________________
ॐ काम का राम में रूपांतरण
कि मैं पुनः कहता हूं, मेरी उम्र है चार दिन। बुद्ध ने कहा, तुम कोई । यह कामवासना जो बाहर की तरफ दौड़ती है, इसकी कितनी ही व्यंग्य करते हो? मजाक करते हो?
| तृप्ति का उपाय किया जाए, कोई तृप्ति उपलब्ध नहीं होती। बल्कि उसने कहा कि नहीं, चार दिन पहले ही आपको सुनते क्षण में एक और नया खतरा पश्चिम में फ्रायड को मानकर फलित हुआ मुझे अपने होने का पहली दफा पता चला, वही मेरा जन्म है। उसके है। और वह यह कि पचास साल पहले, फ्रायड के पहले पश्चिम पहले तो मैं था ही नहीं। संसार था, मैं नहीं था। मैं तो अभी चार में खयाल था लोगों को कि कामवासना तृप्त हो जाएगी, तो लोग दिन पहले पहली दफे हुआ हूं। और अभी बहुत कमजोर हूं, एक बड़े शांत, संतुष्ट हो जाएंगे। क्योंकि अगर उसी की अतृप्ति से छोटे शिशु की तरह हूं। अभी आपके सहारे की मुझे जरूरत है। बेचैनी है, तो तृप्ति से शांति हो जाएगी। अभी आपकी छाया की मुझे जरूरत है। अभी मैं बिखर सकता हूं। लेकिन आज अमेरिका में उसे तृप्त करने की सर्वाधिक सुविधाएं अभी बहुत कोमल तंतु हूं। लेकिन जन्म मेरा अभी चार दिन पहले | | उपलब्ध हो गई हैं, संभवतः पृथ्वी पर कहीं भी नहीं थीं। सब तरह हुआ है।
| की स्वतंत्रता, एक परमिसिव सोसाइटी, सब तरह से मुक्त करने उस दिन बुद्ध ने कहा था, भिक्षुओ, आज से हमारे भिक्षुओं की | वाला समाज पैदा हो गया है। लेकिन अनूठा अनुभव हुआ। उम्र को नापने की यही व्यवस्था होगी। तुम अपनी उस उम्र को छोड़ अतृप्तियां पुरानी अपनी जगह हैं, और एक नई अतृप्ति पैदा हो गई देना, जब तुम नहीं थे। तुम उसी उम्र को गिनना, जब से तुम हुए हो। है। वह है, कामवासना की व्यर्थता का बोध। पुरानी अतृप्ति में कम जिस दिन तुम अपने को जानो, उसी दिन को समझना तुम्हारा जन्म। | से कम एक आशा थी कि कभी कहीं कोई कामवासना तृप्त होगी, माता-पिता ने तुम्हारे जिसको जन्म दिया था, वह तुम नहीं हो। । तो मन शांत हो जाएगा। अब वह भी आशा न रही। अतृप्ति पुरानी ___माता-पिता एक शरीर को जन्म देते हैं। लेकिन स्वयं को जन्म | | अपनी जगह खड़ी है, एक नई अतृप्ति, और ज्यादा गहरी, कि यह देना हो, तो स्वयं ही देना पड़ता है। यह जन्म घटित होता है, जब | कामवासना ही बिलकुल व्यर्थ है, फ्यूटायल है। इसमें कुछ होने काम की ऊर्जा भीतर की ओर प्रवाहित होनी शुरू होती है। वाला नहीं है।
यह सारा जगत आज विक्षिप्त है। मनसविद कहते हैं _फ्रायड आज पश्चिम का आदमी ऐसी बेचैनी में है. जिसकी हम कल्पना या जुंग या एडलर-वे कहते हैं कि यह सारी विक्षिप्तता का भी नहीं कर सकते। वह रहेगा, क्योंकि फ्रायड का वक्तव्य अधूरा निन्यानबे प्रतिशत कारण कामवासना है। वे ठीक ही कहते हैं। है। फ्रायड के साथ बुद्ध को और कृष्ण को और महावीर को भी लेकिन उनका निदान तो ठीक है, उनका इलाज ठीक नहीं है। उनकी | | जोड़ना अनिवार्य है। फ्रायड का निदान बिलकुल ठीक है, लेकिन डायग्नोसिस बिलकुल सही है, लेकिन वे जो दवाएं बताते हैं, वे | फ्रायड का उपचार ठीक नहीं है। ठीक नहीं हैं।
कृष्ण या बुद्ध या महावीर कामवासना को रूपांतरित करने की . उनका खयाल है, यह सारा मनुष्य इतना पीड़ित है, यह अतिशय | व्यवस्था देते हैं। और जब कामवासना रूपांतरित होती है, तो फिर कामुकता के कारण। इतनी कलह और इतनी ईर्ष्या और इतना संघर्ष उसको कामवासना न कहकर हम कामदेव कहते हैं।
और इतना लोभ, इस सबके भीतर अगर हम प्रवेश करना शुरू इस फर्क को आप समझ लें। करें, तो निश्चित ही केंद्र पर कामवासना मिलेगी। तो फ्रायड कहता | - जब तक कामवासना नीचे की तरफ बहती है, तब तक है कि यह कामवासना को ठीक से तृप्त करने का उपाय न हो, तो | कामवासना एक राक्षस की तरह होती है, एक दानव की तरह। चूसे आदमी विक्षिप्त होता चला जाएगा। तो कामवासना को ठीक से | चली जाती है आदमी को। पीए चली जाती है। उसकी सारी शक्तियों तृप्त होने का उपाय होना चाहिए।
को खींचे चली जाती है। उसे रुग्ण और दीन और दरिद्र किए चली यह भी थोड़ी दूर तक ठीक है। लेकिन कामवासना को तृप्त करने | | जाती है। खोखला कर देती है भीतर से। सब सत्व खिंच जाता है, के कितने ही उपाय किए जाएं, आदमी कामवासना की तृप्ति से फिक जाता है, और आदमी धीरे-धीरे एक चली हुई कारतूस की तरह कभी भी शांत नहीं होता। हो नहीं सकता। कामवासना को हो जाता है। मरने के पहले ही आदमी मर जाता है। रूपांतरित किए बिना आदमी कभी भी शांत नहीं हो सकता। एक बूढ़े आदमी को खालीपन का अनुभव होता है, जैसे भीतर कुछ ट्रांसफार्मेशन चाहिए।
भी नहीं है। वह खालीपन कुछ और नहीं है, कामवासना ने सारी
163