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________________ आभिजात्य का फूल तो भी। बचपन से गांधी के मन पर जो प्रभाव था, वह जैन का था, फैला हुआ व्यक्तित्व है, इसको हमने पूर्ण कहा। राम तक को हम जैन साधु का, खासकर राजचंद्र का प्रभाव था। गांधी ने अपने तीन अपूर्ण ही कहेंगे, आंशिक कहेंगे। राम गंभीर हैं, अति गंभीर हैं। गुरुओं में राजचंद्र को गिनाया है। राजचंद्र को, रस्किन को, कृष्ण का यह जो गैर-गंभीर, लीलामयी व्यक्तित्व है. उसके ही टाल्सटाय को, तीनों जैनी हैं। दो तो ईसाई हैं, लेकिन उनकी भी | | प्रतीक के लिए उन्होंने देवर्षियों में नारद को चुना। बुद्धि बिलकुल जैन है। यह प्रभाव था, और फिर गीता पर प्रेम था| ___ गंधों में चित्ररथ, सिद्धों में कपिल मुनि हूं। हिंदू का। कपिल के संबंध में थोड़ी-सी बातें खयाल में ले लेनी जरूरी हैं। इसलिए मामला ऐसा हो गया कि इन दोनों के बीच सारी दुविधा कृष्ण को समझना आसान होगा। खड़ी हो गई और असंगति मालूम पड़ती रही। इसलिए फिर उन्होंने | __जगत में दो निष्ठाएं हैं। एक निष्ठा का नाम है योग, और एक एक रास्ता निकाल लिया कि यह प्रतीक युद्ध है। युद्ध कभी हुआ | | निष्ठा का नाम है सांख्य। यह बड़ा हैरानी का मालूम होगा, क्योंकि नहीं। और कृष्ण कैसे हिंसा की बात कर सकते हैं! यह तो बुराई | कृष्ण को हम योगेश्वर कहते हैं। यह फिर असंगत बात है। कृष्ण को मारने की बात है। | ने जो कपिल को चुना, कपिल का योग से कोई संबंध नहीं है। लेकिन यह बात ठीक नहीं है। यह गांधीजी की अपनी व्याख्या कपिल योग-विरोधी हैं। है, खुद की दुविधा को हल कर लेने की। दो निष्ठाएं हैं। एक है योग। योग का मानना है कि सत्य को, कृष्ण के साथ यह कठिनाई सदा रही है। कृष्ण ने वायदा किया परमात्मा को पाना हो, तो कुछ करना पड़ेगा। कोई अभ्यास, कोई था कि मैं शस्त्र नहीं उठाऊंगा युद्ध में, और फिर शस्त्र उठा लिया। साधन, कोई साधना, कोई प्रक्रिया, कुछ क्रिया से गुजरना पड़ेगा। वचन भंग हो गया! कृष्ण जैसे आदमी से हम वचनभंग की आशा . बिना क्रिया से गुजरे हुए उस परमात्मा तक नहीं पहुंचा जा सकता। नहीं करते। जब कहां था कि शस्त्र नहीं उठाएंगे, तो नहीं उठाना था। | क्योंकि आदमी है अशुद्ध, तो किसी आग से गुजरकर उसे शुद्ध फिर शस्त्र उठा लिया! इनकंसिस्टेंसी मालूम पड़ती है। असंगत है होना पड़ेगा। माना कि छिपा है उसमें वह सत्य, लेकिन वह सत्य यह आदमी! ऐसे ही है जैसे कि सोना मिट्टी से मिला हुआ पड़ा हो। उस मिट्टी लेकिन हमारे सोचने का ढंग गंभीर है, इसलिए मालूम पड़ती को छानकर अलग करना पड़ेगा। जलाना पड़ेगा, सोने को आग में है। कृष्ण के सोचने का ढंग गैर-गंभीर है। यह खेल की बात है। | तपाना पड़ेगा, ताकि कचरा जल जाए और शुद्ध स्वर्ण निखर आए। इसमें बहुत गंभीर कृष्ण नहीं हैं। इसमें गंभीर होने का उन्हें कोई | | कुछ करना पड़ेगा। योग का मानना है, बिना कुछ किए कुछ भी प्रयोजन नहीं है। नहीं हो सकता। सुना है मैंने, मुल्ला नसरुद्दीन पर एक अदालत में मुकदमा चला __ सांख्य का मानना इसके बिलकुल विपरीत है। सांख्य का मानना और मजिस्ट्रेट ने पूछा कि तुम्हारी उम्र कितनी है? उसने कहा, | है कि कुछ करने का सवाल ही नहीं है, मात्र जानना काफी है। सिर्फ चालीस साल। उस मजिस्ट्रेट ने कहा, लेकिन जहां तक मेरा खयाल जानना काफी है, करने का कोई सवाल नहीं है। यह कोई सोना नहीं है, पांच साल पहले भी तुम पर मुकदमा चला था, और तब भी है, जो अशुद्ध हो गया है। आदमी परमात्मा है, सिर्फ विस्मृत हो तुमने कहा था चालीस साल! तो नसरुद्दीन ने कहा कि मैं अपने गया स्वयं को। इसे कुछ शुद्ध नहीं होना है। आदमी शुद्ध परमात्मा वचन पर दृढ़ रहना जानता हूं। मैं कोई ऐसा आदमी नहीं हूं कि ऐसे ही है। कोई अशुद्धि उसमें नहीं हो गई। और सांख्य का कहना है, बदल जाऊं। जो एक दफा कह दिया, कह दिया! | अगर परमात्मा भी अशुद्ध हो सके, तो फिर इस दुनिया में शुद्धि का यह एक संगति है! कृष्ण में ऐसी संगति न खोजी जा सकेगी। कोई उपाय नहीं है। परमात्मा का तो अर्थ ही है कि जो अशुद्ध हो कृष्ण पल-पल असंगत हैं। अगर एक ही कोई संगति है उनमें, तो ही न सके। सिर्फ विस्मरण है यह, अशुद्धि नहीं है। वह यह है कि वह सब असंगतियों के बीच भी एक तालमेल है। इस फर्क को ठीक से समझ लें। यह विस्मरण है। आप एक नशे अपनी असंगतियों में वे बिलकुल संगत हैं। और किसी चीज में में हैं और भूल गए हैं कि आप कौन हैं। या आप नींद में हैं और संगत नहीं हैं। | कोई ने आपको चौंकाकर उठा दिया और आपको याद न आया कि यह जो विराट, यह जो बहुमुखी, बहुआयामी, बहुत दिशाओं में आप कौन हैं। या आप अपने को कुछ और समझ बैठे हैं और 153|
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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