SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॐ गीता दर्शन भाग-500 आपने अपना तादात्म्य वही बना लिया और आपको खयाल में न कि कृष्ण कहें कि मैं मुनियों में कपिल मुनि हूं। कृष्ण भी गहरे में रहा कि आप कौन हैं। यह सिर्फ एक विस्मरण है। | तो यही मानते हैं और जानते हैं कि आदमी केवल भूल गया है, मात्र विवेकानंद कहते थे-पुरानी कथा है ईसप की, पंचतंत्र में भी भूलने की दुर्घटना हुई है। है कि एक सिंहनी छलांग लगाती थी एक पहाड़ी टीले से दूसरे लेकिन ऐसे बहुत कम लोग हैं, जो पुनर्मरण कर सकें। यह भी टीले पर। वह गर्भिणी थी, और बीच छलांग में उसको बच्चा हो | तो हो सकता है कि जब उस दूसरे सिंह को यह खयाल आया कि गया। नीचे भेड़ों का एक झुंड गुजरता था, वह बच्चा उस भेड़ों के | एक सिंह भेड़ बना जा रहा है, तो वह इस सिंह को पकड़ भी झुंड में गिर गया। भेड़ों ने उसे बड़ा कर लिया। वह बच्चा बड़ा हो | ले—इस कथा में तो यह बात नहीं है—वह सिंह जाने से इनकार गया। | ही कर दे नदी तक। संभावना यही होनी चाहिए। कहानी वाले ने वह बच्चा था तो शेर का, लेकिन उस बच्चे को यही पता था कि | खयाल नहीं किया; ईसप ने या पंचतंत्र ने खयाल नहीं किया। मैं भेड़ हूं। भेड़ों के बीच बड़ा हुआ था, भेड़ों ने बड़ा किया था। | संभावना तो यह होनी चाहिए कि वहीं बैठ जाए और इनकार कर दे कोई कारण भी नहीं था उसको पता चलने का कि वह सिंह है या | जाने से। या चला भी जाए, तो आंख बंद कर ले घबड़ाहट से। पानी शेर है या कुछ और है। लेकिन वह बड़ा होने लगा। भेड़ों से ऊपर में देखे ही नहीं। तब फिर कुछ करना पड़े तब इसको नदी तक निकल गया। फिर भी उसकी मान्यता तो भेड़ों की ही रही। भेड़ें यही | घसीटना भी पड़े; तब शायद जबर्दस्ती इसकी आंखें भी खोलना सोचती थीं कि कुछ शरीर इसका थोड़ा लंबा हो गया। वह भी यही पड़ें। तब ज्ञान काफी न हो, कुछ करना भी जरूरी हो जाए। सोचता था। भेड़ों जैसा ही चलता था, भेड़ों के झंड में ही | सौ में से निन्यानबे लोगों के लिए सांख्य का रास्ता.सही मालूम घसर-पसर होता था। भेड़ें जहां मुड़ जाती, भेड़ों का नेता, वहीं वह | हो, तो भी चलने योग्य मालूम नहीं हो सकता। निन्यानबे प्रतिशत भी मुड़ जाता था। भेड़ों जैसी ही आवाज करता था। लोगों को तो कुछ करना ही पड़ेगा। उस करने से ज्ञान नहीं होता, एक दिन मुसीबत में पड़ा। भेड़ों के इस झुंड पर एक दूसरे सिंह | लेकिन उस करने से आदमी नदी के किनारे तक पहुंच जाता है। उस ने हमला किया। भेड़ें भागीं। वह दूसरा सिंह यह देखकर बड़ी | करने से स्मरण नहीं आता, लेकिन उस करने से आंख खुल जाती मुश्किल में पड़ा कि भेड़ों के बीच में एक सिंह भी भाग रहा है। न | है और स्मरण की संभावना प्रबल हो जाती है। जो चाहे, वह तो तो भेड़ें उससे भयभीत हैं, न उस सिंह को ऐसा लगता है कि भेड़ों इसी वक्त भी स्मरण कर ले। के साथ भाग रहा है! वह दूसरा सिंह बड़ी मुश्किल में पड़ गया। सुना है मैंने, झेन फकीर हुआ, रिझाई। जब वह अपने गुरु के उसने पीछा किया। बामुश्किल वह इसको पकड़ पाया। भेड़ बन | पास गया, तो उसके गुरु ने उससे पूछा कि तू कुछ होने में उत्सुक गए सिंह को बामुश्किल पकड़ पाया। पकड़ा, तो वह जैसे भेड़ें है या कुछ करने में? अगर तू कुछ करने में उत्सुक है, तो मैं तुझे मिमियाने लगें, वैसा मिमियाने लगा। उस दूसरे सिंह ने कहा कि तू | कुछ क्रियाएं बताऊं। तू दस-पांच साल क्रियाएं कर। और अगर तू यह कर क्या रहा है? वह दूसरा सिंह उसे पकड़कर नदी के किनारे | होने में उत्सुक है, तो इसी वक्त भी हो सकता है। ले गया और उसने कहा कि जरा अपने चेहरे को पानी में झांक और । रिझाई ने कहा कि जब इसी वक्त हो सकता है. तो फिर इसी वक्त मेरे चेहरे को भी साथ में पानी में देख! उस भेड़ बन गएं सिंह ने | | हो जाने की कोई व्यवस्था मुझे दें। कैसे मैं इसी वक्त हो जाऊं? पानी में झांककर दोनों चेहरे देखे और उसके भीतर से सिंह की | | तो उसके गुरु ने कहा, जो कैसे पूछता है, वह क्रिया के लिए पूछ गर्जना निकल गई। वह सिंह हो गया। रहा है। तुझे दस-पांच साल क्रिया करनी पड़ेगी। जो पूछता है सांख्य कहता है, आदमी ऐसे ही भ्रम में है। कुछ अशुद्ध नहीं | | कैसे? इसका मतलब है क्रिया। क्या करूं? उसके गुरु ने कहा, तू हो गया है, सिर्फ पहचान खो गई। तो उस पहले सिंह को, भेड़ बन | | हो सकता हो परमात्मा, इसी वक्त हो जा। और कुछ करने की गए सिंह को शुद्ध नहीं होना पड़ा। न काट-पीट करनी पड़ी; न कोई | जरूरत नहीं है। उसने कहा कि मैं कैसे हो जाऊं? आप कहते हैं, आसन, न कोई ध्यान, कुछ भी नहीं करना पड़ा। सिर्फ इतना बोध, इससे मैं कैसे हो जाऊं! स्मरण, रिमेंबरिंग कि मैं कौन हूं। सारा काम हो गया। तो उसके गुरु ने उसे क्रियाएं दीं, साधनाएं दीं। दस साल तक कपिल सांख्य की दृष्टि के आधार हैं। यह बहुत मजे की बात है। उसने निरंतर साधना की। और दस साल के बाद जब वह गुरु के | 154
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy