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________________ 8 गीता दर्शन भाग-500 से भी नीचे गिर जाती है! क्या कारण होगा? प्रकृत है। क्योंकि पशुओं की कामवासना उनकी शुद्ध शारीरिक घटना है। एक और नग्नता भी है। एक पशुओं की नग्नता है, एक हमारी और आदमी की कामवासना शारीरिक कम और मानसिक ज्यादा | | नग्नता है-कपड़ों में ढंकी। एक महावीर की नग्नता भी है। है। मानसिक होने से विकृत है। मानसिक होने से विकृत है, | | महावीर भी नग्न खड़े हैं। लेकिन उनकी नग्नता से किसी को कोई सेरिब्रल होने से विकृत है। एक आदमी संभोग में उतरे, यह निर्दोष | बेचैनी नहीं मालूम पड़ेगी। और अगर बेचैनी मालूम पड़े, तो जिसे हो सकता है। लेकिन एक आदमी बैठकर और संभोग का चिंतन | | मालूम पड़ती है, वही जिम्मेवार होगा। महावीर की नग्नता फिर करे, यह विकृत है, यह बीमार है। बच्चे जैसी हो गई, फिर इनोसेंट हो गई। अब महावीर,की नग्नता तीन संभावनाएं हैं। या तो कामना, काम की शक्ति, प्रकृत हो, | | में, आदमी के ढंके होने से ऊपर जाने की स्थिति आ गई। अब नेचुरल हो। अगर नीचे गिर जाए, तो विकृत हो जाए, अननेचुरल | | ढांकने को भी कुछ न बचा। अगर हम महावीर से पूछे कि आप हो जाए। अगर ऊपर बढ़ जाए, तो संस्कृत हो जाए, सुपरनेचुरल | | नग्न क्यों खड़े हैं? तो वे कहेंगे, जब ढांकने को कुछ न बचा, तो हो जाए। प्रकृत कामवासना दिखाई पड़ती है पशुओं में, पक्षियों में। ढांकना भी क्या है! इसलिए नग्न पक्षी भी हमारे मन में कोई परेशानी पैदा नहीं करता। हम ढांक क्या रहे हैं? हम अपने शरीर को नहीं ढांक रहे हैं। अगर लेकिन कछ लोग इतने रुग्ण हो सकते हैं कि नग्न पश-पक्षी भी बहत गौर से हम समझें. तो हम अपने मन को ढांक रहे हैं। और परेशानी पैदा करें। | चूंकि शरीर कहीं खबर न दे दे हमारे मन की, इसलिए हम शरीर को अभी मैंने सुना है कि लंदन में बूढ़ी औरतों के एक क्लब ने एक ढांके हुए बैठे हैं। लेकिन जब कोई डर ही न रहा हो, शरीर की तरफ इश्तहार लगाया हुआ है। और उसमें कहा है कि सड़क पर कुत्तों | से कोई खबर मिलने का उपाय न रहा हो, क्योंकि मन में ही कोई को भी नग्न निकालने की मनाही होनी चाहिए। | उपाय न रहा हो, तो महावीर नग्न होने के अधिकारी हो जाते हैं। अब बूढ़ी स्त्रियों को सड़क पर नग्न कुत्तों के निकलने में क्या तीन संभावनाएं हैं। अगर कामवासना विकृत हो जाए, जैसी कि एतराज होगा? इस एतराज का संबंध कुत्तों से कम, इन स्त्रियों से | | आज जगत में हो गई है...एकदम विकृत मालूम पड़ती है, और ज्यादा है। इनके मन में कहीं कोई गहरा विकार है। वही विकार | | चारों तरफ से घेरे हुए है हमें। चाहे आप फिल्म देख रहे हों, तो भी प्रोजेक्ट होता है। | कामवासना अनिवार्य है। चाहे आप अखबार पढ़ रहे हों, चाहे आप हम बच्चे को देखते हैं नग्न, तो तकलीफ नहीं होती। बड़े आदमी | | किताब पढ़ रहे हों, चाहे कहानी पढ़ रहे हों, और यह तो छोड़ दें, को नग्न या बड़ी स्त्री को नग्न देखते हैं, तो पीड़ा क्या होती है? वह | | अगर आप साधु-संतों के प्रवचन भी सुन रहे हों, तो भी पीड़ा कोई विकार है। वह नग्न व्यक्ति में है, ऐसा नहीं; वह हमारे | | कामवासना अपना निषेधात्मक रूप प्रकट करती रहती है। भीतर है। __ यह बहुत मजे की बात है कि मैंने बहुत-सी किताबें देखी हैं उन आदिवासी हैं, उनकी स्त्रियां अर्द्धनग्न हैं, करीब-करीब नग्न हैं, | | लोगों की भी जिन्होंने पोर्नोग्राफी, जिन्होंने अश्लील साहित्य लिखा लेकिन किसी को कोई विकार पैदा होता मालूम नहीं होता। और | है, और स्त्री-पुरुषों के अंगों की नग्न चर्चा की है। उन साधु-संतों हमारी स्त्रियां इतनी ढंकी हुई हैं, जरूरत से ज्यादा ढंकी हुई हैं, | | की किताबें भी मैंने देखी हैं, जिन्होंने स्त्री-पुरुषों के अंगों की चर्चा बल्कि इस ढंग से ढंकी हई हैं कि जहां-जहां ढांकने की कोशिश | की है निंदा के लिए। लेकिन बड़े मजे की बात है, कोई पोर्नोग्राफर की गई है, वहीं-वहीं उघाड़ने का इंतजाम भी किया गया है। हमारा | इतने रस से चर्चा नहीं कर पाता, जितने साधु-संत कर पाते हैं। ढांकना उघाड़ने की एक व्यवस्था है। हम ढांकते हैं, लेकिन उस | इतना रस नहीं मालूम पड़ता। कोई अश्लील लिखने वाला इतने रस ढांकने में बीमारी है। इसलिए जो-जो हम ढांकते हैं, उसे हम | से चर्चा नहीं करता। दिखाना भी चाहते हैं। तो ढांकने से भी हम दिखाने का इंतजाम कर | । यह विकृत रस है। भीतर दमन है, भीतर दबाया है, जबरदस्ती लेते हैं। की है, वह पीछे से निकलता है। हमारी ढंकी हुई स्त्री भी रुग्ण मालूम पड़ेगी। एक आदिवासी । झेन कथा है एक। दो फकीर, एक बूढ़ा और एक युवा, एक नदी नग्न स्त्री भी रुग्ण मालूम नहीं पड़ेगी। वह प्रकृत है, पशुओं जैसी के पास से गुजरते हैं। बूढ़ा फकीर आगे है; भिक्षु है बौद्ध। एक 1166
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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