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________________ गीता दर्शन भाग-5 आयुधानामहं वज्रं घेनूनामस्मि कामधुक् । प्रजनश्चास्मि कन्दर्पः सर्पाणामस्मि वासुकिः ।। २८ ।। अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम् । पितॄणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम् ।। २९ । । प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां कालः कलयतामहम् । मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम् ।। ३० ।। और हे अर्जुन, मैं शस्त्रों में वज्र और गौओं में कामधेनु हूं और संतान की उत्पत्ति का हेतु कामदेव हूं, सर्पों में सर्पराज वासुकि हूं। तथा मैं नागों में शेषनाग और जलचरों में उनका अधिपति वरुण देवता हूं और पितरों में अर्यमा नामक पित्रेश्वर तथा शासन करने वालों में यमराज मैं हूं। और हे अर्जुन, मैं दैत्यों में प्रह्लाद और गिनती करने वालों में समय हूं तथा पशुओं में मृगराज सिंह और पक्षियों में गरुड़ मैं ही हूं। औ रहे अर्जुन, शस्त्रों में वज्र, गौओं में कामधेनु, और जीवन की उत्पत्ति का हेतु कामदेव मैं हूं। परसों रात्रि शिव पर बोलते हुए मैंने आपसे कहा था कि मृत्यु के वे प्रतीक हैं, विनाश की शक्ति वे हैं। साथ ही प्रेम और काम भी उनके जीवन में उतना ही गहरा है। एक मित्र को चोट लगी होगी इस बात से, तो उन्होंने मुझे पत्र लिखा है कि यह आपने ठीक नहीं किया। हमारे पूज्य देव को, महादेव को आपने काम और प्रेम से संयुक्त किया। कल उनका पत्र मिला था, मैं कल चुप रह गया, क्योंकि आज यह सूत्र आने को था । उन्होंने यह भी लिखा है कि शंकर ने तो, शिव ने तो कामदेव को भस्म कर दिया था । कैसे आप उनमें काम की बात कहते हैं? तो पहले उन्हें थोड़ा-सा उत्तर दे दूं और फिर इस सूत्र समझाने में लगूं। काम को भी भस्म तभी किया जा सकता है, जब काम हो; नहीं तो काम को भस्म नहीं किया जा सकता। भस्म भी हम उसे ही कर सकते हैं, जो मौजूद हो। और मजे की बात तो यह है कि काम को केवल वही भस्म कर सकता है, जिसमें काम इतना प्रगाढ़ हो कि अग्नि बन जाए। छोटे-मोटे काम की वासना वाला आदमी काम को भस्म नहीं कर पाता। काम की भी लपट चाहिए। और यह दृष्टि, कि काम के होने से कोई देवता अपमानित हो जाता है, अपनी ही नासमझी पर निर्भर है। क्योंकि कृष्ण इस सूत्र में कहते हैं कि जीवन की उत्पत्ति का कारण कामदेव मैं हूं। उन मित्र | को बड़ी तकलीफ होगी। तब तो शिव ने जिसको भस्म किया होगा, कृष्ण हैं! और उनको तो भारी पीड़ा होगी कि कृष्ण अपने ही मुंह से कहते हैं कि मैं कामदेव हूं। वे लेकिन सत्यों को समझना हो, तो पीड़ाओं की तैयारी चाहिए। और जो सत्य को समझने की हिम्मत न रखते हों, उन्हें उस तरफ | आंख ही बंद कर लेनी चाहिए। उस तरफ प्रयास ही नहीं करना |चाहिए | में कुछ मौलिक बातें आपसे कहूं, तब यह सूत्र आपकी समझ आ सके। यह सूत्र कठिन मालूम पड़ेगा। इसलिए नहीं कि कठिन | है, इसलिए कि हमारी बुद्धि न मालूम कितनी व्यर्थ की धारणाओं | से भरी है। और न मालूम कितनी निंदाएं और न मालूम कितने विक्षिप्त खयाल हमारे मन को घेरे हुए हैं। जीवन की समस्त उत्पत्ति काम से ही है। जगत की सृष्टि भी काम से ही है। सृजन का सूत्र ही काम है। अगर ब्रह्मा ने भी जगत को | उत्पन्न किया, तो शास्त्र कहते हैं, कामना पैदा हुई। काम का जन्म हुआ ब्रह्मा में, तो ही उत्पन्न होगा कुछ इस जगत में जब भी कुछ पैदा होता है, तो पैदा होने का सूत्र ही काम है। . और ऐसा है कि बच्चे ही जब पैदा होते हैं, तभी काम की शक्ति काम आती है। नहीं, कुछ और भी पैदा होता है— एक | कविता पैदा होती है, एक चित्र पैदा होता है, एक मूर्ति निर्मित होती | है – जहां भी कोई व्यक्ति कुछ सृजन करता है, तो उसके भीतर जो ऊर्जा, जो शक्ति काम में आती है, वह काम ही है। उत्पत्ति मात्र काम है। सृजन मात्र काम है। इसलिए जो लोग इस सत्य बिना समझे काम से शत्रुता में लग जाएंगे, उनका जीवन निष्क्रिय, और उनका जीवन सृजनहीन, और उनका जीवन एक लंबी मृत्यु हो जाएगी। काम से ही सब उत्पन्न होता है। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि काम में ही सब समाप्त हो जाता है। काम के पार जाया जा सकता है। लेकिन वह पार जाना भी काम | के ही मार्ग से होता है; वह सृजन भी कामवासना के ही मार्ग से होता है। 160 कामवासना क्या है और यह कामदेव की धारणा क्या है ? शायद पूरी पृथ्वी पर हिंदू धर्म अकेला धर्म है, जिसने काम को
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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