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सगुण प्रतीक-सृजनात्मकता, प्रकाश, संगीत और बोध के 8
वह धर्मगुरु बड़ी मुश्किल में पड़ गया। किसी धर्मशास्त्र में भी | जीवन प्रकट होता है और लीन होता है। पृथ्वी का कोई इंडेक्स नंबर दिया हुआ नहीं था। क्योंकि सभी हेराक्लतु की बात हमें ठीक शायद न भी मालूम पड़े, लेकिन धर्मशास्त्र इसी पृथ्वी पर पैदा हुए हैं। और यह मानकर चलते हैं कि | अब वैज्ञानिक कहते हैं कि विद्युत ही जीवन है। विद्युत नई भाषा है, यही पृथ्वी सब कुछ है।
लेकिन विद्युत आग है। और अगर हिंदू कहते थे कि सूर्य ही जीवन धर्मगुरु को दिक्कत में देखकर उस द्वारपाल ने कहा कि अगर | है, तो यह भाषा कितनी ही पुरानी हो, लेकिन इसका अर्थ वही है। तुम्हें पृथ्वी का कोई नंबर याद न हो, तो तुम किस सूर्य के परिवार से सूर्य कहे कोई, अग्नि कहे कोई, विद्युत कहे कोई, लेकिन जीवन आते हो, उसका इंडेक्स नंबर बोलो। किस सूर्य के परिवार से आते | | किसी न किसी रूप में अग्नि के ही स्फुल्लिगों से जुड़ा हुआ है। हो? तो कुछ खोज-बीन हो सकती है, अन्यथा बड़ी कठिनाई है। कृष्ण कहते हैं कि मैं समस्त प्रकाशों में सूर्य हूं।
धर्मगुरु इतना घबड़ा गया! सोचता था, उसकी भी खबर होगी। यह इशारा कर रहे हैं अर्जुन को कि तू समझ सके, सूर्य पर रुक परमात्मा को। बड़ा धर्मगुरु है। हजारों उसके मानने वाले हैं। सोचता | | जाना नहीं है। कृष्ण कहते हैं कि मैं समस्त प्रकाशों में सूर्य हूं। सिर्फ था, मेरी खबर होगी। मेरे मंदिर, मेरे चर्च की खबर होगी। लेकिन | | एक तुलना, प्रकाशों में एक इशारा, कि अर्जुन की आंख सूरज तक यहां उस पृथ्वी का ही कोई पता नहीं। यहां उस सूर्य के लिए भी नंबर उठ सके, तो फिर सूरज के पार भी ले जाया जा सकता है। इसी बताना जरूरी है। और तब भी उसने कहा कि अनेक वर्ष लग जाएंगे, | कारण बहुत-सी भ्रांतियां हुईं। तभी खोज-बीन हो सकती है कि आप कहां से आते हैं। ___ भारत में भी हिंदू विचार ने सूर्य को परम देवता माना। लेकिन
घबड़ाहट में उसकी नींद खुल गई, वह पसीने से तरबतर था। जैनों और बौद्धों ने इसका विरोध किया। उनका विरोध भी सही है यह सपना देख रहा था।
और हिंदओं का मानना भी सही है। उनका विरोध ऊपर के __ आदमी अपने को केंद्र मान लेता है, नासमझी के कारण। आदमी | दृष्टिकोण से है। क्योंकि वे कहते हैं कि क्या सूरज को कहते हैं कि अपने को मान लेता है कि मैं आधार में हूं, नासमझी के कारण। | परमात्मा! परमात्मा बहुत विराट है, सूरज बहुत क्षुद्र है। अस्तित्व बहुत विराट है।
वह ठीक वैसा ही झगड़ा है कि वे कहते हैं कि क्या कहते हैं कि इस विराट अस्तित्व की बात तो अर्जुन के समझ में नहीं आएगी। ग गणेश का! ग तो अनंत-अनंत चीजों का है; गणेश से क्यों इसलिए कृष्ण कहते हैं, समस्त ज्योतियों में, समस्त प्रकाशों में मैं | बांधते हैं? सूर्य हूं।
लेकिन प्राथमिक चरण में ग गणेश का उपयोगी है। और प्राथमिक यह अर्जुन की भाषा में समझ में आ सके, वहां परमात्मा के लिए चरण में सूर्य भी अगर परमात्मा बन जाए, तो उपयोगी है। प्रतीक निर्मित करना है। इसलिए सारे धर्मों ने प्रतीक निर्मित किए। सच बात यह है कि कोई भी प्रतीक, कितना ही छोटा क्यों न हो, सूर्य भी बहुत धर्मों के लिए परमात्मा का प्रतीक रहा है। उसका कुल | | अगर किसी की दृष्टि में ईश्वर बन जाए, तो वह व्यक्ति ऊपर उठना कारण इतना है कि हमारे अनुभव में सूर्य सबसे ज्यादा प्रकाशवान शुरू हो जाता है। यह बात महत्वपूर्ण नहीं है कि प्रतीक क्या है। है। और हमारे अनुभव में सूर्य ही प्राणों का केंद्र है। और हमारे महत्वपूर्ण यह है कि किसी प्रतीक को परमात्मा जानने का भाव, अनुभव में हमारे जीवन का समस्त आधार सूर्य है।
परमात्मा मानने का भाव अगर किसी में पैदा हो गया, तो ऊर्ध्व गति इसलिए हजारों साल पीछे भी हम लौट जाएं, अशिक्षित से | शुरू हो जाती है। अशिक्षित, जंगली से जंगली आदमी का समाज रहा हो, सूर्य के । परमात्मा न मानने से, किसी भी चीज को परमात्मा मान लेना लिए हाथ जोड़कर वह नमस्कार करता रहा है। सूर्य, पृथ्वी के | | बेहतर है। वह चीज परमात्मा है या नहीं, यह महत्वपूर्ण नहीं है। अनेक-अनेक कोनों में परमात्मा का प्रतीक बन गया है। और फिर | वह मान लेने वाला, मानने के साथ ही यात्रा पर निकल जाता है। उस प्रतीक से हम और छोटे प्रतीक बनाते हैं। आग भी परमात्मा | सूर्य को भी कोई ईश्वर मानता हो, और वृक्ष को भी कोई ईश्वर का प्रतीक बन गई, क्योंकि वह भी सूर्य का अंश है।
| मानता हो, और नदी को भी कोई ईश्वर मानता हो, तो बातें बहुत — हेराक्लतु ने यूनान में कहा है कि फायर, आग ही समस्त जीवन प्राथमिक मालूम होती हैं, लेकिन न मानने वाले से यह व्यक्ति भी का आधार है। आग ही जीवन है। आग के ही विभिन्न क्रमों में अंतर्जीवन में ज्यादा गति कर जाएगा। कहीं भी कोई है, जहां यह