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________________ आभिजात्य का फूल सामने आया, तो उसने कहा कि अभी और करना है कि होना है? और ध्यान रहे, जो आपके करने से मिलेगा, वह आपसे छोटा उसने कहा, अब काफी हो गया दस साल। मैं करने से थक भी | होगा। आप करके पाएंगे, वह आपसे बड़ा नहीं हो सकता। गया। और करने से कुछ होता भी नहीं। तो उसके गुरु ने कहा, | | इसलिए परमात्मा करने से नहीं मिल सकता। क्योंकि अगर करने अगर तुझे यह समझ में आ गया हो कि करने से कुछ भी नहीं होता, | से मिलता हो, तो वह भी एक कमोडिटी, तो वह भी एक चीज, तो त अभी इसी वक्त हो सकता है। लेकिन कैसे मत पछना। वस्तु होगी, जो आपने कर ली। तिजोड़ी में जैसे और चीजें रख दी और कथा यह कहती है कि जैसे ही गुरु ने हाथ ऊपर उठाया | हैं लाकर, वैसे ही एक दिन परमात्मा को भी लाकर रख दिए! वह और कहा कि इसी वक्त हो सकता है, कैसे मत पूछना! रिझाई ज्ञान | | आपकी मुट्ठी की चीज होगी, अगर आपके करने से मिल जाए। को उपलब्ध हो गया। क्षुद्र हो जाएगी। रिझाई से बाद में लोग पूछते थे कि तुमने क्या किया उस क्षण | | एक बात तय है कि आप जो भी करेंगे, वह आपसे बड़ा नहीं हो में, जब गुरु ने अंगुली ऊपर उठाई! उसने कहा, किया कुछ भी सकता। आप जो भी करके पाएंगे, वह आपसे छोटा होगा। अगर नहीं। लेकिन दस साल कर-करके थक गया। परेशान हो गया। | आपको अपने से बड़े को पाना है, तो करने से मिलने वाला नहीं करना भी व्यर्थ है; सिर्फ स्मरण ही सार्थक है। उस क्षण में सारा | है, खोने से मिलेगा। अपने को खोने से मिलेगा। अपने को छोड़ने करना मुझसे गिर गया, और मुझे याद आया कि मैं ईश्वर हं। होने से मिलेगा। कर्ता का भाव ही छोड़ देना पड़ेगा, कर्म भी छोड़ देना का क्या सवाल है! करने का क्या सवाल है! यह स्मरण आते ही | पड़ेगा। चुप बैठकर; शांत बैठकर। सारे जीवन की धारा बदल गई। अंधेरे की जगह प्रकाश हो गया। ___एक ही है तीर्थयात्रा। जब कोई सब यात्राएं बंद कर देता शरीर की जगह आत्मा हो गई। सीमाओं की जगह असीम हो गया। | है-शरीर की भी और मन की भी—तब तीर्थयात्रा शुरू हो जाती लेकिन यह घटना मुश्किल से घटती है कभी; कभी लाख में | है। एक ही है मार्ग उस तक पहुंचने का कि जब कोई सब मार्ग छोड़ एकाध आदमी को, कि कोई सुनकर हो जाता है। नहीं तो करने से | | देता है, और अपने ही भीतर ठहर जाता है। एक ही है दिशा उसकी, गुजरना पड़ता है। वह करने से गुजरना जो है, उससे ज्ञान उत्पन्न | | जब कोई सारी दस दिशाओं को छोड़ देता है, और ग्यारहवीं दिशा नहीं होता। लेकिन हम उस जगह पहुंच जाते हैं, जहां ज्ञान सहज | | में भीतर ठहर जाता है, कोई यात्रा नहीं करता। यह है सांख्य। और फलित हो सकता है। दो ही जगत की निष्ठाएं हैं, योग और सांख्य। लेकिन कृष्णं ने ध्यान रखा है। उन्होंने कहा कि मैं कपिल मुनि कृष्ण कहते हैं, मैं सांख्य हूं, मैं कपिल हूं। समस्त मुनियों में, हूं। आत्यंतिक सत्य तो यही है, परम सत्य तो यही है, परम दृष्टि | | सिद्धों में, मैं कपिल हूं। तो यही है कि आपको कुछ भी करना नहीं है। सिद्ध कहते हैं उन्हें, जिन्होंने पा लिया। पाने वाले दो तरह के लेकिन हमारी भी मुसीबत है। हम इस जगत में जो भी पाते हैं, लोग हैं, जिन्होंने कुछ कर-करके पाया, और जिन्होंने बिना किए करके ही पाते हैं। धन पाना हो, तो कुछ करके पाते हैं। यश पाना | पाया। कृष्ण कहते हैं, मैं वही हूं, जिन्होंने बिना किए पाया। करके हो, तो कुछ करके पाते हैं। बिना किए न तो यश मिलता है, न बिना पाया, तो उसका अर्थ है कि बड़ा गहन अंधकार रहा होगा। बड़ा किए धन मिलता है। विद्या-बद्धि, कुछ भी पाते हों, करके पाते हैं। गहन अंधकार रहा होगा। बड़ा गहन अहंकार रहा होगा, इसलिए ___ इस जगत में जो भी मिलता है, उसके लिए चलना पड़ता है, | | कर-करके। करना पड़ता है। इसलिए हमारी पूरी की पूरी समझ करने से बंध | बुद्ध के जीवन से एक घटना आपको कहूं, तो खयाल में आ जाती है। हम यह सोच ही नहीं सकते कि कोई ऐसी चीज भी हो | | जाए कि क्या है मतलब! बुद्ध ने महल छोड़ा, राज्य छोड़ा, छः वर्ष सकती है, जो न करें और मिल जाए। कुछ न करें, शांत बैठ जाएं, | तक कठोर तपश्चर्या की। जो भी किया जा सकता था, वह सब और मिल जाए। कुछ न करें, मौन हो जाएं, और मिल जाए। | किया। लेकिन हर करने के बाद पाया कि उपलब्धि नहीं हुई। जिस लेकिन ऐसी भी एक चीज है और उसी चीज का नाम धर्म गुरु के पास गए, उसी गुरु को मुसीबत में डाल दिया, क्योंकि गुरु है-आत्मा कहें, भगवत्ता कहें, जो नाम देना चाहें। एक सत्य ऐसा ने जो-जो कहा...। भी है, जो आपके करने से नहीं मिलता। गुरुओं को एक सुविधा रहती है उन लोगों की वजह से, जो 155
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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