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गीता दर्शन भाग-5
अवधारणाएं हैं। वही शक्ति, जो जीवन को धारण करती है, वही अवतरित होगी।
इसलिए बहुत मजे की बात है, ब्रह्मा का एकाध मंदिर खोजे से मिलेगा। ब्रह्मा की पूजा भी चलती हुई मालूम नहीं पड़ती है। सृजन तो हो चुका, इसलिए ब्रह्मा भुलाए जा सकते हैं। वह बात हो चुकी । अभी ब्रह्मा का कोई संस्पर्श जीवन से नहीं है। वह घटना घट चुकी ब्रह्मा का काम पूरा हो चुका। विष्णु की पूजा चलती है। चाहे राम के रूप में, चाहे कृष्ण के रूप में, चाहे बुद्ध के रूप में – क्योंकि हिंदू मानते हैं, बुद्ध भी विष्णु का ही अवतार हैं - अनेक-अनेक रूपों में विष्णु की पूजा चलती है, क्योंकि जीवन का प्रतिपल संबंध विष्णु से है।
शिव के भी बहुत मंदिर हैं, और शिव के भी बहुत भक्त हैं। वह घटना भी अभी घटने को है, वह भविष्य है । मृत्यु, प्रलय, वह घटना अभी घटने को है। अभी शिव भी बहुत सार्थक हैं और उनकी पूजा में भी अभिप्राय है।
आदमी तो पूजा भी करेगा, तो अभिप्राय से करेगा । इसलिए ब्रह्मा की पूजा नहीं चलती, क्योंकि कोई भी संबंध नहीं रह गया है। वह घटना घट चुकी, अतीत हो बात। अब ब्रह्मा की जरूरत पड़ेगी नई सृष्टि के जन्म के समय । तब भी कोई ब्रह्मा की पूजा नहीं करेगा, क्योंकि पूजा करने वाले लोग ही नहीं होंगे। जब पूजा करने वाले लोग आ जाते हैं, तो ब्रह्मा का काम समाप्त हो चुका होता है। इसलिए ब्रह्मा का भक्त खोजना जरा मुश्किल है, कठिन है, क्योंकि कोई भी संबंध हमारा उनसे जुड़ने का - हमारे लोभ से, हमारे भय से, हमारे स्वार्थ से, हमारे कल्याण से ब्रह्मा का कोई भी संबंध नहीं जुड़ता ।
इसलिए यह घटना घटी है कि तीनों सृष्टि के प्रधान देवता हैं, लेकिन ब्रह्मा बिलकुल ही उपेक्षित हैं। वे रहेंगे ही। विष्णु की सर्वाधिक पूजा होगी, क्योंकि जीवन का दैनंदिन, प्रतिपल का संबंध उनसे है। और जितने भी रूप परमात्मा के प्रकट होंगे, हिंदू कहता है कि वे सभी विष्णु के रूप हैं। होंगे ही। एक ही ऊर्जा जो धारण करती है, वही जीवन के इस लंबे विस्तार में बार-बार प्रवेश करेगी। शिव का प्रयोग अंतिम होगा, लेकिन वह भी हमारा भविष्य है। और आदमी की चिंता भविष्य के लिए भी होती है, शायद वर्तमान से भी ज्यादा भविष्य के लिए होती है। आदमी के भय और आदमी के लोभ वर्तमान से भी ज्यादा भविष्य में निर्भर होते हैं। आने वाले क में सब कुछ निर्भर होता है । तो शिव की भी पूजा चलेगी।
लेकिन कृष्ण ने कहा कि मैं विष्णु हूं। यह जीवन का जो केंद्रीय तत्व है सम्हालने वाला, वह मैं हूं।
इसे आप ठीक से समझ लेंगे कि यह केवल चित्रों के द्वारा, प्रतीकों के द्वारा अर्जुन को बोध देना है। कृष्ण ने गहरी बातें भी अर्जुन को कही हैं, वे शायद उसकी पकड़ में नहीं आतीं। वह कहता है, मुझे और विस्तार से कहें। विस्तार में जानने का मतलब ही यह है कि जो उसे कहा गया है, वह उसे साफ नहीं हो सका। तो कृष्ण अब बिलकुल ठीक अर्जुन को एक बच्चे की तरह मानकर चल रहे हैं। वे उसे कह रहे हैं कि मैं विष्णु हूं।
यह अर्जुन की समझ में आ सकता है। यह आसान है। यह सरल | होगा। यह हमारे जगत की भाषा का हिस्सा हो जाता है। परमात्मा - एक तो इस अवस्था में उसकी चर्चा की जा सकती है कि | जहां से भी हम पहुंचने की कोशिश करें, हमारे हाथ छोटे पड़ जाएं। कितनी ही हम आंखें ऊपर उठाएं, वह हमें दूर ही मालूम पड़े।
विष्णु के माध्यम से कृष्ण कहते हैं कि मैं बहुत निकट हूं । प्रतिपल मैं ही जीवन को धारण किए हुए हूं। आती हुई श्वास में भी मैं हूं, जाती हुई श्वास में भी मैं हूं। खून की रफ्तार में भी मैं हूं, वृक्ष के खिलने मैं हूं। यह जो जीवन को सम्हाले हुए हूं, इस जीवन | का सारा आधार मैं हूं।
विष्णु का अर्थ है, जीवन का आधार । प्रतिपल, प्रतिक्षण, जो सम्हाले हुए है, वही मैं हूं। यह अर्जुन को समझना आसान हो | सकेगा।
विष्णु हूं मैं, और ज्योतियों में किरणों वाला सूर्य हूं। जैसे भौतिक वैज्ञानिक पदार्थ की आखिरी इकाई परमाणु मानते हैं, वैसे ही अगर हम समस्त अस्तित्व के विराट रूप को ध्यान में | रखें, तो सूर्य सबसे छोटी इकाई है। जैसे परमाणु, हम पदार्थको | तोड़ते चले जाएं, तो आखिरी इकाई है, ऐसे ही अगर हम पूरे | अस्तित्व की इकाई खोजने जाएं, तो सूर्य पूरे अस्तित्व की प्राथमिक | इकाई है।
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रात में आप आकाश को तारों से भरा हुआ देखते हैं, तो आपको खयाल भी नहीं आता होगा कि इनमें तारा कोई भी तारा नहीं है, ये सभी सूर्य हैं। और हमारे सूर्य से बहुत बड़े सूर्य हैं। हमारा सूर्य बहुत | मीडियाकर, मध्यमवर्गीय है। ऐसे तो बहुत बड़ा है, हमारी दृष्टि से पृथ्वी से तो साठ हजार गुना बड़ा है। लेकिन और महासूर्य हैं, | जिनके मुकाबले वह कुछ भी नहीं है ।
ये जो रात में हमें तारे दिखाई पड़ते हैं, ये सभी सूर्य हैं। बहुत