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________________ ॐ मृत्यु भी मैं हूं इसलिए जैसे आज आइंस्टीन का सूत्र, छोटा-सा सूत्र, जो आज | योजना। एक बात तय है कि हम टूटे हुए हैं। अस्तित्व से कहां जुड़े के पूरे विज्ञान को समाहित कर लेता है, एनर्जी इज़ ईक्वल टु एम | हैं, हमें पता नहीं! कैसे वापस मिलन हो, इसका पता नहीं! तो कोई सी स्क्वायर। जैसा यह सूत्र आज के समस्त भौतिकशास्त्र को | मार्ग, कोई सेतु, कोई रास्ता बनाने की व्यवस्था का नाम यज्ञ है। समाहित कर लेता है, वैसे ही ओम पूरब के सारे ध्वनिशास्त्र को बहुत तरह से वह व्यवस्था बन सकती है। और जिस व्यवस्था से समाहित कर लेता है। यह भी एक वैज्ञानिक सूत्र है। अ उ म, इन | भी आप जगत के अस्तित्व से जुड़ जाते हैं, वही व्यवस्था यज्ञ हो तीनों को इकट्ठा करके निर्मित हुआ है ओम। और इसके विशेष जाती है। प्रयोग हैं। इसलिए हजारों प्रकार के यज्ञ हैं। और अगर आप ऊपर से और कृष्ण कहते हैं कि समस्त अक्षरों में मैं एक अक्षर हूं, ओम। | देखेंगे, तो आपकी कछ भी समझ में न आएगा। लगेगा क्रियाकांड सारे शास्त्र छोड़ दो, हर्ज न होगा। सारे शास्त्र भूल जाओ, हर्ज है, व्यर्थ का पाखंड है। लेकिन यह तो कोई भी चीज लगेगी। न होगा, एक ओम याद रह जाए, और एक ओम को अपने भीतर __ अगर एक आदमी को, आदिवासी को हम पकड़ लाएं और एक गुंजाने की कला याद रह जाए, और एक ओम के साथ अपने को | | रेडियो को खोलकर उसके सामने बिछा दें, तो वह कहेगा, यह क्या लयबद्ध करने की क्षमता आ जाए, और ऐसी घड़ी आ जाए कि | | पागलपन है ? उसने कभी रेडियो न देखा हो और उसे पता न हो कि आप मिट जाओ और भीतर केवल ओम का उच्चार रह जाए, तो | तारों की एक व्यवस्था भी ध्वनि को पकड़ने का उपाय बन जाती है, परमात्म-सत्ता में प्रवेश हो जाता है। क्योंकि ओम के बाद जो नीचे | तो वह कहेगा, यह क्या पागलपन है! गिरेगा, फिर वह निर्ध्वनि, शून्य जगत में प्रवेश करता है। फिर वह | और फिर अगर कोई एक आदमी कहे कि मैं इस यंत्र को निर्मित परमात्मा के एकाकार, निराकार में प्रवेश कर जाता है। ओम द्वार | कर रहा हूं और तारों को जोड़ता चला जाए, तो उस आदिवासी को है आखिरी। तो यह आदमी भी पागल मालूम पड़ेगा कि यह क्या क्रियाकांड कर अगर ओम से जगत की तरफ चलें, तो फिर अ उ म तीन | | रहे हो! पागल हो गए हो! इसके द्वारा तुम सोचते हो कि दूर, हजारों ध्वनियां, और फिर तीन ध्वनियों से समस्त संसार का विस्तार है। | मील दूर दिल्ली की आवाज पकड़ोगे! अगर ओम के पीछे चलें, तो ओम के बाद शब्द, ध्वनियां सब खो । स्वभावतः, उसके कहने में भी भूल नहीं है। उसका तर्क भी उचित जाते हैं। अंततः आप भी खो जाते हैं। सिर्फ ओंकार मात्र रह जाता है, उसके अनुभव पर आधारित है। अगर रेडियो आपने भी न देखा है, सिर्फ ओम मात्र रह जाता है। | होता, तो आप भी यही कहते। अगर बिजली आपने भी न देखी होती इसका अर्थ है कि ओम किसी मनुष्य के द्वारा पैदा की गई ध्वनि और आप देखते एक मैकेनिक को यहां आकर तार फैलाते हुए और नहीं है, अस्तित्व की ध्वनि है। दि साउंड आफ एक्झिस्टेंस | वह कहता कि तारों को फैलाकर रात यहां दिन जैसा उजाला कर देंगे, इटसेल्फ, अस्तित्व की ही ध्वनि है। जैसा कभी आपने सन्नाटे की | तो आप भी कहते कि दिमाग खराब हो गया है। ध्वनि सुनी है ? रात कोई आवाज नहीं है, तो सन्नाटा मालूम पड़ता सिगमंड फ्रायड ने लिखा है अपने संस्मरणों में कि पहली दफा है। उसकी भी अपनी ध्वनि है। ठीक वैसे ही जब मनुष्य का सब | | जब उसके गांव में बिजली आई, तो उसका एक मित्र देहात से अहंकार, सब विचार, सब शांत हो जाते हैं और गहन मौन होता उसके घर मेहमान हुआ। सिगमंड फ्रायड भूल गया बताना कि है, उस मौन में, भीतरी सन्नाटे में, जो ध्वनि सुनाई पड़ती है, उसका | बिजली कैसे बुझाई जाती है बटन से। उस आदमी को तो पता नहीं नाम ओम है। था। उसने लालटेन बुझाई थी, चूल्हे की आग बुझाई थी, सब उस ओम में प्रवेश ही, कृष्ण कहते हैं, मुझमें प्रवेश है। समस्त | | बुझाया था। लेकिन बटन से भी कोई चीज बुझने वाली है, इसकी अक्षरों में एकाक्षर ओंकार हूं। हजारों प्रकार के यज्ञ हैं, उन यज्ञों में | उसे कोई कल्पना भी नहीं हो सकती थी। संकोचवश उसने पूछा भी जप-यज्ञ हूं। | नहीं। कई दफा खयाल तो आया कि यह लालटेन कैसे बुझेगी! जप को थोड़ा हम समझ लें। यज्ञ का अर्थ होता है, कोई भी लेकिन यह सोचकर कि कोई मुझे मूढ़ समझेगा, अगर मैं पूछू। योजना, कोई भी व्यवस्था, जिसके माध्यम से हम अपने और तो उसने सोचा सब सो जाएं, कमरा बंद करके कोई उपाय अस्तित्व के बीच सेतु निर्माण करें, एक ब्रिज बनाएं। कोई भी निकाल लेंगे और बुझा देंगे। कमरा बंद करके उसने बहुत उपाय 1139
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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