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काम का राम में रूपांतरण
भी अपनी जीवन-दृष्टि में समाहित किया है। यह बड़े साहस की होते देखा हो, उसे आग के दूसरे रूपों का कोई भी पता नहीं होता। बात है। क्योंकि सामान्यतया धर्म काम के विरोधी हैं। और हम | हम कामवासना के एक ही रूप को जानते हैं, जिससे हम अपनी सोच भी नहीं सकते कि कोई ईसाई परम पुरुष कह सके कि मैं | जीवन-शक्ति को क्षीण होते देखते हैं। हम एक ही रूप को जानते कामदेव हूं। हम सोच भी नहीं सकते कि कोई जैन धारणा इस बात | हैं, जिसके कारण हमारे जीवन में सारी विपत्तियां और सारे उपद्रव की स्वीकृति दे सके ईश्वर को कहने की कि मैं कामदेव हूं। यह | खड़े होते हैं। हम एक ही रूप को जानते हैं, जिससे हमारे असंभव है, सोचना भी असंभव है। लेकिन कृष्ण इसे सहजता से आस-पास संसार निर्मित होता है। हम एक ही रूप जानते हैं, कह रहे हैं। और बड़े साहस की बात है।
जिससे क्रोध, लोभ, भय, ईर्ष्या, वैमनस्य, सबका जन्म होता है। साहस की इसलिए है कि हम केवल कामवासना के एक ही रूप | हम कामवासना का अधोगामी रूप ही जानते हैं। से परिचित हैं। और इसलिए जब भी कामवासना का खयाल भी इसलिए अगर कोई कहे कि कृष्ण भी कामदेव हैं, तो हमें बहुत हमारे मन में आता है, तो जो चित्र हमारे सामने मौजूद होता है, वह | घबड़ाहट होती है। क्योंकि काम का जो रूप हम जानते हैं, वह हमारी ही कामवासना के अनुभव का है। हमें कामवासना के दूसरे | सोचकर भी हमें घबड़ाहट होती है। हम तो चाहेंगे कि कृष्ण रूप का कोई पता ही नहीं है।
कामवासना के बिलकुल ऊपर हों, बिलकुल दूर हों, उनको छू भी न एक ही ऊर्जा है मनुष्य के भीतर, उसे हम कोई भी नाम दें। अगर | जाए। यह हमारा ही अनुभव है, जिसके कारण हम ऐसा सोचते हैं। वही ऊर्जा नीचे की तरफ प्रवाहित होती है, तो कामवासना और लेकिन कृष्ण जब कहते हैं, मैं कामदेव हूं, तो वे कामवासना सेक्स बन जाती है। और वही ऊर्जा अगर ऊपर की तरफ प्रवाहित | के दूसरे रूप को भी समाहित कर रहे हैं। वह दूसरा रूप ही हमारी होने लगती है, तो अध्यात्म, कुंडलिनी, हम जो भी नाम देना चाहें। दृष्टि में नहीं है, इसलिए हमें अड़चन और कठिनाई होती है। जैसे वही ऊर्जा: शक्ति वही है: सिर्फ आयाम. दिशा बदल जाती है। । काम की शक्ति, सेक्स एनर्जी बाहर की तरफ बहती है, नीचे की
नीचे की ओर गिरती हो वही शक्ति, तो वासना हो जाती है; तरफ बहती है, दूसरे शरीरों की तरफ बहती है-यह बहाव का ऊपर की ओर उठती हो वही शक्ति, तो आत्मा हो जाती है। नीचे | एक ढंग है। की ओर गिरती हो, तो दूसरों को पैदा करती है; ऊपर की ओर उठने और ध्यान रहे, दुनिया में ऐसा कोई भी बहाव नहीं है, जो विपरीत लगे, तो स्वयं को जन्म देती है। नीचे की ओर बहना हो उसे, तो | | न बह सके। अगर मैं चलकर आपके पास आ सकता हूं, तो लौटकर किसी और को आधार बनाना पड़ता है; ऊपर की ओर बहना हो, | आपसे दूर भी जा सकता हूं। ऐसा कोई भी रास्ता नहीं है, जो एक ही तो स्वयं ही आधार होना पड़ता है। नीचे की ओर बहती हो | | तरफ चलता हो। जिस रास्ते से चलकर आप यहां तक आए हैं, उसी काम-ऊर्जा, तो जननेंद्रिय के मार्ग से प्रकृति में लीन हो जाती है; | से चलकर आप अपने घर वापस लौट जाएंगे। कोई ऐसा दरवाजा
और अगर ऊपर की ओर बहने लगे, तो सहस्रार से लीन होकर | | नहीं है, जिससे आप बाहर आते हों और उसी से आप भीतर न जा ब्रह्म में लीन हो जाती है।
सकते हों। हर द्वार, हर मार्ग, हर प्रवाह दो आयामों में होता है, दो काम-ऊर्जा दो स्थानों से विलीन होती है। या तो जननेंद्रिय से, जो | | दिशाओं में होता है। आप पीछे लौट सकते हैं। कि पहला चक्र है; और या सहस्रार से, जो अंतिम चक्र है। ये दो कामवासना का हम एक ही द्वार जानते हैं और एक ही रूप, छोर हैं आपके व्यक्तित्व के। काम-केंद्र से आप प्रकृति से जुड़े हैं| दूसरे की तरफ प्रवाहित होने वाला। और ध्यान रहे, जब भी कोई और सहस्रार से आप परमात्मा से जुड़े हैं। लेकिन शक्ति एक ही है। दूसरे की तरफ प्रवाहित होता है, तो परतंत्र हो जाता है। इसलिए
लेकिन हमारी हालत ऐसी है कि जिस आदमी को आग का एक | कामवासना गहरे में हमारे लिए एक परतंत्रता है। इसलिए जो लोग ही परिचय हो, घर जल जाने का, वह सोच भी नहीं सकता कि आग | भी स्वतंत्र होना चाहते हैं, मुक्त होना चाहते हैं, उनका संघर्ष रोटी भी पकाती है; और वह सोच भी नहीं सकता कि रात के अंधेरे कामवासना से शुरू हो जाता है। में आग प्रकाश भी देती है; और वह सोच भी नहीं सकता कि ठंड इस दुनिया में गहरी से गहरी गुलामी सेक्स की गुलामी है। दूसरे से मरते हुए आदमी के लिए आग जीवन भी हो जाती है। जिसका | | आदमी पर निर्भर होना पड़ता है। दूसरा अपने से भी ज्यादा एक ही अनुभव हो कि उसने आग से मकान को जलते और बरबाद | | महत्वपूर्ण हो जाता है। दूसरे के इर्द-गिर्द चक्कर काटना पड़ता है,
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