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________________ ॐ गीता दर्शन भाग- 58 हुआ कि अभी जीवन के आधे हिस्से से ही उसने अपने को एक माना | ईसाइयों ने तो मान रखा है कि जीसस कभी हंसे ही नहीं। कभी है, शेष आधे हिस्से से नहीं। जीवन की समग्रता से उसका संबंध | | नहीं हंसे। मैं तो नहीं मान सकता कि यह बात सच होगी, लेकिन नहीं है। जीवन के अधूरे हिस्से से उसका संबंध है। जो ठीक है, | ईसाइयत ऐसा मानती है कि जीसस कभी हंसे नहीं। क्योंकि हंसना उससे उसका संबंध है; जो साफ-सुथरा है, उससे उसका संबंध है; | तो प्रोफेन, बहुत अपवित्र मालूम होता है। जीसस जैसा आदमी जो उपयोगी है, उससे उसका संबंध है। लेकिन जो गैर-उपयोगी है, | हंसे! नहीं। जो मात्र खेल है, जो मात्र मनोरंजन है, उससे उसका संबंध नहीं है। तो ईसाइयों ने जीसस का जैसा चेहरा बनाया, उदास, जैसे सारी हम सोच भी नहीं सकते कि ऋषि झूठ बोल सके, लेकिन नारद | दुनिया का बोझ उनके ऊपर है। और ईसाई मानते भी हैं कि सारी बोल सकते हैं। हम सोच भी नहीं सकते कि ऋषि किसी को उलझाए, | दुनिया का पाप उन्होंने अपने ऊपर ले लिया, तो निश्चित ही भारी लेकिन नारद उलझा सकते हैं। हम सोच भी नहीं सकते कि ऋषि को | | बोझ हो जाएगा! एक आदमी का पाप ही एक आदमी के ऊपर इसमें कुछ रस आए, उलझाने में, लेकिन नारद को रस है। तो जो | । काफी बोझ है। और जीसस सारी दुनिया का पाप अपने ऊपर ले गंभीर हैं, वे तो नारद को ऋषि तक मानने को राजी न होंगे। | लिए हैं! और जीसस के द्वारा सारे जगत की मुक्ति का उपाय हो ___ मैं मुल्ला नसरुद्दीन की आपको न मालूम कितनी बार कहानियां रहा है! तो भारी उपक्रम है, भारी बोझ है। कहता हूं। मुल्ला नसरुद्दीन सूफियों के लिए एक बड़े से बड़ा | लेकिन मैं मानता हूं कि जीसस को समझा नहीं जा सका। जीसस मिस्टिक है, बड़े से बड़ा रहस्यवादी है। अधिक लोग तो समझते | को समझना मुश्किल पड़ा है। खुद जीसस के व्यक्तित्व को हम हैं, वह एक मूढ़ है। कोई समझता है, वह एक जोकर है, एक लोगों | ठीक से देखें, तो हमें पता चलेगा कि यह बात ठीक नहीं मालूम को हंसाने वाला व्यक्ति है। लेकिन सूफी मानते हैं कि मुल्ला | पड़ती है। जीसस जरूर हंसते रहे होंगे। क्योंकि जीसस अच्छे खाने नसरुद्दीन एक गहरे से गहरा रहस्यवादी संत है। और वह है। से भी प्रेम करते थे, सुंदर स्त्रियों को भी पसंद करते थे, भोजन में लेकिन जीवन को गंभीरता से लेना उसका ढंग नहीं है। और | शराब भी थोड़ी ले लेने में उन्हें कोई हर्ज न था। ऐसा आदमी न हंसा बहुत बार आपके ऊपर भी मजाक करना हो, तो वह अपने ऊपर | हो, यह माना नहीं जा सकता। लेकिन इनके आस-पास जरूर कुछ मजाक करवाता है। और बहुत बार आपकी कोई कमजोरी प्रकट गंभीर लोग इकट्ठे हो गए होंगे। करनी हो, तो वह अपनी ही कमजोरी के द्वारा उसको जाहिर करता एक मजे की बात है कि दुनिया में कुछ गंभीर लोग है। बहुत बार आप पर न हंसकर, वह खुद अपने को इस हालत में | पैथालाजिकली बीमार हैं। और ऐसे लोग धर्म की तरफ बड़ी जल्दी रख देता है कि आप उस पर हंसें। वह पूरी मनुष्य-जाति को एक | आकर्षित होते हैं। उसका कारण है, क्योंकि जिंदगी में उनको कहीं कास्मिक जोक, एक विराट मजाक समझता है। | कोई उपाय नहीं मिलता अपनी उदासी के लिए। तो बीमार तरह के नारद भी उसी तरह का व्यक्तित्व हैं, दूसरे पहलू से। नारद के लोग मंदिरों में, मस्जिदों में और चर्षों में इकट्ठे हो जाते हैं। जिंदगी लिए जगत एक मंच है, एक नाटक है। और कृष्ण का नारद को | | तो हंसती मालूम पड़ती है, वहां उन्हें बिलकुल जिंदगी बेकार मालूम चुनना, कि देवर्षियों में मैं नारद हूं, कुछ बातों की सूचना देता है। | पड़ती है। जहां भी फूल खिलते हैं, वहां वे बिलकुल भाग खड़े होते एक, कि जगत को एक खेल और एक नाटक से जो ज्यादा हैं। जहां कोई हंसता है, प्रसन्न होता है, वहां से वे हट जाते हैं। समझता है, वह आदमी धार्मिक नहीं है। यह बहुत कठिन मालूम तो बीमारों और विक्षिप्तों के समूह कहीं न कहीं तो इकट्ठे होंगे। पड़ेगा। क्योंकि धार्मिक आदमी जगत को बड़ी गंभीरता से लेता और धर्म उनके लिए बहुत सुगम उपाय है। क्योंकि धर्म के नाम पर है, बड़ी गंभीरता से! धार्मिक आदमी जगत के प्रति बड़ा गणित उदास होना, एक रेशनलाइजेशन बन जाता है, एक बुद्धियुक्त बात का हिसाब रखता है, कैलकुलेटिंग होता है। धार्मिक आदमी | बन जाती है। फिर उनकी उदासी को आप बीमारी नहीं कह सकते; मजाक में भी असत्य का उपयोग नहीं कर सकता। और धार्मिक उनकी उदासी तपश्चर्या हो जाती है। और उनके दुख को फिर आप आदमी एक-एक कदम सम्हलकर रखता है कि कहीं कोई | यह नहीं कह सकते कि तुम नाहक दुखी हो। उनका दुख एक भूल-चूक न हो जाए। धार्मिक आदमी हंसता है, तो भी सोचता मेटाफिजिक्स, एक दर्शनशास्त्र बन जाता है। वे दुखी यूं ही नहीं हैं, है, हंसना कि नहीं हंसना! बल्कि वे दुखी लोग इकट्ठे होकर सभी हंसने वालों को पापी कहेंगे। 1150
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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