्थिति अनुकूल नहीं है! अच्छी है, अच्छा हो भी कैसे सकता है!
| सब तरफ विरोध है, सब तरफ प्रतिकूलता है, बढ़ने का कोई उपाय लेकिन जब कोई आदमी कहता है कि परिस्थिति बुरी है, इसलिए नहीं है। इसलिए हम नहीं बढ़ पा रहे हैं। ऐसे तो हम शिखर पर अच्छा नहीं हो पा रहा है, तो वह सिर्फ अपनी नपुंसकता, अपनी पहुंच सकते थे, सुमेरु पर्वत के शिखर पर बैठ सकते थे, लेकिन इंपोटेंस घोषित कर रहा है। उसका मतलब यह है कि वह कुछ भी परिस्थिति ही नहीं है। नहीं हो सकता। जब परिस्थिति इतनी विपरीत है, तब भी अगर तुम परिस्थिति कभी भी नहीं होगी। परिस्थिति कभी भी नहीं थी। जो