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गीता दर्शन भाग-5
का। वे कहते हैं, मनुष्य के ऊपर और कोई भी सत्य नहीं है। मनुष्य आखिरी सत्य है।
लेकिन जब कोई कहता है, मनुष्य आखिरी सत्य है, तो उसका अर्थ है कि अब प्रगति का कोई उपाय न रहा। जब कोई कहता है, मनुष्य आखिरी सत्य है, तो उसका अर्थ है ' अब ऊपर आंखें उठाने की कोई जगह न रही । उसका अर्थ है कि अब हम जो हैं, अब हम वही होने को आबद्ध हैं। अब इसमें कोई क्रांति, इसमें कोई | विस्फोट, इसके पार जाने का अब कोई उपाय नहीं है।
अपने से श्रेष्ठतर की तरफ जो आंख है, वह पार जाने का उपाय है, द्वार है । और जिस दिन आदमी स्वयं के पार जाना बंद कर देता है, उसी दिन आदमी सड़ जाता है, नष्ट हो जाता है।
नी ने कहा है, जिस दिन आदमी की प्रत्यंचा पर, जिस दिन आदमी के धनुष पर दूर और आदमी के पार जाने का बाण नहीं चढ़ेगा, उसी दिन आदमी समाप्त हो जाएगा।
सदा अपने से पार जाना है। लेकिन पार जाना तभी संभव है, जब पार जाने वाली किसी बात के प्रति हमारा समर्पण हो ।
ये हिंदू बहुत अदभुत लोग थे एक अर्थ में, कि अगर पीपल में भी उन्हें कोई पार जाने वाली चीज दिखाई पड़ी, प्रज्ञा की कोई झलक मिली, कोई लौ, कोई छोटा-सा दीया वहां भी दिखाई पड़ा, तो उन्होंने वहां भी अपना सिर जमीन पर रख दिया।
कोई जरूरत नहीं है आदमी को पीपल के सामने झुकने की। क्या है जरूरत? और पीपल की क्या है सामर्थ्य कि आदमी को अपने सामने झुका ले! आदमी चाहे तो काटे और सारे पीपल पृथ्वी से अलग कर दे। लेकिन असहाय पीपल के सामने भी, जिसको काटकर हटाया जा सकता है, जब आदमी ने सिर झुकाया, तो कुछ गहरा कारण था। और वह गहरा कारण यह था कि समस्त वृक्षों में पीपल के पास एक अपनी तरह की बुद्धिमत्ता है । उस बुद्धिमत्ता से संबंध भी जोड़ा जा सकता है।
यूनानी चिकित्सा के जन्मदाता लुकमान ने एक लाख वनस्पतियों गुणधर्म लिखे हैं। बड़ी चकित करने वाली बात है। क्योंकि लुकमान के पास न तो कोई प्रयोगशाला थी, न कोई रासायनिक उपाय थे, न यंत्र थे, जिनके माध्यम से एक लाख वनस्पतियों के गुणधर्म जाने जा सकें । लुकमान तो गांव-गांव भटकने वाला फकीर था । एक झोली के सिवाय उसके पास कुछ भी न था, जिसमें उसका भिक्षा का पात्र होता । इस लुकमान को एक लाख वनस्पतियों के गुणधर्मों का पता चलना, बड़ी हैरानी की बात है।
और इसके पहले किसी को भी पता न था, इसलिए किसी दूसरे से पता चला हो, इसका उपाय नहीं है।
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लुकमान ने खुद जो कहा है, वह भरोसे की बात नहीं थी। लेकिन अब उस पर भरोसा आ सकता है। इसलिए मैं अक्सर कहता हूं कि | हमें जल्दी गैर - भरोसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि हो सकता है, बाद की खोज - बीन हमारे संदेहों को गिरा दे।
लुकमान ने कहा है कि मैंने तो पौधों से ही पूछ लिया कि तुम्हारा गुणधर्म क्या है ! और तो मेरे पास कोई उपाय न था। मैं तो पौधों के पास ही आंख बंद करके ध्यानस्थ होकर जाता था। उसी से पूछ लेता था कि तू किस बीमारी में काम आ सकता है, तू मुझे बता दे ! पौधा जो बता देता, वह मैं लिख लेता था। ऐसे मैंने एक लाख पौधों पूछ लिया।
और बड़ी हैरानी की बात है कि लुकमान ने जिस पौधे का जो गुणधर्म कहा है, हमारी श्रेष्ठतम विज्ञान की प्रक्रिया भी उससे भिन्न गुणधर्म नहीं बता पाती है ! वही गुणधर्म उस पौधे के हैं ! उसी बीमारी पर वह काम आता है!
तो इतिहासविदों को, चिकित्साशास्त्रियों को, सभी को हैरानी रही है कि कोई कारण तो दिखाई नहीं पड़ता है कि लुकमान को पता कैसे चला। लेकिन लुकमान जो कारण बताता है, वह भी मानने योग्य मालूम नहीं पड़ता। पौधे क्या बताएंगे !
लेकिन अभी अमेरिका में इस सदी में एक आदमी हुआ, कायसी । और कायसी की घटना ने सिद्ध किया कि लुकमान ने ठीक कहा होगा। क्योंकि कायसी को अचानक एक क्षमता उपलब्ध हो गई। कायसी बहुत बीमार था । और चिकित्सकों ने इनकार कर दिया । सब तरह की चिकित्सा हुई, वह ठीक नहीं हुआ, नहीं हुआ। ठीक नहीं हुआ। उन्होंने इनकार कर दिया।
कायसी इतना दुखी हो गया कि आत्मघात का सोचने लगा। एक दिन वह आत्मघात का सोचते-सोचते बेहोश हो गया। और बेहोशी में उसने जोर से चिल्लाकर कहा कि यह यह दवा अगर मुझे दी जाए, तो मैं ठीक हो जाऊंगा। घर के लोगों ने वह दवा नोट कर ली। चिकित्सकों से पूछा। उन्होंने कहा, ऐसी दवा का हम नाम भी नहीं जानते ! यह कौन-सी दवा ! और जब कायसी होश में आया, तो उसे भी कुछ पता नहीं था कि उसने कोई दवा का नाम लिया है। दवा की खोज बीन की गई। वह दवा मिल गई। लेकिन दवा ऐसी थी कि बीस साल पहले किसी ने स्विटजरलैंड में उसका पेटेंट करवाया था। लेकिन बनाई नहीं गई थी। फिर कभी बाजार में आई
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