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________________ ॐ काम का राम में रूपांतरण युवा लड़की खड़ी है नदी के किनारे। और वह उस बढ़े से कहती जिससे आप लड़ते हैं, उससे चौबीस घंटे लड़ना पड़ता है। और है कि मुझे नदी के पार जाना है, और मैं डरती हूं। और उस बूढ़े का | | एक बड़ी कीमिया की बात है भीतरी कि जिससे आप बहुत दिन तक मन हुआ कि हाथ से सहारा देकर नदी पार करा दे। लेकिन यह | लड़ते हैं, आप उसके जैसे ही हो जाते हैं। किसी से भी लड़कर देखें सोचा उसने कि हाथ का सहारा दे दे, कि भीतर वासना पूरी तरह | आप। अगर दो-चार साल किसी दुश्मन से आपकी दुश्मनी चल खड़ी हो गई। वह घबड़ा गया। लड़की से नहीं, अपने से घबड़ा | | जाए, तो चार साल के बाद आप पाएंगे कि आप अपने दुश्मन जैसे गया। आंखें नीची कर लीं और नदी पार हो गया। हो गए। नदी के उस पार जाकर उसे खयाल आया कि मैं तो बूढ़ा आदमी दो मित्र भी इतने एक से नहीं होते, जितने दो शत्रु अंत में एक हूं और मेरा अपने ऊपर संयम है, इसलिए लड़की का हाथ मैंने नहीं से हो जाते हैं। क्योंकि जिससे लड़ना पड़ता है, उसकी ही तरकीबें पकड़ा। हमारे सब संयम इसी तरह के कमजोर हैं। लेकिन मेरे पीछे काम में लानी पड़ती हैं। और जिससे लड़ना पड़ता है, उसी की भाषा जो युवा संन्यासी आ रहा है, कहीं वह इस भूल में न पड़ जाए, काम में लानी पड़ती है। और जिससे लड़ना पड़ता है, उसका जिसमें मैं पड़ा जा रहा था, पड़ते-पड़ते बचा, बाल-बाल बचा। | सत्संग भी करना पड़ता है। और जिससे लड़ना पड़ता है, चौबीस लौटकर उसने देखा, तो उसकी तो छाती बैठ गई। वह युवा संन्यासी | घंटे चेतना में उसका भाव बना रहता है। उस लड़की को कंधे पर बिठाकर नदी पार कर रहा है! | इसलिए कामवासना से लड़ने वाले लोग एक बहुत मानसिक उस लड़के ने, उस युवा संन्यासी ने लड़की को किनारे के पार व्यभिचार में पड़ जाते हैं। भीतर व्यभिचार चलने लगता है। उनके उस तरफ छोड़ दिया। फिर वे दोनों अपने आश्रम की तरफ चलने सपने विकृत हो जाते हैं। लगे। मीलभर का रास्ता, बूढ़े ने एक शब्द भी नहीं बोला। आग | अगर हम साधुओं के सपने देखें, तो हम बहुत घबड़ा जाएं। वैसे जल रही है उसके भीतर। द्वार पर मोनेस्ट्री के, आश्रम के द्वार पर सपने कारागृहों में बंद अपराधी भी नहीं देखते हैं। सपने! अगर हम उसने रुककर उस युवक से कहा कि याद रखो, तुमने जो पाप किया| सपनों में प्रवेश कर सकें, तो हमें बहुत घबड़ाहट होगी। अच्छे है, वह मुझे गुरु को जाकर बताना ही पड़ेगा। | आदमी बुरे सपने देखते हैं। बुरे आदमी इतने बुरे सपने नहीं देखते। उस युवक ने पूछा, कौन सा पाप! कैसा पाप! उस बूढ़े ने कहा, कोई कारण नहीं है देखने का। बुरा वे दिन में ही कर लेते हैं; रात उस लड़की को कंधे पर बिठालना। वह युवा संन्यासी हंसने लगा। में करने को बचता नहीं। अच्छा आदमी जो दिनभर रोक लेता उसने कहा, मैं तो उसे कंधे से नदी के उस पार उतार भी आया, | | है...। कभी आपने उपवास किया हो, तो रात में आपको राजमहल आप उसे अभी भी कंधे पर लिए हुए हैं! यू आर स्टिल कैरीइंग हर। | में भोजन का निमंत्रण मिलेगा ही; जाना ही पड़ेगा। वह जो आपने अभी भी आप उसे खींच रहे हैं! | दिन में रोक लिया है, वह रात सपने में आपका मन पूरा करेगा। चाहे सिनेमागृह में जाएं, तो एक रूप है वासना का। और मंदिर ___ आप यह मत सोचना कि सपना है, इसका क्या मूल्य? में जाकर चर्चा सुनें, तो यह खींचने वाला रूप है वासना का। | सपना भी आपका है, किसी और का नहीं है। और सपना आपसे लेकिन सब तरफ वासना घेरे हुए है। सब तरफ वासना घेरे हुए है। | पैदा होता है। जैसे आपसे कर्म पैदा होता है, वैसे ही स्वप्न भी यह तो रुग्ण मालूम होती है अवस्था; पशु से भी नीचे गिर गई आपसे पैदा होता है। अगर मैं एक आदमी की हत्या करता हूं दिन अवस्था मालूम पड़ती है। | में, तो मैं उतना ही जिम्मेवार हूं, जितना मैं हत्या करने का सपना इससे ऊपरं उठा जा सकता है। लेकिन उठने के लिए पहली | | देखू तब। अदालत मुझे नहीं पकड़ेगी, वह दूसरी बात है। लेकिन ध्यान रखने की बात जरूरी जो है, वह यह है कि जो भी इससे लड़ने | | सपना भी मुझमें ही पैदा होता है, जैसे कर्म मुझमें पैदा होता है। कर्म लगेगा, वह ऊपर नहीं उठ पाएगा। क्योंकि जिससे हम लड़ते हैं, | | भी मेरा है, स्वप्न भी मेरा है। उसमें हमारा रस निर्मित होता है। आप अपने मित्र को भी भूल | और मजा यह है कि कर्म तो मैं किसी दूसरे से भी करवा सकता सकते हैं; शत्रु को भूलना इतना आसान नहीं है। मित्र को भूल जाने | हूं, सपना मैं किसी दूसरे से नहीं दिखवा सकता। मैं किसी की हत्या में इतनी कठिनाई नहीं है, मित्र भूल ही जाते हैं, समय भुला देता | करवाना चाहूं तो एक आदमी को भी रख सकता हूं, लेकिन मेरा है। लेकिन शत्रु! शत्रु को भुलाना बहुत मुश्किल है। सपना मैं ही देख सकता हूं, दूसरा नहीं देख सकता; नौकर नहीं रखे 167
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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