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आभिजात्य का फूल -
नहीं। सिर्फ पेटेंट था उसका। कभी बाजार में विज्ञापन नहीं हुआ। भी जो ज्ञान उपलब्ध हुआ है, वह ज्ञान सिर्फ प्रयोगशाला से उपलब्ध कभी चिकित्साशास्त्र की किताबों में उसका नाम नहीं आया। कभी हुआ हो, ऐसा नहीं मालूम पड़ता। उसमें बहुत-सा ज्ञान तो किसी डाक्टर ने किसी मरीज को वह दी नहीं। किसी ने दवा बनाई | वनस्पतियों के साथ सीधे संबंध, अंतर्संबंध से उपलब्ध हुआ है। थी। पेटेंट करवाई। और फिर वह कभी बाजार में नहीं आ सकी। क्या कोई रास्ते हैं जिनसे हम वनस्पतियों से भी संबंधित हो वह आदमी मर गया, जिसने दवा बनाई थी। लेकिन उसका फार्मूला सकते हैं? रास्ते हैं। आप अपने भीतर जितने गहरे उतरते हैं, उतने पेटेंट था।
ही आप अस्तित्व में भी गहरे उतरते जाते हैं। आप अगर एक कदम उस नाम का कायसी को पता चलना एक चमत्कार था। कायसी | नीचे उतरें, तो आप पशुओं से संबंधित हो सकते हैं। और एक अमेरिका में था और स्विटजरलैंड में वह पेटेंट हुआ था। वह दवा | | कदम नीचे उतरें, तो आप वनस्पतियों से संबंधित हो सकते हैं। बनाई गई और कायसी उससे ठीक हो गया। तब तो कायसी के हाथ | और एक कदम नीचे उतरें, तो आप खनिज पदार्थों से संबंधित हो में एक सूत्र लग गया। फिर तो उसने अंदाजन एक लाख मरीजों को | सकते हैं। आप जितने अपनी गहराई में उतरते हैं, उतने ही आप ठीक किया। इस सदी की यह सबसे बड़ी चमत्कारपूर्ण घटना थी। अस्तित्व के गहरे तलों से संबंधित हो सकते हैं। जैसे लुकमान वापस आ गया हो।
कृष्ण का यह कहना कि वनस्पतियों में मैं पीपल हं, सिर्फ प्रतीक कायसी किसी भी मरीज को, उसका नाम, पता आप भेज दें। ही नहीं है; बहुत उदबोधक है। वह बेहोशी में, रोज बेहोश होगा, और रोज बेहोशी में वह जवाब | दूसरा प्रतीक कृष्ण कहते हैं, देवर्षियों में मैं नारद मनि। दे देगा, कि यह-यह दवा! कायसी विद्यार्थी नहीं था चिकित्साशास्त्र नारद एक अनूठा चरित्र हैं। शायद विश्व की किसी भी का, दवाओं के नाम भी उसे पता नहीं थे। बीमारियों का उसे कोई | माइथोलाजी में नारद जैसा चरित्र नहीं है। अगर नारद को हम अंदाज नहीं था। लेकिन बेहोशी में वह बोल देता था, यह-यह दवा | समझना चाहें, तो दो-तीन बातें समझें, तो खयाल में आए कि कृष्ण उपयोग आएगी। और वह दवा सदा उपयोग में आती थी। और उस को नारद से अपना संबंध जोड़ने की क्या जरूरत पड़ी होगी! दवा से ऐसे मरीज ठीक हुए, जिनको चिकित्साशास्त्र ने ठीक करने | नारद पहली बात तो गंभीर व्यक्तित्व नहीं है; गैर-गंभीर की सामर्थ्य छोड़ दी थी।
| व्यक्तित्व है। नारद के व्यक्तित्व में गंभीरता बिलकुल नहीं है। कायसी को क्या हो रहा था? रहस्यपर्ण मामला है। कायसी जीवन को एक खेल और नाटक से ज्यादा समझने की वत्ति नहीं है। भीतर चेतना के किस तल पर उतर रहा था? उसका भी कुछ साफ और जीवन को एक मनोरंजन, एक उत्सव, और वह भी बहुत नहीं है। कायसी को खुद भी कोई पता नहीं था। कायसी खुद भी गैर-गंभीर ढंग से। होश में आकर डरता था कि मैं नहीं जानता, कोई ठीक होगा या नहीं तो नारद के साथ कृष्ण का यह कहना कि देवर्षियों में मैं नारद होगा। और यह दवा लेने से फायदा होगा या नुकसान होगा, इसकी हूं, कुछ बातों की सूचना है। एक तो यह सूचना है कि कृष्ण, जो मेरी कोई जिम्मेवारी नहीं है। क्योंकि बेहोशी में मैंने कहा है, उसकी गंभीर ऋषि हैं, उनके साथ अपने को नहीं जोड़ेंगे। नहीं जोड़ने का क्या जिम्मेवारी? यह आप अपनी जिम्मेवारी पर ले सकते हैं! | कारण है। गंभीरता भी एक तरह की बीमारी है। सीरियसनेस एक
क्या कायसी और बीमारियों के बीच कोई अंतर्संबंध स्थापित हो तरह की बीमारी है। और गहरी बीमारी है। जाता था? क्या कायसी और दवाओं के बीच कोई अंतर्संबंध गंभीर आदमी न तो हंस सकता है, न नाच सकता है, न जी स्थापत हा जाता था? कई बार तो कायसा कहता था, फलां वृक्ष की | सकता है। गंभीर आदमी जीता है मरा-मरा। गंभीर आदमी की पत्तियां और फलां वृक्ष का फूल और यह-यह मिलाकर दे देने से जिंदगी एक क्रमिक मौत है। गंभीर आदमी होता है आत्मघाती, ठीक हो जाएगा। और आदमी उसको दे देने से ठीक हो जाते थे। क्या | स्युसाइडल। गंभीरता उसके ऊपर होती है, जैसे मरघट उसके चारों कायसी को वनस्पतियों से कोई अंतर्संबंध स्थापित हो जाता था? | | तरफ हो, जिंदगी नहीं। और गंभीर आदमी न तो प्रार्थना कर सकता
कायसी की घटना ने पुनर्विचार का मौका दिया कि शायद | । है, न पूजा कर सकता है। क्योंकि पूजा और प्रार्थना, सब जीवन के लकमान ठीक कहता हो। और तब भारतीय आयुर्वेद के संबंध में भी उत्सव से
जीवन की गंभीरता से नहीं। बहुत-सी बातें साफ हो सकती हैं। क्योंकि भारतीय आयुर्वेद के पास गंभीर ऋषि हुए हैं। लेकिन जो गंभीर ऋषि है, उसका अर्थ यह
वह
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