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3 गीता दर्शन भाग-500
में उतरने की जरूरत नहीं रहती। फिर वह दोनों पागलपन छोड़ | स्वीकार-कृष्ण जैसा आदमी होना तो कठिन है-कृष्ण को उनका सकता है, या दोनों पागलपन के बीच हंसते हुए गुजर सकता है।। | पूरा का पूरा स्वीकार करने में भी हमारी हिम्मत नहीं होती।
नारद इस जिंदगी को एक खेल समझते हैं; एक मंच से ज्यादा ___ अगर हम सूरदास से पूछे, तो वे कृष्ण के बालपन को ही नहीं। उसका कोई आत्यंतिक मूल्य नहीं है, कोई अंतिम मूल्य नहीं | स्वीकार करते हैं। बाद की अवस्था में सूरदास जरा पीछे हट जाते है। इसलिए नारद के लिए अभिनय है सब कुछ। कृष्ण के लिए भी | हैं, झिझक जाते हैं। क्योंकि अगर बच्चा है और स्त्रियों से छेड़खानी वही बात है। कृष्ण के लिए भी जीवन एक अभिनय है। कृष्ण के कर रहा है, तो हम बर्दाश्त कर सकते हैं; समझ में आ जाता है; लिए भी जीवन कोई गंभीर बात नहीं है।
छोड़ा जा सकता है। लेकिन जवान! तो सूरदास को भी चिंता होती इसीलिए हमने इस मुल्क में कृष्ण को पूर्णावतार कहा। राम को | है कि यह बात तो थोड़ी आगे हो जाएगी! हम पूर्णावतार नहीं कह सके। कारण है। राम थोड़े गंभीर हैं। मर्यादा केशव ने हिम्मत की है कृष्ण के युवा व्यक्तित्व को पकड़ने की, है, तो गंभीरता होगी। गैर-गंभीर आदमी में मर्यादा नहीं हो सकती। | लेकिन लोग केशव को गाली देते हैं। और कृष्ण के भक्त कहते हैं, गैर-गंभीर आदमी मर्यादा-तोड़क होगा। इसलिए राम को हमने केशव ने सब खराब कर डाला। लोग तो यह कहते हैं कि केशव ने अवतार कहा, लेकिन पूर्ण अवतार हम न कह सके। इसलिए हिंदू अपने ही विचारों को कृष्ण में डाल दिया। यह बात सच नहीं है। यह चिंतन की समझ बड़ी गहरी है। हमने अवतार कहा, हमने श्रेष्ठतम बात सच नहीं है। केशव ने तो कृष्ण के उस युवा व्यक्तित्व को उभारा जगह पर राम को रखा। लेकिन फिर भी हमने कहा, वह अंश ही | है, जो सूर से बच गया। लेकिन केशव की भी तकलीफ वही है। वे अवतार हैं।
भी एक ही हिस्से को, उनके युवा प्रेम की कथा को, उनके रास को पूर्ण अवतार तो हम कृष्ण को ही कह सके, क्योंकि कोई मर्यादा | | ही उभार पाते हैं, बाकी हिस्से उनको भी मुश्किल हो जाते हैं। नहीं है। कृष्ण से ज्यादा मर्यादा-मुक्त व्यक्तित्व पृथ्वी पर हुआ ही | ___ गांधी को कृष्ण से बहुत प्रेम था, गीता से बहुत प्रेम था। लेकिन नहीं। और अब शायद कभी हो भी न सके। क्योंकि उतना | | एक बड़ी अड़चन थी उनको, कि उसमें हिंसा का मामला है। और मर्यादा-मुक्त व्यक्ति पैदा हो, इसके लिए एक बड़ा मर्यादा-मुक्त | | उससे वे कभी संगति नहीं बिठा पाए। वे कहते थे कि गीता मेरी समाज चाहिए। नहीं तो आप पहचान ही नहीं सकेंगे। माता है, लेकिन वे कभी संगति नहीं बिठा पाए; वह सौतेली माता
आप भला कहते हों कि हम कृष्ण के भक्त हैं। अभी चौपाटी ही रही। संगति नहीं बिठा पाए इसलिए कि इस हिंसा का क्या पर खड़े होकर बांसुरी वगैरह बजाने लगे और दो चार सखियां होगा? गांधी की अहिंसा से इसका मेल कहां है? तो एक ही नाचने लगें, आप पुलिस में खबर कर दोगे, कि यह आदमी भ्रष्ट तरकीब थी—उसको मैं तरकीब कहता हूं तो गांधी कहते थे, यह किए दे रहा है! यह तो सारा आचरण समाप्त हो जाएगा। और यह सिर्फ प्रतीक है युद्ध। यह वास्तविक युद्ध नहीं है। बुराई और भलाई तो नीति-नियम का क्या होगा? फासला लंबा है अब, इसलिए के बीच प्रतीक है। इस भांति वे अपने को समझा लेते थे कि कृष्ण आपको अड़चन नहीं होती।
हिंसा को कोई सहारा नहीं दे रहे हैं। लेकिन जिन लोगों के बीच कृष्ण पैदा हुए थे, वे लोग भी बहुत | लेकिन यह बात ठीक सच नहीं है। यह महाभारत प्रतीक नहीं अदभुत रहे होंगे। इस आदमी में भी वे कुछ देख सके। इस है। यह महाभारत वास्तविक युद्ध है। इस वास्तविक युद्ध में हिंसा मर्यादा-मुक्त, मर्यादा-शून्य व्यक्तित्व में भी उन्हें कोई झलक मिल | हुई है। उसी हिंसा से कृष्ण भागते हुए अर्जुन को रोक रहे हैं। उसी सकी। वे लोग भी साधारण न रहे होंगे।
| हिंसा से डरकर अर्जुन भाग रहा है। अर्जुन को अगर रास्ते में कहीं कृष्ण को हमने कहा पूर्ण अवतार, इसलिए कि जीवन को उसकी | | गांधीजी मिल जाते, तो सारी कथा दूसरी होती। कृष्ण मिल गए, समग्रता में उन्होंने किया है स्वीकार–समग्रता में। किसी चीज का | इसलिए सारा का सारा मामला दूसरा हुआ। पूरा इतिहास और कोई अस्वीकार नहीं है। जिसको हम आमतौर से बुरा कहें, कृष्ण हुआ। गांधीजी कभी भी नहीं स्वीकार कर पाए मन में कि यह युद्ध के लिए उसका भी कोई अस्वीकार नहीं है।
और हिंसा का क्या हो। इसलिए जो लोग कृष्ण के जीवन में कंसिस्टेंसी खोजते हैं, संगति | । गांधीजी की तकलीफ कठिन थी। नब्बे परसेंट वे जैन थे और खोजते हैं, वे बड़ी मुश्किल में पड़ते हैं। और इसलिए कृष्ण को पूरा दस परसेंट हिंदू थे। गुजरात ऐसे भी नब्बे परसेंट जैन है, हिंदू हो
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