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काम का राम में रूपांतरण
तो महावीर ने कहा, परमात्मा को बीच में रखने से उपद्रव होगा, क्योंकि परमात्मा और नियम, दो के बीच तकलीफ होगी। अगर परमात्मा नियम बदल ही नहीं सकता, तो उसका होना न होना बराबर है। और अगर वह नियम बदल सकता है, तो जिंदगी बिलकुल बेकार है। क्योंकि उसका मतलब यह हुआ कि जो सच बोलता है, वह भी नर्क में पड़ सकता है, अगर परमात्मा उसके पक्ष न हो। और जो झूठ बोलता है, वह भी स्वर्ग में जा सकता है, अगर परमात्मा उसके पक्ष में हो।
इसलिए महावीर ने तो कहा, नियम काफी है। पर महावीर ने नियम को ही परमात्मा मान लिया।
कृष्ण भी वही कह रहे हैं। कृष्ण कह रहे हैं कि तू खयाल रखना अर्जुन, मैं शासन करने वालों में यमराज हूं। न कोई अपवाद हो सकता है, न कोई भेद हो सकता है, न कोई रियायत हो सकती है, न कोई सुविधा हो सकती है। नियम तो पूरा लागू होगा। और उतनी ही सख्ती से लागू होगा, जैसे मौत लागू होती है। उसमें कोई भेद-भाव नहीं किया जा सकता। नियम का अर्थ ही खो जाता है, जब उसमें भेद-भाव किया जाता है।
तो कहते हैं, यमराज हूं मैं । मृत्यु की तरह सुनिश्चित मेरा कृष्ण शासन है।
और अर्जुन, मैं दैत्यों में प्रह्लाद और गिनती करने वालों में समय हूं। पशुओं में मृगराज, पक्षियों में गरुड़ हूं।
ये दो छोटे प्रतीक और समझ लेने जैसे हैं।
मैं दैत्यों में प्रह्लाद हूं! प्रह्लाद जन्मा तो दैत्यों के घर में। लेकिन घर में जन्मने से कुछ भी नहीं होता । घर बंधन नहीं है। प्रह्लाद दैत्य के घर में जन्मता है और परम भक्ति को उपलब्ध हो जाता है। शायद दैत्यों के घर में जो नहीं जन्मे हैं, वे भी इतनी भक्ति को उपलब्ध नहीं हो पाते। प्रह्लाद जैसा भक्त खोजना बिलकुल मुश्किल है।
यह बड़े मजे की बात है। दैत्य के घर में जन्मा हुआ बच्चा परम भक्त हो गया; और सदगृहस्थों, सज्जनों और देवताओं के घर में जन्मे बच्चे भी प्रह्लाद के मुकाबले एक नहीं टिक पाते। इससे कुछ बातें निकलती हैं।
एक, आप कहां पैदा होते हैं, किस परिस्थिति में, यह बेमानी है, इररेलेवेंट है। लेकिन हम सब यही रोना रोते रहते हैं कि परिस्थिति ऐसी है, क्या करें? परिस्थिति ही ऐसी है, मैं कर क्या सकता हूं? और अभी तो इस सदी में यह रोना इतना भयंकर हो गया है कि अब
किसी को कुछ करने का सवाल ही नहीं है।
एक आदमी चोर है, तो इसलिए चोर है, क्योंकि परिस्थिति ऐसी है । और एक आदमी हत्या करता है, तो मनोवैज्ञानिक कहते हैं, वह क्या कर सकता है ! उसकी बचपन से सारी अपब्रिंगिंग, उसका पालन-पोषण जिस ढंग से हुआ है, उसमें वह हत्या ही कर सकता है! सब कुछ परिस्थिति पर निर्भर है।
मार्क्स ने कहा है, आदमी तय नहीं करता समाज को, समाज तय करता है आदमी को । आदमी निर्माण नहीं करता परिस्थितियों का, परिस्थितियां निर्माण करती हैं आदमी का ।
ध्यान रखें, धर्म और धर्म के विरोध में जो भी धारणाएं हैं, उनके | बीच यही फासला है। धर्म कहता है, आदमी निर्माण करता है सब कुछ, परिस्थिति का और अपना । और धर्म के विपरीत जो धारणाएं हैं, वे कहती हैं, आदमी कुछ निर्माण कर नहीं सकता, ' परिस्थितियां सब निर्माण करती हैं, अपना भी और आदमी का भी।
इसलिए मार्क्स कहता है, परिस्थिति बदलो, तो आदमी बदल जाएगा। इसलिए सारी दुनिया में कम्युनिज्म परिस्थिति बदलने की कोशिश में लगा है कि आदमी बदल जाए।
धर्म कहता है, परिस्थिति कितनी ही बदलो, आदमी नहीं बदलेगा। आदमी को बदलो, तो परिस्थिति बदल जा सकती है। आदमी ज्यादा कीमती है, चेतना ज्यादा मूल्यवान है। परिस्थिति जड़ है। आदमी मालिक है।
और इसलिए कृष्ण कहते हैं, राक्षस दैत्यों के घर में पैदा हुआ, दैत्यों में प्रह्लाद मैं हूं।
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सारी परिस्थिति विपरीत थी । सारी परिस्थिति विपरीत थी । वहांभक्त होने का कोई उपाय न था । उपाय ही न था, और प्रह्लाद इतना गहरा भक्त हो सका।
दूसरी बात आपसे कहता हूं, जब विपरीत परिस्थिति हो, तब ऊपर से जो विपरीत दिखता है, उसका अगर उपयोग करना आता हो, तो वह अनुकूल हो जाता है। असल में विपरीत परिस्थिति बन जाती है चुनौती। अगर प्रह्लाद को कहीं अच्छे आदमी के घर में कर देते, तो शायद इतना बड़ा भक्त न हो पाता। और कभी-कभी ऐसा भी होता है कि अच्छे आदमियों के बच्चे इसीलिए बिगड़ जाते कि अच्छे आदमी अच्छे होने की चुनौती नहीं देते, बुरे होने की चुनौती देते हैं।
गांधी का बड़ा लड़का मुसलमान हो गया था, गांधी की वजह से। आदमी अच्छे थे, एकदम अच्छे थे। लेकिन अच्छे होने पर