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________________ आभिजात्य का फूल बुद्धि का फूल खिलता हो, तो भी हमारा सिर झुकेगा, यह भाव है। | पता नहीं होगा कि इस आदमी के अहंकार को रस आया; इस लेकिन आदमी में अगर प्रज्ञा का फूल खिले, तो हमारा तो सिर वहां | | आदमी के अहंकार को मजा आया। भी झुकने को राजी नहीं होता। अहंकार बाधा डालता है। इधर मैंने देखा है कि कृष्णमूर्ति के पास, जिनको हम गहनतम और मजे की बात यह है कि जो आदमी पीपल के सामने | अहंकारी कहें, उन लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई है। और उसका आसानी से झुक सकता है, वह आदमी के सामने आसानी से न कुल एक कारण है। उसका कुल एक कारण है कि कृष्णमूर्ति कहते झुक सकेगा। क्योंकि पीपल के सामने झुकने में ऐसा हमें खयाल | हैं, न मैं गुरु हूं, न मैं अवतार हूं, न मैं शिक्षक हूं, न मैं तुम्हें सिखाने ही नहीं होता है कि हम किसी के सामने झुक रहे हैं। आदमी के | वाला हूं। मैं तो कुछ भी नहीं हूं। लोग चालीस-चालीस साल से सामने झुकने में पता चलता है, हम किसी के सामने झुक रहे हैं। उनको सुन रहे हैं। चालीस साल से निरंतर उनसे सीख रहे हैं। इसलिए पत्थर की मूर्ति के सामने सिर रख देना आसान है, जिंदा | लेकिन यह सुनकर उनके मन को बड़ी तृप्ति मिलती है कि नहीं, आदमी के सामने सिर रखना बहुत कठिन है। इसीलिए जब गुरु मर | कृष्णमूर्ति किसी के गुरु नहीं हैं। इसका गहरा मजा यह है कि मैं जाते हैं, तो मूल्यवान हो जाते हैं। जब जिंदा होते हैं, तब मूल्यवान | किसी का शिष्य नहीं हूं। नहीं होते। क्राइस्ट मर जाएं, तो ईश्वर हो जाते हैं। जिंदा हों, तो __ यह बहुत मजे की बात है। कृष्णमूर्ति जीवनभर अहंकार से मुक्त सूली पर लटकाए जाते हैं! बुद्ध जिंदा हों, तो हम पत्थर मारते हैं। | होने की बात करते हैं। ठीक बात करते हैं। लेकिन जो वर्ग उनके और मर जाएं, तो हम उनकी इतनी प्रतिमाएं बनाते हैं कि सारी पृथ्वी | आस-पास इकट्ठा होता है, वह गहन अहंकार वाले लोगों का वर्ग को उनकी प्रतिमाओं से भर देते हैं! क्या होगा कारण? क्या होगा है। उसको मजा आता है। उसे लगता है कि बिलकुल ठीक है। राज इसके भीतर? यह वर्ग महावीर और बुद्ध के पास इकट्ठा कभी भी नहीं होगा। अगर जीसस हमारे सामने खड़े हों, तो ठीक हमारे ही जैसा | यह वर्ग कृष्ण के पास नहीं जा सकता। क्योंकि कृष्ण कहेंगे, सर्व आदमी सामने होता है। सिर झकाने में हमें पीडा मालम पडती है. धर्मान परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज-सब छोड. सब धर्म-वर्म कष्ट होता है; अहंकार को चोट लगती है। लेकिन क्राइस्ट मौजूद | छोड़ और मेरी शरण आ। यह वर्ग कहेगा, क्या आप कह रहे हैं? न हों, बुद्ध खो गए हों, महावीर मौजूद न हों, कृष्ण मौजूद न हों, आपकी शरण और हम आएं! आपमें ऐसा क्या है ? आप हैं कौन ? तो हमें कोई अड़चन नहीं होती, क्योंकि सामने कोई भी नहीं होता। यह वर्ग जो कृष्णमूर्ति के पास इकट्ठा है, यह कृष्ण के पास लेकिन ध्यान रहे, मुर्दा गुरु कितना ही बड़ा हो, उससे उतना | इकट्ठा नहीं हो सकता। लेकिन मजे की बात यह है कि इस वर्ग को लाभ नहीं लिया जा सकता, जितना छोटे से छोटे जिंदा गुरु से लिया कृष्ण के पास पहुंचने से ही लाभ होगा। इस वर्ग को कृष्णमूर्ति के जा सकता है। पास लाभ नहीं हो सकता। जो वर्ग कृष्ण के पास इकट्ठा है, वह . लेकिन जिंदा गुरु के सामने झुकना बहुत मुश्किल बात है। और अगर कृष्णमूर्ति के भी पास हो, तो उसको लाभ हो सकता है। यह हालत यहां तक पहुंच गई है कि अब अगर किसी गुरु को आप मेरा मतलब समझे? आपको अपने चरणों में झुकाना हो, तो उसे एक ही काम करना अगर विनम्र आदमी कृष्णमूर्ति के पास भी इकट्ठे हों, तो उनको चाहिए, उसे कहना चाहिए, कोई मेरा पैर न छुए। कोई मेरे सामने लाभ हो सकता है। लेकिन अहंकार वाले आदमी के अहंकार को न झुके। बल्कि अच्छा तो यह हो कि वह आपके चरणों में झुके, तो और पुष्टि मिल जाती है। तो आपको लंगे कि हां, यह आदमी ठीक है। यह हमारी सदी ईश्वर को इनकार करने की सदी है। इसलिए एक मित्र मुझे मिलने आए थे। उन्होंने कहा कि मैं कृष्णमूर्ति से | नहीं कि हमको पता चल गया है कि ईश्वर नहीं है। बल्कि इसलिए बहुत प्रभावित हुआ। मैंने कहा, कारण क्या है प्रभावित होने का? | | कि हमारी सदी इस पृथ्वी के इतिहास में सबसे ज्यादा अहंकारग्रस्त, तो उन्होंने कहा, जब मैं उनके पास मिलने गया और उनके सामने | | सबसे ज्यादा ईगोसेंट्रिक, अहंकार-केंद्रित सदी है। हम ईश्वर को बैठकर बात करने लगा, तो उन्होंने हाथ मेरे घुटने पर रख लिया और भी बर्दाश्त नहीं कर सकते। हमसे ऊपर कोई ईश्वर हो, इसको भी वे अपना हाथ मेरे घटने पर सहलाते हए मेरे पैर पर भी ले गए। हम बर्दाश्त नहीं कर सकते। यह उन्होंने किसी प्रेम के क्षण में किया होगा। लेकिन उनको भी पश्चिम में एक विचार चलता है, घुमनिस्ट, मानवतावादियों 1147
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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