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________________ 07 गीता दर्शन भाग-500 वह आदमी तो फल देकर चला गया। नसरुद्दीन उसकी जगह बैठ | हम समझ लें। गया और एक फल उसने मुंह में रखा, तो आंख से आंसू झरने लगे। | वचनों में एक अक्षर ओंकार। ओम एक अक्षर है, लेकिन तीन वह लाल मिर्च थी। आग लगने लगी मुंह में, लेकिन चबाए चला | ध्वनियां हैं, अउ म। इन तीनों की इकट्ठी जो ध्वनि है, वह है ओम। गया। गटके चला गया! भीतर पेट तक आग की लपटें फैलने लगीं। | ध्वनिशास्त्र कहता है, अउ म तीन मौलिक ध्वनियां हैं। सभी ध्वनियां और तब एक आदमी पास से निकला। उसने नसरुद्दीन की आंख | इन्हीं का विस्तार हैं। तीन बीज ध्वनियां हैं, अ उ म। शेष सारी से बहते हुए आंसू और लाल आंखें और कंपता हुआ शरीर देखा। | ध्वनियां इनका ही फैलाव हैं। इन तीनों को मिलाकर बनाया है ओम। उसने पूछा कि तू यह पागल क्या कर रहा है! यह मिर्च है। खाना | तो ओम महाबीज है। ओम से तीन ध्वनियां पैदा होती हैं; अ उ म। मत। रुक। अन्यथा मौत हो जाएगी। नसरुद्दीन ने कहा कि मिर्च खा और फिर तीन ध्वनियों से ध्वनियों का सारा संसार प्रकट होता है। कौन रहा है? अब तो मैं अपने पैसे खा रहा हूं। मिर्च का खाना तो | इसे थोड़ा ऐसा समझना पड़े। पहली मिर्च पर ही समाप्त हो गया। लेकिन पैसे खर्च किए हैं। | आधुनिक भौतिकी, फिजिक्स कहती है कि समस्त जीवन का हममें से भी बहुत लोगों की आंखों में जो आंसू हैं, वे पैसे खाने | मौलिक आधार इलेक्ट्रांस हैं, विद्युत-कण हैं। भारतीय प्रज्ञा की की वजह से हैं। सब जला जा रहा है बाहर-भीतर; लेकिन पैसे तो | | खोज यह है कि समस्त अस्तित्व का मौलिक आधार ध्वनि-कण खाने ही पड़ेंगे! आदमी की जिंदगी में इतनी जो पीड़ा और परेशानी | | हैं, विद्युत-कण नहीं। साउंड, ध्वनि मौलिक है। पश्चिम की और कठिनाई है...। जिनके पास पैसे नहीं हैं, उनके पास पैसे न | | भौतिकशास्त्र की खोज है कि विद्युत मौलिक है। होने से कठिनाई है, लेकिन वह कठिनाई बहुत बड़ी नहीं है। असली | लेकिन एक मजे की बात है कि पश्चिम का भौतिकशास्त्र कहता कठिनाई खोजनी हो, तो उन आदमियों को देखो जो पैसे खा रहे हैं! है कि ध्वनि भी विद्युत का एक प्रकार है। एक विशेष प्रकार से पड़ी उनकी कठिनाई का कोई हिसाब नहीं है; उनकी कठिनाई का कोई | हुई विद्युत ही ध्वनि बन जाती है। एक विशेष लयबद्धता में विद्युत अंत नहीं है। ध्वनि बन जाती है। और भारतीय शास्त्र कहते हैं कि विद्युत भी लेकिन यह यात्रा दो ही तरह से रुक सकती है, यह पैसे खाने | ध्वनि का एक प्रकार है। विशेष रूप से की गई ध्वनि, आग को पैदा की यात्रा। या तो आप बिलकुल पैसे के सागर में गिरा दिए जाएं, कर देती है। जैसा कुबेर। और या फिर आपके पास इतनी प्रज्ञा हो और इतना । इसलिए हम कहानियां सुनते हैं तानसेन की और...। वे सब होश हो, इतनी बुद्धि हो, कि आप पैसे खाने से बच सकें। कहानियां सही हों, न हों, लेकिन उनके पीछे भारतीय दृष्टि कारण कृष्ण कहते हैं, राक्षसों में मैं कुबेर हूं। है। और वह दृष्टि यह है कि अगर एक विशेष आघात किया जाए मैं वह आदमी हूं राक्षसों में, जिसके पास इतना है, इतना अनंत | | ध्वनि का, तो अग्नि पैदा हो जाती है, विद्युत पैदा हो जाती है। कि उसकी सारी वासना मर गई है। और पाने का कोई उपाय नहीं | अभी पश्चिम में भी ध्वनिशास्त्र पर नवीनतम खोजें विकसित रहा। और सोचने का और कल्पना करने का उपाय नहीं रहा। | होती हैं, तो भारतीय प्रज्ञा की खोज महत्वपूर्ण होती जाती है। अब कल्पना से ज्यादा जिसके पास है, ऐसा कुबेर का प्रतीक है। कुबेर | तो वे भी कहते हैं कि यह संभव है कि विशेष ध्वनियों की चोट से का अर्थ है, जिसके पास कल्पना से ज्यादा है, वासना से ज्यादा है। | आग पैदा हो जाए। क्योंकि उनका कहना है कि ध्वनि भी विद्युत का कृष्ण कहते हैं, मैं कुबेर हूं। एक प्रकार है। तथा शिखर वाले पर्वतों में सुमेरु पर्वत हूं, श्रेष्ठतम; और | शायद यह शब्दों का ही फासला हो। मेरे देखे शब्दों का ही पुरोहितों में बृहस्पति हूं, देवताओं का पुरोहित। और हे पार्थ, | फासला है। ध्वनि का प्रकार विद्युत हो या विद्युत का प्रकार ध्वनि सेनापतियों में स्वामी कार्तिक और जलाशयों में समुद्र हूं। और हे | हो, एक बात तय है कि दोनों गहरे में संयुक्त हैं। ज्यादा उचित होगा अर्जुन, मैं महर्षियों में भृगु और वचनों में एक अक्षर अर्थात ओंकार | | कहना कि शायद कोई तीसरी ही चीज है, जो दोनों में प्रकट होती हूं। सब प्रकार के यज्ञों में जप-यज्ञ और स्थिर रहने वालों में | है, ध्वनि में और विद्युत में। शायद उसे भारतीय ध्वनि कहते हैं, हिमालय पहाड़ हूं। | और उसे आधुनिक विज्ञान विद्युत कहता है। ये शायद शब्दों के इसमें दो-तीन प्रतीक बहुत कीमती हैं साधक की दृष्टि से, वह | फासले हैं। 138
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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