________________
3 काम का राम में रूपांतरण
चाहिए। गांधीजी को भी बात तो जंचती थी कि ढांक दिए जाएं ये | | से ऐसे गुजर जाता है, जैसे चित्र हों ही न, वही आदमी मंदिर में मंदिर; ये भारतीय संस्कृति को विकृत करते हुए मालूम पड़ते हैं। प्रवेश के योग्य है। कामवासना से जो पार नहीं जाता, वह मंदिर में
जिनको भारतीय संस्कृति का कोई पता नहीं है, उन्हीं को ऐसा प्रवेश नहीं पा सकता है। लगेगा। लेकिन नहीं हो सका वह, क्योंकि खजुराहो जगत-ख्याति | लेकिन कामवासना का विरोध करके कोई कभी पार नहीं गया का मंदिर है और भारत का टूरिज्म का बड़ा धंधा खजुराहो और | | है। इस जगत में समझने के अतिरिक्त पार जाने का कोई भी उपाय कोणार्क जैसे मंदिरों पर निर्भर है। अगर बाहर से पर्यटक देखने न नहीं है। लड़ते हैं नासमझ, जानते हैं समझदार। और जानना ताकत
आते हों इन मंदिरों को, और इन मंदिरों की जगत-ख्याति न हो, तो है। ज्ञान शक्ति है। हमने जरूर इन पर मिट्टी ढांक दी होती, इनको पूर दिया होता, बेकन ने कहा है, नालेज इज़ पावर। सभी अर्थों में सही है। जहां इनको मिटा दिया होता।
भी ज्ञान है, वहीं शक्ति है। और जिस चीज का हमें ज्ञान है, हम इतना हमें क्यों डर लगता है? मां अपने बेटे के साथ इस मंदिर | उसके मालिक हो सकते हैं। और जिसका हमें ज्ञान नहीं है, हम उससे में जाने में भयभीत क्यों होती है? क्योंकि हम जीवन के तथ्यों को | | चाहे भयभीत हों, चाहे पराजित हों, चाहे उसके गुलाम रहें, चाहे स्वीकार नहीं करते। हम जीवन के तथ्यों को झुठलाते हैं; हम | | उससे डरकर भागते रहें, हम उसके मालिक कभी भी न हो सकेंगे। बेईमान हैं। जीवन की सीधी सचाइयों के प्रति हम बहुत बेईमान हैं। ___ आकाश में बिजली कौंधती है, आज हम उसके मालिक हो गए नहीं तो बात ही क्या है? जब कोई मां बनती है किसी बेटे की, तभी | | हैं। वैसे ही ठीक कामवासना और भी बड़ी बिजली है, जीवंत काम-ऊर्जा के कारण बनती है। जब कोई बाप बनता है किसी बेटे | बिजली है, उसके भी मालिक होने का उपाय है। लेकिन मालिक का, तो काम-ऊर्जा के कारण बनता है।
केवल वे ही हो सकते हैं, जो उसके प्रति भी सदभाव रखकर चलें। लेकिन काम-ऊर्जा के प्रति हमने इस तरह के छिपाव खड़े किए | जब कृष्ण कहते हैं, मैं कामदेव हूं, तो सदभाव रखा जा सकता हैं कि हम दुनिया में बात ही नहीं होने देते। जो मौलिक है सत्य, | | है। तब कोई विरोध, तब कोई निंदा का सवाल नहीं है। तब यह भी उसको हम ऐसे छिपाते हैं, जैसे वह घटता ही नहीं है। उस घबड़ाहट | | शक्ति परमात्मा की है, और इस शक्ति का कैसे अधिकतम उपयोग के कारण ये मंदिर हमें प्रवेश करने में डर पैदा करवाते हैं। हो सके, और कैसे यह शक्ति जीवन के लिए मंगलदायी हो जाए,
यह मंदिर बहुत सत्य है। सत्य, नग्न रूप से सत्य है। और विचार । | और कैसे यह शक्ति हमारी मृत्यु का कारण न बने, वरन परम करके इसे निर्मित किया गया है। दीवाल के बाहरी हिस्सों पर | | जीवन में प्रवेश का द्वार हो जाए, इसकी दिशा में मेहनत की जा कामवासना के चित्र हैं। और मंदिर इस बात का प्रतीक है कि जब | सकती है। तक तुम्हारा मन दीवाल के बाहर के चित्रों में लीन हो, तब तक भीतर __ सिर्फ अकेले हिंदुस्तान ने एक विज्ञान को जन्म दिया जिसका प्रवेश नहीं हो सकेगा। जिस दिन तुम्हें बाहर मंदिर की दीवाल पर | नाम तंत्र है। एक पूरे विज्ञान को जन्म दिया, जिसके माध्यम से काम खुदे हुए मैथुन के गहन चित्र जरा भी आकर्षित न करें, उसी दिन तुम | की ऊर्जा ऊर्ध्वगामी हो जाती है। और जिसके अंतिम प्रयोगों से भीतर आना, उसी दिन तुम परमात्मा के मंदिर में प्रवेश कर सकोगे। काम-ऊर्जा थिर हो जाती है, उसका प्रवाह समाप्त हो जाता है।
संसार इस मंदिर के बाहर खुदे हुए चित्रों की परिधि है। और जब कृष्ण कहते हैं, मैं कामदेव हूं। तक किसी का मन कामवासना में डोल रहा है, तब तक वह मंदिर लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि कोई कामवासना में पड़ा रहे। में प्रवेश नहीं हो सकता। और कामवासना में डोलने के दो ढंग हैं। काम को भी दिव्य बनाना है, तभी यह कृष्ण के कामदेव की बात या तो कामवासना के लिए डोल रहा हो, या कामवासना से भयभीत | समझ में आएगी। उसे भी दिव्यता देनी है। होकर डरकर डोल रहा हो।
हमारा तो काम पशुता से भी नीचे चला जाता है; दिव्यता तो ___ जो आदमी इस मंदिर के पास जाता है और आंखें गड़ाकर इन बहुत दूर की बात है। पशुओं की कामवासना में भी एक तरह की चित्रों को देखने लगता है, वह भी उनसे उलझा है; और जो इन | | स्वच्छता है। और पशुओं की कामवासना में भी एक तरह की चित्रों को देखकर आंखें नीची करके दुबककर अंदर घुस जाता है, सरलता है, एक निर्दोष भाव है। आदमी की कामवासना में उतना वह भी इन्हीं चित्रों से उलझा हुआ है। जो आदमी इन चित्रों के पास निर्दोष भाव भी नहीं है। आदमी की कामवासना, लगती है, पशुओं
11651