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________________ ॐ गीता दर्शन भाग- 58 किए। सब तरफ से फूंका। कुर्सी रखकर, ऊपर चढ़कर बल्ब को जाए। अपने भीतर ए सिस्टम आफ पर्टिकुलर साउंड पैदा करना, फूंका। हिलाया। सब तरफ जांचा-परखा कि कोई तरकीब हो, कुछ ताकि बाहर के जगत में जो ध्वनियों का फैलाव है, उनसे हमारा हो। कहीं कुछ न था! उस बल्ब में कोई बुझने का उपाय ही न था! | तालमेल हो जाए। आपको लगेगा, कैसा पागल था! लेकिन आप गलती करते हैं, | ।। जब आप अपने भीतर कहते हैं, ओम, ओम, ओम, तब आप उसके साथ अन्याय करते हैं। आप भी होते, यही करते। क्योंकि अपने भीतर अपने रोएं-रोएं को एक विशेष ध्वनि से संवादित, दूर दीवाल पर कहीं कोई छिपी हुई दरवाजे की आड़ में बटन होगी, | | प्रभावित कर रहे हैं। अगर यह ध्वनि व्यवस्था से की जाए, तो यह खयाल भी आए तो कैसे आए! आपको आ जाता है, क्योंकि | आपका रोआं-रोआं, आपके शरीर का कोष्ठ-कोष्ठ इससे आपको पता है। उसको पता नहीं था। | आंदोलित हो जाएगा। अगर यह ध्वनि ठीक से की जाए, तो बहुत आधी रात तक उसने सब तरह के उपाय कर लिए। फिर उसने | | शीघ्र आपका पूरा शरीर एक स्टेशन, एक ब्राडकास्टिंग स्टेशन हो सोचा कि अब ऐसे ही आंख बंद करके पड़े रहो, अब सुबह देखा | | जाएगा। आपके पूरे शरीर से एक विशेष ध्वनि इस विस्तार में, चारों जाएगा। रातभर लेकिन बार-बार उसको खयाल छूटे न, कि वह | तरफ के विस्तार में आंदोलित होने लगेगी। किसी तरह बुझ जाए तो अच्छा है। और जब आपका पूरा शरीर एक विशेष ध्वनि में लयबद्ध हो सुबह जब फ्रायड ने उससे पूछा कि नींद तो ठीक हुई? उसने जाता है, तब तत्क्षण बाहर के जगत से, उस ध्वनि से मेल खाती कहा, नींद तो सब ठीक हुई। लेकिन अब मैं अपनी मूढ़ता का ध्वनि और आपके बीच सेतु निर्मित हो जाता है। यह सेतु निर्मित खयाल छोडकर पछता हं कि इस लालटेन को बझाने का भी कोई करने का अर्थ है जप-यज्ञ। उपाय है या नहीं? रातभर इसे मैं बुझाता रहा हूं। सब मैंने अपनी इसलिए सारे धर्मों ने अलग-अलग रूपों में जप का प्रयोग किया बुद्धि लगा दी! फ्रायड ने जाकर बटन दबाई। वह लालटेन बुझ गई। है। अलग-अलग नामों का प्रयोग किया है। कोई भी हो नाम, कोई वह आदमी चमत्कृत हो गया। उसने कहा, क्या जादू करते हो! यह भी हो मंत्र, लेकिन मौलिक आधार यही है कि आप अपने शरीर क्या मंत्र है। को एक ऐसी ध्वनि की व्यवस्था में ले आएं, कि विराट जगत में जिस योजना की हमें व्यवस्था का पता न हो, वह योजना व्यर्थ | | जो ध्वनि चल रही हैं, उनसे आपका संबंध निर्मित हो जाए। और मालूम पड़ने लगती है। बहुत-से यज्ञ इसीलिए व्यर्थ मालूम पड़ने | | यह संबंध निर्मित...। लगे हैं। उनके भीतर कुछ द्वार हैं। वे भी योजनाएं हैं। उन योजनाओं कभी आपने खयाल किया हो, आप मेरी बात सुन रहे हैं, अगर से भी कहीं से संबंधित होने का मार्ग है। कुछ लोग आग जलाकर | | सच सुन रहे हैं, तो आपको कई बातें पता नहीं चलेंगी, क्योंकि आप बैठे हैं और घी छिड़क रहे हैं। एक विशेष ढंग से मेरी ध्वनि से आबद्ध हो गए हैं। मैं बंद करूंगा __ अब तो करीब-करीब पागलपन की हालत है, क्योंकि जो | | बोलना, किसी को पता चलेगा, पैर सो गया है। घंटेभर तक उसे छिड़क रहे हैं, उनको भी पता नहीं कि वे क्या कर रहे हैं। जो देख | | पता नहीं था! किसी को पता चलेगा, पैर में कंकड़ गड़ रहा है। रहे हैं, उनको भी पता नहीं कि वे क्या कर रहे हैं। क्या हो रहा है, | | घंटेभर से उसको कंकड़ गड़ने का पता नहीं था! किसी के हाथ में क्यों हो रहा है, कुछ भी पता नहीं। हमारे हाथ में कुछ बातें रह गई तकलीफ थी, किसी के सिर में दर्द था, वह घंटेभर भूल गया था। हैं अधूरी। अन्यथा उनका पूरा का पूरा विज्ञान है, पूरी साइंस है। | घंटेभर बाद मैं बोलना बंद करूंगा, दर्द वापस लौट आएगा। दर्द और एक विशेष व्यवस्था से जगत के अस्तित्व में प्रवेश होने का | | नहीं जाएगा; दर्द मुझे सुनकर नहीं जा सकता। लेकिन आप एक उपाय है। उस उपाय का नाम यज्ञ है। विशेष ध्यान में आबद्ध हो गए थे, इसलिए बहुत-से द्वार आपके कृष्ण कहते हैं, इन सब उपायों में जप-यज्ञ मैं हूं, क्योंकि इन | अनुभव के बंद हो गए और एक ही तरफ आपकी चेतना प्रवाहित सब में सूक्ष्म और सबसे श्रेष्ठ जप-यज्ञ है। हो रही थी। जप-यज्ञ का अर्थ है, अपने भीतर ध्वनियों का एक ऐसा संघात । युद्ध के मैदान पर छुरी, तलवार, भाला भी घुस जाए, तो योद्धा निर्मित करना, ध्वनियों का एक ऐसा जाल निर्मित करना अपने को पता नहीं चलता। उसकी सारी चेतना फोकस्ड होती है। खेल भीतर कि वह जो परम ध्वनि है जगत की, उससे हमारा संबंध हो | | के मैदान पर चोट लग जाए पैर में, हाकी लग जाए, पता नहीं 140
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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