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सगुण प्रतीक-सृजनात्मकता, प्रकाश, संगीत और बोध के 8
हिंदू चिंतना में ब्रह्मा सृजन के प्रतीक हैं, महेश विसर्जन के, अंत | | रूप वही है, जो ब्रह्मा, विष्णु, महेश का है। उन तीनों का काम भी के, विनाश के और विष्णु मध्य के, विस्तार के। विष्णु सम्हालते हैं वही है। उनमें एक विधायक है, एक विनाशक है, और एक तटस्थ अस्तित्व को। जो सम्हालने की शक्ति है, वह विष्णु का नाम है। | है। उसमें एक सृजनात्मक है, एक समाप्त करने वाला है और एक जो जन्म की शक्ति है, सृजन की, वह ब्रह्मा। और जो विनाश की, | सम्हालने वाला है। प्रलय की शक्ति है, वह शिव या महेश।
अगर हम धर्म की दिशा से यात्रा करें, तो जो शब्द हम चुनते हैं, • इन तीन शब्दों को हिंदुओं ने बहुत मौलिक मूल्य दिया है। वे वैयक्तिक होते हैं, पर्सनल होते हैं। क्योंकि धर्म चित्रों में सोचता क्योंकि हिंदू चिंतना को ऐसा हजारों-हजारों वर्ष पहले खयाल में | | है। इसलिए हमने ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीन को बनाया है। हमने आया कि अगर हम सारे अस्तित्व को मोटे-मोटे हिसाब से बांटें, | | तीनों की त्रिमूर्ति बनाई है, जिनमें शरीर एक है और चेहरे तीन हैं। तो अस्तित्व तीन हिस्सों में बंट जाता है। इस अस्तित्व में कुछ तो इस बात की सूचना देने के लिए कि ये तीन हमें बाहर से दिखाई होनी चाहिए सृजनात्मक ऊर्जा, क्रिएटिव एनर्जी, अन्यथा जगत हो | पड़ते हैं, भीतर से एक हैं। नहीं सकेगा। और यह सृजनात्मक शक्ति ही अगर जगत में हो, तो इन तीनों में कृष्ण ने कहा कि मैं विष्णु हूं। फिर विश्राम असंभव हो जाएगा। इसलिए विनाश की भी उतनी ही इसे थोड़ा समझ लेना चाहिए। इन तीनों में कृष्ण ने कहा कि मैं मूल्यवान शक्ति, डिस्ट्रक्टिव एनर्जी भी जगत में होनी चाहिए, तभी | विष्णु हूं। सृजन एक क्षण में हो जाता है। और विनाश भी एक क्षण दोनों में संतुलन होगा।
| में हो जाता है। काल का लंबा विस्तार विष्णु के हाथ में है। सृजन लेकिन अगर ये दोनों ही शक्तियां हों, तो बीच में मौका अस्तित्व | हुआ, बात समाप्त हो गई; स्रष्टा का उपयोग समाप्त हो गया। और को बचने का बचेगा ही नहीं। एक तीसरी शक्ति भी चाहिए, जो | विनाशक शक्ति का उपयोग अंत में होगा, जब प्रलय होगा। अस्तित्व को सम्हालती हो। जन्म के और मृत्यु के बीच में जो | इसलिए विराटतम ऊर्जा, जो काम में निरंतर आती है, वह मध्य में अस्तित्व को सम्हालती हो; सृजन के और प्रलय के बीच में जो | | है, वह विष्णु है। अस्तित्व को धारण करती हो, वैसी एक तीसरी शक्ति भी चाहिए। | कृष्ण कहते हैं, इन तीनों में मैं विष्णु हूं।
ये तीन मौलिक शक्तियां हैं। इन तीन मौलिक शक्तियों के प्रतीक हिंदुओं के सारे अवतार विष्णु के अवतार हैं। हिंदुओं ने माना है और शब्द-चित्र ब्रह्मा, विष्णु, महेश हैं।
कि ईश्वर जब भी प्रकट होता है, तो वह विष्णु का अवतार है। इसे हिंदुओं की यह अंतर्दृष्टि धीरे-धीरे इतनी व्यापक और मूल्यवान | थोड़ा हम समझें कि इसका क्या प्रयोजन और क्या अर्थ होगा! क्या सिद्ध हुई कि करीब-करीब जगत में जहां भी इस विचार की खबर अभिप्राय होगा! पहंची, वहां-वहां तीन शक्तियों का स्वीकार हो गया। जैसे | जब सृष्टि नहीं हुई हो, तब तो मनुष्य भी नहीं होता, और अवतार ईसाइयत तीन शक्तियों को स्वीकार करती है, गॉड दि फादर, गॉड का कोई अर्थ और कोई प्रयोजन नहीं है। और जब सृष्टि विनष्ट हो दि सन और दोनों के बीच में एक तीसरी शक्ति, होली घोस्ट। नाम गई हो, विलीन हो गई हो, तब भी अवतार का कोई प्रयोजन नहीं है। कोई भी दिए जा सकते हैं। नाम का चुनाव निजी है। लेकिन त्रिमूर्ति अवतार का प्रयोजन तो सृजन और अंत के बीच में, जब सृष्टि का यह भाव ईसाइयत स्वीकार करती है। उसको वे ट्रिनिटी कहते चलती हो, प्रक्रिया में हो, जीवंत हो, तभी प्रयोजन है। हैं। ये जो तीन अस्तित्व की शक्तियां हैं, इनके बिना अस्तित्व नहीं शिव का अवतार, विनाश का अवतार होगा। उसकी कोई हो सकता है, इसकी स्वीकृति ईसाइयत के धर्म-विचार में भी है। आवश्यकता मध्य में नहीं हो सकती। और ब्रह्मा का अवतार सजन __ और आधुनिक विज्ञान ने भी पदार्थ के विश्लेषण पर, बहुत | का अवतार होगा, उसकी कोई आवश्यकता मध्य में नहीं हो चकित होकर जाना कि पदार्थ के विश्लेषण पर तीन ही शक्तियां सकती। और जीवन है मध्य में। प्रारंभ और अंत तो दो छोर हैं। शेष रह जाती हैं। जैसे ही हम परमाणु का विस्फोट करते हैं, ___ हम ऐसा कह सकते हैं कि ब्रह्मा और महेश तो छोर पर उपयोगी विश्लेषण करते हैं, तो इलेक्ट्रान, प्रोटान और न्यूट्रान, ये तीन हैं, लेकिन पूरा जीवन का जो फैलाव है, वह फैलाव विष्णु का अंतिम अस्तित्व हमारे हाथ में आते हैं। और मजे की बात तो यह | फैलाव है। इसलिए इस मध्य के काल में, जीवन के काल में जो है कि इलेक्ट्रान, प्रोटान और न्यूट्रान, इन तीनों का भी व्यावहारिक भी ईश्वर की अवधारणाएं हैं, वे सभी अवधारणाएं विष्णु की
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