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________________ ॐ गीता दर्शन भाग- 50 जीवन में सब असमान है, मृत्यु के समक्ष सब समान है। गरीब तो मुझसे पक्षपात नहीं चाहा जा सकता, इसका अर्थ हुआ यह। और अमीर, बुद्धिमान और मूढ़, सुंदर और असुंदर, सफल और | | इसका अर्थ हुआ कि जो परमात्मा से पक्षपात मांग रहे हैं, वे पागल असफल, स्त्री और पुरुष, बच्चे और बूढ़े, काले और गोरे, नीग्रो | हैं। पक्षपात नहीं मिल सकता। जो परमात्मा से प्रार्थनाएं कर रहे हैं और अंग्रेज, कोई भी–मृत्यु इस जगत में अब तक पाई गई | कि उनके लिए अपवाद बना दिया जाए, वे गलती पर हैं। कोई एकमात्र सोशलिस्टिक डिक्टेटरशिप है, एकमात्र समाजवादी तंत्र | अपवाद नहीं हो सकता। उसी के पास है। वहां सब समान है। हम सब इसी कोशिश में लगे हैं कि परमात्मा हमारे लिए अपवाद मृत्यु सबको समान कर देती है। उसका शासन पक्षपात नहीं हो। सबके साथ कुछ भी करे, हमें छोड़ दे। सबके पाप माफ करे न मानता। अमीर यह नहीं कह सकता कि थोड़ी देर रुक, क्योंकि मैं | | करे, हमारे माफ कर दे। हम ऐसे हिसाब में लगे हैं कि सबको तो अमीर हूं। अभी थोड़ी देर से आना, क्योंकि इस वक्त मेरी पार्टी | | उनके पापों का दंड ठीक से मिले और हमारे पाप हमें क्षमा कर दिए हुकूमत में है! अभी फुरसत नहीं मिलने की, क्योंकि अभी मैं | | जाएं, क्योंकि हम गंगास्नान कर आए हैं! या हम रोज पूजा करते हैं, मिनिस्टर हूं। नहीं, यह कोई भी उपाय नहीं है। गरीब भिखारी हो | कि हम रोज माला फेरते हैं। हम कुछ रिश्वत दे रहे हैं। हम एक . कि सम्राट हो, हारा-पराजित आदमी हो कि विजेता हो, मृत्यु के | नारियल चढ़ा देते हैं। हम फूल रख आते हैं परमात्मा के चरणों में। समक्ष पक्षपात नहीं है। हम कुछ रिश्वत दे रहे हैं। हम उसे फुसला रहे हैं कि मेरे साथ कुछ इसलिए कृष्ण कहते हैं, शासकों में मैं यमराज। न कोई पक्षपात जरा अपनेपन का खयाल करो। मुझ पर कुछ पक्षपात करो। कुछ मेरे है, न कोई अनिश्चितता है; न कोई भेदभाव है, न कोई अपवाद है। साथ अपवाद करो। सबके नियम मुझ पर मत लगाना। मृत्यु अनूठी घटना है। नहीं, यह कुछ भी नहीं हो सकता। कृष्ण कहते हैं, शासन करने और मुझे ऐसा लगता है कि अगर हम किसी दिन सच में ही | वालों में मैं यमराज हूं। नियम पूरा होगा, पूरा किया जाएगा। नियम सफल हो जाएं पूर्ण समाजवाद लाने में हो नहीं सकते हो | बिलकुल तटस्थ है। जाएं, सब कुछ समान कर दें, तो यह पृथ्वी मरघट के जैसी लगेगी, | | महावीर ने तो बड़ी मजे की बात की है। महावीर ने इसीलिए कहा जिंदगी के जैसी नहीं। क्योंकि अगर हम सब समान करने में सफल | कि नियम चूंकि इतना तटस्थ है, परमात्मा की कोई जरूरत नहीं है, हो जाएं, तो जिंदगी मौत जैसी मालूम पड़ेगी। मौत ही समान हो | नियम काफी है। महावीर ने परमात्मा की जरूरत ही अस्वीकार कर सकती है। जिंदगी के होने का ढंग ही असमानता है, इनइक्वालिटी। दी। उन्होंने कहा, परमात्मा की कोई जरूरत नहीं। चेष्टा करके हम कुछ-कुछ इंतजाम कर सकते हैं, लेकिन वे __ थोड़ा सोचने जैसा है। महावीर ने कहा कि नियम इतना शाश्वत इंतजाम झूठे होंगे। है, इतना अचल है कि नियम काफी है। परमात्मा की बीच में क्या वे इंतजाम ऐसे ही होंगे, जैसे यहां बैठे सारे लोगों के चेहरे पर | जरूरत है? नियम अपना काम करता रहेगा। जो बुरा करेगा, वह मैं नीला रंग पोत दं, तो एक अर्थ में समानता आ गई कि सभी के | बुरा पाएगा। जो पहाड़ से कूदेगा, वह नीचे टकराकर मर जाएगा। पास नीले चेहरे हैं। लेकिन उस नीले रंग के पीछे चेहरों की पृथकता | जो जमीन की कशिश का खयाल नहीं रखेगा, उसके पैर टूट कायम रहेगी। और उस नीले रंग के पीछे भी कोई संदर होगा और जाएंगे। जो भोजन नहीं करेगा, वह मर जाएगा। जैसे ये नियम कोई कुरूप होगा, और कोई बूढ़ा होगा और कोई जवान होगा। | शाश्वत हैं, वैसे ही जीवन का अंतरस्थ नियम भी शाश्वत है। बस, नीला रंग भर एक थोपा हुआ ऊपर से समान हो जाएगा। । इसलिए महावीर ने कहा, भगवान को, परमात्मा को बीच में हम आर्थिक समानता दुनिया पर थोप सकते हैं, लेकिन भीतर सब क्यों रखना! क्योंकि परमात्मा को बीच में रखने से अड़चन होगी। असमान होगा। असल में समानता एक थोपी हुई चीज है, क्योंकि अड़चन यह होगी कि या तो परमात्मा यह कहेगा कि नियम तो पूरा व्यक्ति न समान पैदा होते, न समान जीते; बस समान मरते हैं। | होगा, मैं कुछ भी नहीं कर सकता हूं। तब वर्चुअली उसका होना न मत्य का शासन इस अर्थ में, शायद किसी भी और शासन से होना बराबर है। और अगर परमात्मा को होना है, तो वह कहेगा, तुलना नहीं किया जा सकता। | कोई फिक्र नहीं, तू मेरा भक्त है, तो तुझे मैं माफ किए देता हूं, दूसरे कृष्ण ने कहा कि तथा शासन करने वालों में मैं यमराज हूं। | को माफ नहीं करूंगा; तो अन्याय होगा। 1170|
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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